वीर बाल दिवस (Veer Bal Diwas): धर्म के लिए बलिदान को सच्चा नमन

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Veer Bal Diwas

वीर बाल दिवस हर साल 26 दिसंबर को मनाने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है, जो कि गुरु गोविंद सिंह के चार छोटे साहिबजादों के बलिदान की याद में मनाया जाएगा।

गुरु गोविंद के बच्चे

उमर में थे अगर कच्चे।

मगर थे सिंह के बच्चे

धर्म, ईमान के सच्चे।

जी हां, गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादे बिल्कुल ऐसे ही थे। उन्होंने अपनी वीरता और अपने आदर्श से एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया, जो आज भी हर किसी के लिए अनुकरणीय है। गुरु गोविंद सिंह के चारों साहिबजादों ने इस देश की खातिर, अपने धर्म की खातिर हंसते-हंसते अपना बलिदान कर दिया, लेकिन उन्होंने अन्याय के आगे कभी भी झुकना स्वीकार नहीं किया। गुरु गोविंद सिंह के चारों साहिबजादों की शहादत को जितना भी नमन किया जाए, वह कम ही होगा।

Veer Bal Divas मनाने की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से गुरु पर्व के मौके पर इसलिए की गई, ताकि देश गुरु गोविंद सिंह के इन चारों साहिबजादों के बलिदान को याद कर सके। प्रधानमंत्री द्वारा 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई है। यह वही दिन है, जब साहिबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था।

20 दिसंबर, 1704 का वह दिन

गुरु गोविंद सिंह, जो कि सिखों के दसवें गुरु थे, उन्हें वर्ष 1704 में 20 दिसंबर को आनंदपुर साहिब किले को अचानक से बेहद कड़कड़ाती ठंड में छोड़ना पड़ा था, क्योंकि मुगल सेना ने इस पर आक्रमण कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह चाहते थे कि वे किले में ही रुक कर आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दें, लेकिन उनके दल में जो सिख शामिल थे, उन्होंने खतरे को भांप लिया था। ऐसे में उन्होंने गुरु गोविंद सिंह से आग्रह किया कि इस वक्त यहां से निकल जाना ही उचित होगा। गुरु गोविंद सिंह ने आखिरकार उनकी बात मान ली और आनंदपुर किले को छोड़कर वे अपने परिवार के साथ वहां से निकल गए।

बिछड़ गया गुरु गोविंद सिंह का परिवार

सरसा नदी को जब वे पार कर रहे थे, तो इस दौरान नदी में पानी का बहाव बहुत तेज होने की वजह से गुरु गोविंद सिंह के परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। गुरु गोविंद सिंह के दो बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह उनके साथ ही रह गए और वे उनके साथ चमकौर पहुंच गए थे। वहीं, दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी और उनके दो बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह अलग हो गए थे। गुरु गोविंद सिंह का सेवक गंगू इन्हीं लोगों के साथ में था। उसने माता गुजरी और गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को उनके परिवार से मिलाने का भरोसा दिलाया और उन्हें अपने घर लेकर चला गया। गंगू को सोने के मोहरों का लोभ हो गया था। इस वजह से उसने वजीर खां को इनके बारे में खबर कर दी।

गिरफ्तार हो गए गुरु गोविंद सिंह के दो साहिबजादे

इसके बाद वजीर खां के सैनिकों ने माता गुजरी और 7 साल के जोरावर सिंह और 5 साल के फतेह सिंह को गिरफ्तार कर लिया। सबसे पहले तो उन्होंने इन सभी को बहुत ही ठंडे बुर्ज में रखा था। इसके बाद वजीर खां के सामने जब इन दोनों को पेश किया गया तो वजीर खान ने गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों से इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए कहा। इतने छोटे होकर भी गुरु गोविंद सिंह के इन दोनों बेटों ने इस्लाम धर्म को कबूल करने से मना कर दिया। जब वजीर खां ने इनसे सिर झुकाने को कहा, तो इसके लिए भी दोनों ने इंकार कर दिया और यह कहा कि हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अतिरिक्त किसी और के सामने सिर नहीं झुकाते हैं। हमारे दादा ने जो कुर्बानी दी है, ऐसा करके हम उसे व्यर्थ नहीं जाने देंगे। हमने यदि किसी और के सामने सिर झुका लिया, तो अपने दादा को हम क्या जवाब देंगे। उन्होंने धर्म के नाम पर अपना सिर कलम करवाना उचित समझा था, लेकिन झुकना नहीं।

दीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश

इसके बाद भी वजीर खां ने गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को काफी धमकाया। उसने इन दोनों को डराने की भी कोशिश की। साथ ही उसने प्यार से भी इन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा, लेकिन इसके बाद भी दोनों साहिबजादे अपनी बात पर अड़े रहे। जब वजीर खां ने देखा कि दोनों उनकी बात नहीं मान रहे हैं, तो आखिर में उसने इन दोनों को दीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश दे दिया। इसके बाद जब इन दोनों साहिबजादों को दीवार में चुना जाने लगा, तब दोनों साहिबजादे जपुजी साहिब का पाठ करने लगे।

जोरावर जोर से बोला, फतेह सिंह शोर से बोला।

रखो ईंटें भरो गारे, चुनो दीवार हत्यारे।

हमारी सांस बोलेगी, हमारी लाश बोलेगी।

यही दीवार बोलेगी, हजारों बार बोलेगी।

हमारे देश की जय हो, पिता दशमेश की जय हो।

हमारे पंथ की जय हो, श्री गुरु ग्रंथ की जय हो।

फतेह सिंह और जोरावर सिंह इन दोनों को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया, लेकिन दीवार पूरी बन जाने के बाद भी अंदर से इनके जयकारा लगाने की आवाज बाहर आती रही। दोनों साहिबजादों ने अपने धर्म की खातिर हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी। बताया जाता है कि सरहिंद के किले से धक्का देकर माता गुजरी को भी मार दिया गया था। यह घटना 26 दिसंबर को ही घटी थी। जब गुरु गोविंद सिंह को यह पता चला तो उन्होंने औरंगजेब को एक जफरनामा लिखा था। जफरनामा का अर्थ होता है विजय का पत्र। इसमें औरंगजेब को उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि तुम्हारे साम्राज्य को समाप्त करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो चुका है।

शहीदी सप्ताह

हर वर्ष सिख नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक के श्रद्धालु 20 दिसंबर से 27 दिसंबर तक शहीदी सप्ताह भी मनाते हैं। इस दौरान न केवल गुरुद्वारों, बल्कि घरों में भी बड़े पैमाने पर कीर्तन और पाठ करते हैं। साथ ही इस दौरान श्रद्धावान पूरे हफ्ते जमीन पर सोते हैं और अपने बच्चों को गुरु साहिब के परिवार की शहादत के बारे में भी जानकारी देते हैं।

साहिबजादों अजीत सिंह और जुझार सिंह की शहादत

अजीत सिंह गुरु गोविंद सिंह के सबसे बड़े बेटे थे। चमकौर के युद्ध में सिर्फ 17 वर्ष की आयु में भी लड़ते हुए उन्होंने मुगल फौज के छक्के छुड़ा दिए थे। तीर खत्म होने पर उन्होंने तलवार निकालकर दुश्मनों से युद्ध किया, मगर लड़ते-लड़ते तलवार टूट जाने पर वे युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हुए। अजीत सिंह की शहादत के बाद गुरु गोविंद सिंह के दूसरे बेटे जुझार सिंह ने भी रणभूमि में मोर्चा संभाल लिया और अद्भुत वीरता का प्रदर्शन दिया, मगर अंत में वे भी वीरगति को प्राप्त हुए।

गर्व और नमन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 26 दिसंबर को Veer Bal Divas मनाए जाने की घोषणा करने के बाद उनके इस कदम की हर और सराहना शुरू हो गई। गुरु गोविंद सिंह के चारों साहिबजादों की शहादत, उनके बलिदान को यह देश भूल न जाए, इसलिए प्रधानमंत्री की ओर से यह कदम उठाया गया है। वास्तव में इन चारों साहिबजादों के बलिदान की यह कहानी युवा पीढ़ी को अपने देश से, अपने धर्म से, अपने वतन से प्रेम करने का संदेश देती है। गुरु गोविंद सिंह के इन चारों बेटों के मन में बस यही भाव था-

नहीं हम झुक नहीं सकते, नहीं हम रुक नहीं सकते।

हमें निज देश प्यारा है, हमें निज पंथ प्यारा है।

पिता दशमेश प्यारा है, श्री गुरु ग्रंथ प्यारा है।

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