25 January – राष्ट्रीय मतदाता दिवस

1341
राष्ट्रीय मतदाता दिवस

PLAYING x OF y
Track Name
00:00

00:00


विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में शामिल भारत, 25 जनवरी 2022 को अपना 12वां मतदाता दिवस मनाने की और बढ़ रहा है। लगभग 140  करोड़ की आबादी में चुनावों का आयोजन करना भारत में एक पर्व मनाये जाने के समान रहता है, एक ऐसा पर्व जो लोगों को राष्ट्रीय धर्म के धागे से बांधता है। इस पर्व में देश के मतदाता मुख्य स्तंभ रहते हैं, देश के इन मतदाताओं को सक्षम, जागरूक, सशक्त और जिम्मेदार बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। आज के इस लेख में हम आपके लिए राष्ट्रीय मतदाता दिवस सम्बंधित सभी जानकारी लेकर आये हैं।

25 जनवरीराष्ट्रीय मतदाता दिवस

भारत में प्रतिवर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय चुनाव आयोग राजधानी दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति की उपस्थिति में ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ का आयोजन करती है। इस कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री, मीडिया तथा बहुत से गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया जाता है। इस अवसर पर भाषण, नाटक, सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा अन्य माध्यमों से मतदान जागरूकता का सन्देश दिया जाता है।

इस अवसर पर चुनाव आयोग द्वारा चुनाव प्रक्रिया में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाता है। इसी के साथ ही देश में नए मतदान योग्य वयस्कों का पता लगाने, वोटर्स को चिन्हित करने के लिए, वोटर संख्या पता करने के लिए, वोटिंग को बढ़ावा देने के लिए इस दिन का आयोजन किया जाता है।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस 2022थीम

वर्षभर संचालित होने वाले मतदाता सम्बन्धी कार्यक्रमों को दिशा देने के लिए हरवर्ष चुनाव आयोग द्वारा एक थीम निर्धारित की जाती है। इस वर्ष के लिए मजबूत लोकतंत्र के लिए चुनावी साक्षरता” थीम रखी गयी है। पिछले वर्ष राष्ट्रीय मतदाता दिवस थीम : मतदाताओं को सशक्त, सचेत, सुरक्षित और जागरूक बनाना’ थी।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाये जाने का उद्देश्य

राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य आम नागरिकों के बीच मतदान के लिए जागरूकता पैदा करना तथा उन्हें सक्षम, सशक्त और जिम्मेदार मतदाता बनाना है। यदि हम बात करे राष्ट्रीय मतदाता दिवस शुरू करने के कारणों की तो उसमे हम देखते हैं, कि चुनावी मतदान में मतदाताओं की कम होती संख्या और रूचि को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। जब इसके कारणों पर ध्यान दिया गया,  तो जो कारण सामने आये उसमे मतदान के प्रति जागरूकता में कमी सबसे बड़ा कारण था। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाने लगा।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस का इतिहास

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन 25 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय चुनाव आयोग का गठन किया गया था। इसीलिए इस दिवस को प्रतिवर्ष 25 जनवरी को मनाया जाता है। पहले राष्ट्रीय मतदाता दिवस का आयोजन साल 2011 में राष्ट्रपति प्रतिभा देव सिंह पाटिल की गरिमामय उपस्थिति में किया गया था। चूँकि इस दिवस के प्रारम्भ किये जाने के पीछे राजनीतिक कारण मतदान में लोगों की गिरती उपस्थिति रही थी। अतः इसके आयोजन में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि मतदाताओं को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से अधिक से अधिक संख्या में जोड़ा जाये।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस का महत्व

राष्ट्रीय मतदाता दिवस दिवस भारतीय मतदाता और राष्ट्रीय चुनाव आयोग दोनों के लिए बहुत  महत्व रखता है। एक मतदाता कैसे अपने विवेक से एक जिम्मेदार व्यक्ति को अपना नेता चुन सकता है?,  एक मतदाता के क्या अधिकार हैं?, कैसे खुद को एक जागरूक मतदाता के रूप में बदल सकते हैं?, क्या वो मुद्दे हैं जिस पर हम अपने मतदान का प्रयोग कर सकते है? ऐसे ही अनेक प्रश्नो के उत्तर और जानकारी हमे राष्ट्रीय मतदाता दिवस आयोजित करने को प्रेरित करती है।

