1930 Great Depression- क्या और कैसा था ग्रेट डिप्रेशन?

[simplicity-save-for-later]
2590
1930 Great Depression

इस लेख के साथ कुछ तारीखों को आपको अपने जहन पर बैठाना पड़ेगा क्योंकि उन्हीं तारीखों में अमेरिका का स्टॉक मार्केट टूटा था. एक हफ्ते के अंदर अमेरिका जैसे देश की पूरी अर्थव्यवस्था तबाह हो गई थी. ये असर अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया पर पड़ा था. इसी को द ग्रेट डिप्रेशन (Great Depression 1930) और हिंदी में महामंदी कहा जाता है.

अब यहां सवाल ये उठता है कि क्या बस 4 लाइन में ही ग्रेट डिप्रेशन को समझा जा सकता है? तो इसका जवाब है नहीं. इस लेख में हम महामंदी के बारे में विस्तार से चीज़ों को समझने की कोशिश करने वाले हैं.

सबसे पहले हमको बेसिक्स में ये समझ लेना चाहिए कि आखिर मंदी होती क्या है?

इस लेख के मुख्य बिंदु-

  • क्या होती है मंदी?
  • कैसे ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ ने अमेरिका को लिया था अपने कब्जे में?
  • अब बारी थी ब्लैक थर्सडे की
  • पांच दिन बाद ब्लैक ट्यूसडे ने दस्तक दी थी
  • ‘द ग्रेट डिप्रेशन’
  • नये राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने दिया था ये आदेश
  • जर्मनी और भारत पर क्या हुआ था असर?
  • क्या थे महामंदी के महाप्रभाव-
  • ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ के कुछ फैक्ट्स
  • सरांश

क्या होती है मंदी?

 आसान भाषा में समझें तो मंदी वो अवस्था होती है जब किसी में देश के नागरिकों की खरीददारी की क्षमता खत्म हो जाती है. दुकानों का सामान बिकता ही नहीं है. उस देश में डिमांड पूरी तरह से खत्म हो जाता है. डिमांड खत्म होने से प्रोडक्शन रुक जाता है. जिसकी वजह से नौकरियां जाने लगती हैं. ऐसी अवस्था को आर्थिक मंदी का दौर कहते हैं.

कैसे ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ (Great Depression 1930) ने अमेरिका को लिया था अपने कब्जे में?

1920 के शुरूआती दशक की तरफ चलते हैं. ये वो समय था. जब अमेरिका की अर्थव्यवस्था दिन दुगनी और रात चौगनी तरक्की कर रही थी. 1920 के शुरूआती दशक को आर्थिक हिसाब से अमेरिका का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है. 1920 में अमेरिका की अर्थव्यवस्था अच्छा कर रही थी. उसकी रफ़्तार इतनी अच्छी थी कि साल 1929 आते-आते अर्थव्यवस्था दोगुनी हो चुकी थी.

  • उस दौर में अमेरिका के नागरिकों के पास काफी ज्यादा पैसा हुआ करता था. तब वहां एक ट्रेंड भी चला था कि पैसे को इन्वेस्ट करके उससे और ज्यादा मुनाफा कमाया जाए.
  • अब सवाल ये खड़ा होता है कि लोगों ने इन्वेस्टमेंट का कौन सा रास्ता चुना था? इसका जवाब है कि अमेरिका में ज्यादातर लोग तब स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट किया करते थे.
  • न्यू यॉर्क के वॉल स्ट्रीट में बने स्टॉक मार्केट  में लोगों ने जमकर पैसा लगाया था. जिससे स्टॉक मार्केट का साइज भी बढ़ गया था.
  • अगस्त 1929 आते-आते अमेरिका का स्टॉक मार्केट अपने इतिहास के सबसे उच्चतम स्थान पर था.
  • यही वो समय था, जब अमेरिका में मांग घट चुकी थी. इसके बाद अब वहां पर उत्पादन भी घटने लगा था.
  • मांग और उत्पादन घटने के साथ ही साथ बेरोजगारी ने भी अमेरिका में दस्तक दे दिया था. इन सब पर सूखे ने चार चाँद लगाया.
  • अमेरिका में सूखा भी आ गया था.
  • जिसकी वजह से  बैंकों ने जो बड़े-बड़े लोन दे रखे थे, लोगों ने उसकी मासिक किश्तें देना बंद कर दिया. वहां की खेती भी नष्ट होते जा रही थी.
  • इसका असर सोने के ऊपर भी देखने को मिला था. सोने के भाव कम हो रहे थे. सोने के साथ ही साथ आनाज के भाव भी गिरने लगे थे.
  • लेकिन इन सबका का कोई असर स्टॉक मार्केट में देखने को नहीं मिल रहा था.
  • कम वैल्यू वाले शेयर भी अच्छा करने लग गये थे. स्टॉक मार्केट में लगातार तेजी देखने को मिल रही थी.

