जब Soviet Union से Kyrgyzstan को मिली आज़ादी

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Kyrgyzstan Independence


आज यानी कि 31 अगस्त को Kyrgyzstan Independence Day मना रहा है। आज के दिन ही 1991 में सोवियत संघ से इसे पूरी तरह आज़ादी मिली थी। किर्ग़िज़स्तान 31 अगस्त, 1991 को पूरी तरीके से एक अलग देश के रूप में सामने आया था। उसी वक्त इसकी राजधानी फ़्रंजे का भी नाम बदल दिया गया। इसका नया नाम बिश्केक दे दिया गया। किर्ग़िज़स्तानके पश्चिम में उज्बेकिस्तान और उत्तर में कज़ाक़स्तान हैं। वहीं इसके पूर्व में चीन और दक्षिण में ताजिकस्तान हैं।

इस लेख में आपके लिए है:-

  • किर्ग़िज़स्तान को जानें
  • किर्ग़िज़स्तानका इतिहास
  • आधुनिक दौर में किर्गिस्तान
  • Independence of Kyrgyzstan

Kyrgyzstan को जानें

  • किर्ग़िज़स्तान के बारे में अधिकतर लोगों को सिर्फ इतनी ही जानकारी है कि यह मध्य एशिया में स्थित एक देश है और सोवियत संघ के विघटन के बाद जो देश आजाद हुए थे, उनमें से यह एक है।
  • Soviet Union के विघटन के बाद बने कई देशों में से जो मध्य एशिया में पांच देश प्रमुखता से उभरे हैं, उनमें किर्ग़िज़स्तान के साथ उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कज़ा़किस्तान और तुर्कमेनिस्तान भी शामिल हैं।
  • किर्ग़िज़स्तान दरअसल बहुत ही महत्व का है। न केवल रूस के हित इस इलाके से जुड़े हुए हैं, बल्कि ईरान और पाकिस्तान के भी हित इस देश में छिपे हुए हैं। विभिन्न कारणों से इस क्षेत्र में भारत, चीन और अमेरिका भी रुचि लेते रहे हैं।
  • अफगानिस्तान में जब अमेरिका जंग लड़ रहा था तो इस जंग के दौरान अमेरिकी कुमुक किर्ग़िज़स्तान होकर भी जा रही थी। अमेरिका ने यहां अपना बेस भी बनाया हुआ था।
  • सिल्क मार्ग जो कि यूरोप से सुदूर पूर्वी एशिया को जोड़ता है, वह भी यहां से गुजर रहा है। इसलिए हर तरीके से यह इलाका न केवल संवेदनशील है, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी किर्ग़िज़स्तान का बड़ा ही महत्व है
  • जिस अफीम की पैदावार अफगानिस्तान में होती है, उसकी तस्करी का मार्ग भी किर्ग़िज़स्तानसे होकर ही गुजरता है।
  • पश्चिमी चीन में जो उईगुर इलाका स्थित है, उसका इस क्षेत्र से बेहद नजदीकी का रिश्ता है। एक ओर तो यहां कबायली झगड़े होते रहते हैं तो दूसरी ओर इस्लामी प्रतिरोध भी यहां पनपता रहा है।
  • अलकायदा ने पहले इस इलाके में अपनी जगह बनाई थी। इसके बाद आईएसआईएस ने भी यहां अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है।

किर्ग़िज़स्तान का इतिहास (History of Kyrgyzstan)

  • किर्ग़िज़स्तान के इतिहास पर जब हम नजर डालते हैं तो यह पता चलता है कि बहुत पहले यहां ईरानियों के साथ चीनियों का बड़ा प्रभाव रहा था। इसके अलावा मंगोलों और यूनानियों का भी इस इलाके में गहरा प्रभाव रहा है।
  • सिकंदर महान ने भी 329 ईसा पूर्व में मध्य एशिया तक अपने साम्राज्य को विस्तृत कर लिया था। भारत की दृष्टि से देखें तो इससे लगभग एक सदी पहले कुषाण राजवंश की बैक्ट्रिया या बख्तर इलाके में स्थापना हुई थी। कुषाण राजवंश की सीमा अफगानिस्तान से लेकर उत्तर भारत तक फैली हुई थी। तब यह क्षेत्र बौद्ध धर्म के प्रभाव में हुआ करता था।
  • पुरुषपुर या पेशावर कुषाण राजा कनिष्क की राजधानी हुआ करती थी। किर्ग़िज़स्तान के इस इलाके में कनिष्क के शासन के दौरान व्यापक पैमाने पर विकास हुआ था। आठवीं सदी में जब अरबों ने यहां हमला कर दिया तो उसके बाद इस क्षेत्र में इस्लाम ने प्रवेश किया और इसका फैलाव होने लगा।
  • इस इलाके में रूस का प्रभाव अठारहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी में बढ़ना शुरू हो गया था। रूस के खिलाफ बीसवीं शताब्दी में इस इलाके में कई जगहों पर बगावत भी शुरू हो गई थी। आखिरकार जब पहला विश्व युद्ध समाप्त हो गया तो इसके बाद Kyrgyzstan का यह इलाका सोवियत संघ का हिस्सा बन गया।
  • जब रूस के साथ मंगोलिया और चीन में साम्यवादी सरकारों का गठन हो गया तो उसके बाद किर्ग़िज़स्तान के इलाके की आबादी में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होने लगा।
    इस इलाके में जो जातीय बहुलता थी, उसका स्टालिन ने खूब फायदा उठाया।
  • सीमाएं इन क्षेत्रों की इस तरीके से बनाई गई कि यहां वर्चस्व किसी एक समुदाय का बनकर न रह सके। उसने इनके बीच होने वाले आपसी झगड़ों का भी पूरा लाभ उठाया। धीरे-धीरे इस पूरे क्षेत्र की जो भाषा और संस्कृति के स्थानीय तत्व थे, उन्हें उसने खत्म करना शुरू कर दिया।
  • वर्ष 1936 में किर्गीज़ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक का गठन कर दिया गया, जिसके बाद से यहां लोगों की पढ़ाई-लिखाई में रुचि बढ़ने लगी और साक्षरता दर में भी इजाफा होने लगा।