राष्ट्रीय चुनाव आयोग के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है, इस दिन वो अपने चुनाव सम्बन्धी बहुत सारे काम लोगों के बीच लेकर जाता है , जैसे नए मतदाताओं को जोड़ना, वोटर पहचान पत्र सम्बन्धी कामों कि शुरुवात करना आदि।

साल 1952 में देश में पहली बार लोकसभा के चुनाव, चुनाव आयोग द्वारा कराये गए थे , उस समय मतदान का प्रतिशत 45% था। इसके बाद के वर्षों में मतदान प्रतिशत में इकाई के अंकों का ही इजाफा हुआ। साल 2004 में लोकसभा मतदान प्रतिशत 58% रहा तथा साल 2009 में यह बढ़कर 60% हो गया। इसके बाद साल 2011 से मतदाता जागरूकता को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय मतदाता दिवस का आयोजन किया जाने लगा, जिसके परिणाम स्वरुप साल 2014 में 66% मतदान तथा साल 2019  में 67% मतदान दर्ज किया गया है। परिणामों को देखकर यह कहा जा सकता है कि मतदाता दिवस मनाये जाने से लोगों में मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ी है , जो मतदान वृद्धि पहले 50 वर्षों के अंतराल में हुई थी उसकी लगभग आधी वृद्धि पिछले 10 सालों में देखी गयी है।

भारतीय चुनाव आयोग

भारतीय चुनाव आयोग का गठन 25 जनवरी 1950 को किया गया था।  चुनाव आयोग एक स्वायत्त, अर्द्ध न्यायिक, संवैधानिक निकाय है. चुनाव आयोग के काम काज में कार्यपालिका का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।  चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करना, मतदाता सूची तैयार करना, राजनीतिक दलों को मान्यता और चुनाव चिह्न देना, उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जांच करना, उम्मीदवारों के चुनाव खर्च की जांच करना और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना,सांसद/विधायक की अयोग्यता (दल बदल को छोडकर) पर राष्ट्रपति/राज्यपाल को सलाह देना, गलत निर्वाचन उपायों का उपयोग करने वाले व्यक्तियॉ को निर्वाचन के लिये अयोग्य घोषित करना आदि हैं।

प्रारम्भ में भारतीय चुनाव आयोग केवल एक सदस्य वाली प्रणाली थी। साल 1993 से इसे सतत रूप से तीन सदस्यीय निकाय बना दिया गया, जिसमे एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो चुनाव आयुक्त होते हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता हैं। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता हैं।

भारत में प्रचलित मतदान प्रणाली

देश में मुख्यतः दो प्रकार की मतदान व्यवस्था प्रचलित है, प्रत्यक्ष मतदान और अप्रत्यक्ष मतदान

  • प्रत्यक्ष मतदान – इस व्यवस्था के आधार पर लोकसभा, विधानसभा, नगर निकाय और ग्राम पंचायत के चुनाव होते हैं। जिसमे प्रत्येक पांच वर्ष बाद चुनाव आयोग द्वारा आयोजित चुनावों में जनता सीधे रूप से अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट करती है।
  • अप्रत्यक्ष मतदान- इस मतदान व्यवस्था में जनता की सीधे रूप में भागीदारी नहीं रहती है, बल्कि जनता द्वारा चुने गए उम्मीदवार इस व्यवस्था में भाग लेते हैं। जैसे -प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा सदस्य, विधान परिषद् सदस्य का चुनाव आदि।

सार

चुनाव आयोग ने मतदाता को उसके असंतोष को प्रकट करने के लिए सांकेतिक के रूप में नोटा अर्थात ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ का विकल्प दिया है। हालाँकि NOTA एक जाकरूक मतदाता के आक्रोश का एक सांकेतिक प्रतीक है, किन्तु इसे प्रबल बनाकर आने वाले चुनावों की दशा और दिशा दोनों ही बदली जा सकती है। चुनाव आयोग ने पहली बार साल 2014 के लोकसभा चुनावों में इसका उपयोग किया था। इसके बाद इसे धीरे -धीरे विधान सभा चुनावों में भी उपयोग किया जाने लगा है।

Leave a Reply !!

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.