अब बारी थी ब्लैक थर्सडे की-

  • स्टॉक मार्केट की तेजी ने सबकी निगाहें अपनी ओर खींच ली थीं. तारीख आई 24 अक्टूबर 1929, दिन गुरुवार का था. निवेशकों को पता चल गया था कि उन्होंने कम दामों के शेयर्स को ज्यादा भाव देकर खरीद लिए हैं.
  • इसके बाद क्या था. 24 अक्टूबर के ही 130 लाख शेयर्स की बिकवाली हो गई.
  • जिसके कारण बाज़ार गिर गया था. एक ही दिन में पांच अरब डॉलर डूब गए थे. अमेरिका के स्टॉक मार्केट के इतिहास में उस दिन को ब्लैक थर्सडे के नाम से जाना जाता है.

पांच दिन बाद ब्लैक ट्यूसडे ने दस्तक दी थी

  • अभी सबसे बड़ी गिरावट आना बाकी था. 29 अक्टूबर 1929 को अमेरिका के स्टॉक मार्केट ने सबसे बड़ी गिरावट देखी थी.
  • करीब 160 लाख शेयर्स एक ही दिन खरीदे और बेचे गये थे. जिसकी वजह से करीब 14 अरब डॉलर एक झटके में डूब गए थे.
  • लाखों शेयरों की कीमत कौड़ियों के भाव हो चुकीं थीं.
  • जब बाज़ार बंद हुआ था. तब मार्केट की 12 फीसदी रकम स्वाहा हो चुकी थी. लाखों लोगों के करोड़ों डूब चुके थे.
  • उस दिन को अमेरिका के स्टॉक मार्केट के इतिहास में ब्लैक ट्यूसडे के नाम से याद किया जाता है.

‘द ग्रेट डिप्रेशन’(Great Depression 1930)

जब मार्केट इतनी बुरी तरह से गिर गया हो तो इसका असर अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर दिखना लाज़मी सा था. नौकरियां जाने लगीं थीं. फैक्ट्रियों में उत्पादन बंद हो चुके थे. लोग सामान खरीदना बंद चुके थे.

  • बैंकों से लिए लोन को नागरिक चुकाने में असमर्थ हो चुके थे. एक साल भी नहीं बीता था कि अमेरिका में 40 लाख लोग बेरोजगार हो चुके थे.
  • दो सालों में ही साल 1931 तक बेरोजगारी का आंकड़ा 60 लाख को पार कर चुका था.
  • वो दौर इतना भयावह था कि किसानों के पास इतने भी पैसे नहीं बचे थे कि वो अपनी फंसलों की कटवाई करा सकें.
  • हर शहर में बेरोजगारों की एक फौज तैयार हो चुकी थी. लोगों के पास जो पैसे बचे हुए थे. वो भी खत्म होने लगे थे.
  • 1930 के साल ने ऐसे दिन लाये थे कि आकाल आ गया था. उस आकाल में लाखों लोगों की जान गई थी.
  • इतने बस से कुछ नहीं हुआ था. अभी और ज्यादा हालात तबाह होने बाकी थे.
  • अमेरिका के बैंक तबाह हो रहे थे. 1933 आते-आते अमेरिका के करीब 3000 बैंकों में ताले लग चुके थे.
  • अमेरिकी सरकार ने बैंकों को लोन देकर हालात को सुधारने की कोशिश की थी. लेकिन उनके हांथो में कुछ ख़ास सफलता नहीं आई थी.
  • 1932 तक अमेरिका की 20 फीसदी आबादी बेरोजगार हो चुकी थी. अंकों में बात करें तो ये आंकड़ा 1 करोड़ 80 लाख था.

