हिन्दू धर्म में शक्ति का प्रतीक देवी दुर्गा को वैसे तो वर्ष भर पूजा जाता है। लेकिन नवरात्रि के अवसर पर शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का अलग ही महत्व है। आइये देखें की देवी दुर्गा के नौ रूप और उनके अर्थ क्या हैं :
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
- शैलपुत्री :
पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण देवी को शैलपुत्री भी कहा जाता है। इस रूप में देवी का वाहन नंदी नाम का वृषभ है जो स्वयं शिव का स्वरूप हैं। इनके बाएँ हाथ में कमल पुष्प और दायें हाथ में त्रिशूल है। एक तेजपूर्ण तपस्वी देवी समस्त वन्य जीवों की रक्षक मानी जातीं हैं। माँ शैलपुत्री के भक्तों में वो समस्त योगी और तपस्वी शामिल हैं जो हिमालय पर जाकर तपस्या करते हैं।
- ब्रह्मचारिणी:
माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का माना जाता है। जब शक्ति के इस रूप में माँ ने महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करी थी, तो इस तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चरिणी या ब्रह्मचारिणी माना जाने लगा। इस रूप में माँ का स्वरूप श्वेतवासन में कन्या रूप है और श्रंगार बाएँ हाथ में कमंडल और दायें हाथ में जप की माला के साथ होता है।
- चंद्रघंटा :
माँ दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा है। माँ के इस स्वरूप में इनके मस्तक पर अर्धचंद्रमा विराजमान है और इसी कारण माँ का यह रूप चंद्रघंटा माना जाता है। माँ के इस रूप का वर्ण स्वर्ण है और वाहन सिंह है। शक्ति के इस रूप में माँ के दस हाथ हैं जो विभिन्न अस्त्र-शास्त्रों जिनमें खड़ग, धनुष-बाण, तलवार , सुदर्शन चक्र, गदा और त्रिशूल आदि शामिल हैं , से सुशोभित हैं। माँ चंद्रघंटा का रूप सौम्यता और वीरता का संगम माना जाता है।
- कुष्मांडा:
अपनी मंद स्मित या हंसी के कारण ब्र्म्हाण्ड की उत्पत्ति करने के कारण शक्ति के इस स्वरूप को कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। माँ के इस नाम का विश्लेषण किया जाए तो कू का अर्थ है छोटा, ईश का अर्थ है ऊर्जा और अंडा का अर्थ है गोलाकार । विस्तार से समझा जाए तो माँ के इस रूप से यह संदेश मिलता है की संसार की छोटी से छोटी चीज में विस्तार की क्षमता होती माँ का यह रूप पिंड से ब्रह्मांड का विस्तार करने वाला माना जाता है। शक्ति के इस रूप का वाहन बाघ है । कुष्मांडा रूप का श्रंगार रत्न जड़ित स्वर्ण मुकुट और एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में सभी अस्त्र और शस्त्र हैं। सब लोगों के रोग और विनाश से मुक्त करके भक्तों को आयु, बल और बुद्धि प्रदान करने वाला रूप है।
- स्कन्दमाता:
शक्ति का पाँचवाँ स्वरूप स्कंदमाता कहलाता है। भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द है और इसी कारण दुर्गा का यह रूप स्कंदमाता कहलाता है। चार भुजाओं वाली माता के इस रूप का वाहन सिंह है । माँ के एक हाथ में स्कन्द पुत्र रूप में विराजमान हैं, और शेष भुजाओं में कमल है। कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है।
- कात्यायनी :
माँ दुर्गा का छठा स्वरूप देवी कात्यायनी का है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने इनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं । देवी के इस रूप को शोध का प्रतीक माना जाता है। सिंह की सवारी करने वाली देवी कमाल और तलवार के साथ सज्जित होतीं हैं।
- कालरात्रि:
महाविनाशक गुणों के कारण देवी का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है। देवी के इस रूप का श्रंगार काले रंग से है। हमेशा सबका शुभ करने वाली माँ शुभंकरी भी कहलाती हैं ।
- महागौरी:
माँ दुर्गा का आठवाँ स्वरूप गौरी का है। गौर वर्ण और शंख, चक्र, कंद से सज्जित माँ के इस रूप की आयु आठ वर्ष की मानी जाती है। शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या करने पर देवी का रंग काला हो गया था। महादेव ने तपस्या से प्रसन्न होकर माँ के रूप को पुनः कांतिमय बना दिया जिसके कारण माँ का यह रूप महागौरी कहलाता है।
- सिद्धिदात्री :
सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला माँ दुर्गा का यह रूप सिद्धिदात्री कहलाता है। कमल के आसन पर विराजमान देवी का श्रंगार शंख, चक्र और गदा है ।