आधुनिक दौर में Kyrgyzstan

  • Soviet Union के बाकी गणराज्यों में जिस तरीके से नेताओं पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते जा रहे थे, ठीक उसी तरीके से यहां के भी नेताओं पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगने लगे थे।
  • गोर्बाचेव के समय यहां प्रेस पर पाबंदियां घटा दी गई थीं। इसके बाद यहां के माहौल में लोकतंत्र के प्रति समर्थन बढ़ने लगा था। वर्ष 1989 में किर्गिज़ियन को किर्ग़िज़स्तान की राजभाषा भी घोषित कर दिया गया था। यही वह समय था, जब किर्गीज़ और उजबेक की आबादी के बीच तनाव का भी बढ़ना शुरू हो गया था।
  • किर्ग़िज़स्तान में दरअसल उज्बेकों की आबादी बहुत ही कम थी और वे अल्पसंख्यक के तौर पर जाने जाते थे। वर्ष 1990 में किर्ग़िज़स्तान में उजबेक के खिलाफ हिंसा बड़े स्तर पर होने लगी थी। इसी दौरान यहां किर्गीज़ नेता अस्कर अकायेव का उदय होने लगा था।
  • चुनाव में उन्हें जबर्दस्त जीत हासिल हुई थी। इसके बाद वे किर्ग़िज़स्तान के नए राष्ट्रपति बन गए थे। वर्ष 1990 में यह साफ होने लगा था कि अब सोवियत संघ का हर हाल में विघटन होने वाला है।
  • फिर 1990 के दिसंबर में ही वह हुआ, जिसका किर्ग़िज़स्तान के लोग इंतजार कर रहे थे। किर्ग़िज़स्तान को रिपब्लिक ऑफ किर्ग़िज़स्तान (Republic of Kyrgyzstan) का नाम देकर सुप्रीम सोवियत ने इसे मध्य एशिया के बाकी गणराज्यों से अलग रूप प्रदान कर दिया। यहां के राष्ट्रपति अकायेव ने इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ दी।

Independence of Kyrgyzstan

  • Kyrgyzstan Independence की घड़ी 31 अगस्त, 1991 को आखिरकार आ ही गई। यही वह दिन था जब पूरी तरीके से एक अलग देश के रूप में किर्ग़िज़स्तान दुनिया के नक्शे पर आ गया।
  • Soviet Union से जो गणराज्य टूटकर अलग हुए थे, वर्ष 1991 में इनका एक संगठन बनाया गया था। इसका नाम रखा गया था कॉमनवेल्थ आफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स।
  • वैसे देखा जाए तो यह संगठन कितना संपूर्ण था, इस पर हमेशा सवालिया निशान लगा रहा है। तीन बाल्टिक रिपब्लिक इसका हिस्सा नहीं बने थे। संगठन आज भी बना हुआ तो जरूर है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि यह अधूरे मन से गठित हुआ है।
  • कई गणराज्य यूरोपियन यूनियन से समर्थित ईस्टर्न पार्टनरशिप का हिस्सा बन चुके हैं। इनमें से जो अधिकतर गणराज्य हैं, यहां जातीय-सामुदायिक झड़पें तो होती ही रहती हैं, साथ में भ्रष्ट राजनेताओं के बीच टकराव की भी खबरें सामने आती रहती हैं।

चलते-चलते

Kyrgyzstan को Independence तो मिल गया, मगर यह कोई बहुत बड़ा देश नहीं है। मुश्किल से इसकी आबादी 54 लाख के आसपास है। किर्ग़िज़स्तान आजाद तो जरूर हो गया और यह एक गणराज्य भी बन गया, लेकिन यहां संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। उजबेक लोग इस देश में अल्पसंख्यक हैं। देश में लगातार चल रहे संघर्ष के कारण लगभग 30 हजार उज्बेकों को अन्य देशों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश जिस तरीके से यहां हस्तक्षेप करने में लगे हैं, वैसे में किर्ग़िज़स्तान के लिए अपनी संप्रभुता को बरकरार रखना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

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