नये राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने दिया था ये आदेश-

  • अमेरिका में सरकार बदल चुकी थी. 4 मार्च 1933 को नये राष्ट्रपति फ्रेंकलीन डी रूजवेल्ट ने सभी बैंकों को बंद करने का आदेश दे दिया था. इसी के साथ ये भी कह दिया था कि सरकार के पास इतने भी पैसें नहीं हैं कि कर्मचारियों को तनख्वाह दे सकें.
  • इसके बाद 9000 से ज्यादा बैंक बंद हो गये थे. बैंकों में जमा पैसों का बीमा भी नहीं था. जिसके कारण आम लोगों के पैसें डूब गये थे.

जर्मनी और भारत पर क्या हुआ था असर?

  • अमेरिका से शुरू हुई ये महामंदी ने ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, जापान और यहां तक कि भारत पर भी अपना असर छोड़ा था.
  • दस सालों तक चला मंदी का दौर सेकंड वर्ल्ड वॉर के आगाज़ से खत्म हुआ था.

क्या थे महामंदी के महाप्रभाव-

  • 1 करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोग उस महामंदी में बेरोजगार हुए थे.
  • 1929 से 1932 के बीच औद्योगिक उत्पादन की दर 45 फीसदी घंट गई थी.
  • 9000 से अधिक बैंक बंद हो गये थे.

‘द ग्रेट डिप्रेशन’ के कुछ फैक्ट्स-

  • खुद के उद्योगों को बचाने के लिए अमेरिका ने एक बड़ा कदम उठाया था. उसने आयात शुल्क बढ़ा दिए थे.
  • इसका बड़ा असर जापान जैसे देशों पर देखने को मिला था. इसके पीछे का कारण ये था कि जापान अपने कुल उत्पादन का बड़ा हिस्सा अमेरिका को निर्यात करता था.
  • अमेरिका में मंदी आने के कारण वो निर्यात ठप्प हो गया था. इसके बाद जापान में भी मंदी आ गई थी.
  • ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों को भी मंदी ने बुरी तरह से जकड़ लिया था. कनाडा का औद्योगिक उत्पादन 60 फीसदी तक कम हो गया था.
  • अमेरिका से मिलने वाले पैसों से चलने वाले देश जैसे कि चिली, बोलिविया और पेरू पूरी तरह से बर्बाद हो चुके थे.
  • ब्रिटेन जैसे देश को भी अपने सोने का निर्यात रोकना पड़ा था.
  • इस मंदी से बचने के लिए दुनिया के तमाम बड़े – छोटे देशों ने अपनी-अपनी करेंसी का अवमूल्यन शुरू कर दिया था.

सारांश-

1930 के ग्रेट डिप्रेशन के बाद अब फिर से दुनिया आर्थिक मंदी की समस्या के गुज़र रही है. आज के दौर की इस मंदी के पीछे की वजह कोरोना वायरस से जन्मे हालात हैं. वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष डेविड मालपास ने कहा है कि कोविड-19 महामारी गरीब और विकासशील देशों के लिए विनाशक घटना की तरह है.

  • IMF  की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टॉलिना जॉर्जिविया ने आज के दौर की तुलना 1930 की महामंदी से की है. आपको बता दें कि 1930 की महामंदी के बाद हालात इतने खराब हो चुके थे कि उनसे उबरने में ही 15 सालों से ज्यादा का वक्त लग गया था.
  • इसके साथ ही आपको एक और जानकारी से अवगत करा दें कि द ग्रेट डिप्रेशन के ऊपर काफी ज्यादा किताबें भी लिखी जा चुकी हैं. इन किताबों में सबसे ज्यादा प्रचलित जॉन स्टीनबेक लिखित ‘द ग्रेप्स ऑफ राथ’ है. इस किताब को साल 1939 मे प्रकाशित किया गया था.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.