मजदूरी भुगतान (संशोधन) विधेयक,2016

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Law As A Career After 12th

केंद्र सरकार ने मजदूरी भुगतान अधिनियम,1936 में संशोधन करने के लिए लाए गए अध्यादेश को दिनाँक 21दिसंबर,2016 को मंजूरी दे दी ताकि व्यापार और औद्योगिक प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को चैक या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा वेतन का भुगतान कर सकें।

श्रम और रोजगार मंत्री, श्री बंडारू दत्तात्रेय ने 15 दिसंबर, 2016 को मजदूरी भुगतान (संशोधन) विधेयक, 2016 को लोकसभा में पेश किया था। यह विधेयक मजदूरी भुगतान अधिनियम,1936 की धारा 6 को संशोधित करता है जिसके अंतर्गत नियुक्ति कर्ता, कर्मचारियों के वेतन का भुगतान चालू सिक्के या करेंसी नोटों में या चैक द्वारा या कर्मचारी के बैंक खाते में मजदूरी जमा करके कर सकता है। इस संशोधन के पहले नियोक्ता यदि वह वेतन चैक द्वारा या बैंक खाते में जमा करना चाहता था तो उसे कर्मचारी की अनुमति की ज़रूरत पड़ती थी। परंतु अब नियुक्तिकर्ता कैशलेस भुगतान करने का विकल्प रखते हैं।

केंद्र सरकार रेलवे, हवाई परिवहन सेवाएं, खद्दान, तेल क्षेत्रों और अपने प्रतिष्ठानों के संबंध में मजदूरी के भुगतान के संबंध में नियम बना सकती हैं, जबकि राज्य सरकारें अन्य सभी मामलों पर फैसला लेने के लिए अधिकृत है।

आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, केरल और हरियाणा की सरकारों ने पहले ही अधिनियम में राज्य स्तरीय संशोधन करके, चैक और इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण के माध्यम से मजदूरी के भुगतान करने के लिए प्रावधान कर दिए थे।

यह अधिनियम 23 अप्रैल, 1936 को अस्तित्व में आया था, जिसके अंतर्गत मजदूरी का भुगतान या तो सिक्के या नोटों में किया जा सकता था। चेक द्वारा मजदूरी का भुगतान या कर्मचारी की अपेक्षित प्राधिकरण प्राप्त करने के बाद बैंक के खाते में जमा करने के लिए प्रावधान 1975 में डाला गया था।वर्तमान समय में, अधिनियम में प्रतिष्ठानों में काम करने वाले उन सभी कर्मचारियों को शामिल किया गया है जिनकी मजदूरी एक महीने में 18,000 से अधिक नहीं है।

यह कानून मजदूरी के भुगतान में पारदर्शिता लाने में मदद करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि न्यूनतम मजदूरी का भुगतान कर्मचारियों को समय पर प्राप्त हो जाए तथा यह कर्मचारियों के सामाजिक सुरक्षा अधिकारों की रक्षा भी करेगा। जब मजदूरी का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम या चैक द्वारा किया जाता है तब नियोक्ता अपने प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या कम या गलत नहीं दिखा सकता ताकि वह ईपीएफओ या ईएसआईसी द्वारा नियोजित योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सके।

विमुद्रीकरण के पश्चात्, यह विधेयक भारत सरकार के कम-नकदी अर्थव्यवस्था के उद्देश्य को प्राप्त करने की तरफ उठाए गए कई महत्वपूर्ण कदमों में से एक है।

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