ग्रहण को एक खगोलीय घटना कहा जा सकता है। केवल आमजन ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी यह उत्साहित कर देती है, क्योंकि वास्तव में ग्रहण उनके लिए मौका होता है कई अनसुलझे रहस्यों पर से परदा उठाने का। बीते मंगलवार को आधी रात के बाद 149 वर्षों के बाद एक अद्भुत संयोग बना, जब एक बजकर 31 मिनट पर चंद्र ग्रहण (lunar eclipse) लगा और यह सुबह चार बजकर 30 मिनट तक दिखता रहा। केवल भारत ही नहीं, अफ्रीका, एशिया के अन्य हिस्सों, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका और यूरोप में भी इसे देखा गया। इसे दुर्लभ संयोग इसलिए भी कहा गया, क्योंकि 12 जुलाई, 1870 के बाद ग्रहण गुरु पूर्णिमा के दिन लगा। यहां हम आपको चंद्र ग्रहण से जुड़ी हर जरूरी जानकारी दे रहे हैं।
इसे कहते हैं चंद्र ग्रहण
भूगोल में हम और आप पढ़ चुके हैं कि चंद्रमा की अपनी कोई रोशनी नहीं होती है। इसे रोशनी सूर्य से प्राप्त होती है। सूर्य की ही रोशनी जब चांद पर पड़ती है तो वह परावर्तित होकर हमें धरती पर भी दिखाई देती है। धरती का उपग्रह चंद्रमा है। धरती के चक्कर चंद्रमा लगाता है। करीब एक माह में चंद्रमा अपना चक्कर पूरा कर लेता है। वहीं, धरती यानी कि पृथ्वी चक्कर लगाती है सूर्य की। इसी दौरान जब चक्कर लगाते हुए धरती चांद और सूरज के मध्य आ जाती है। यह भी कह सकते हैं कि चांद, धरती और सूरज तीनों एक सीध में आ जाते हैं। ऐसे में सूर्य से जो रोशनी चांद तक पहुंच रही होती है, वह बाधित हो जाती है। सूर्य की रोशनी ठीक से चांद तक पहुंच नहीं पाती है। इससे धरती पर चांद की छाया पड़नी शुरू हो जाती है। चांद एक तरह से गायब ही हो जाता है। यह जो घटना अंतरिक्ष में घटती है, इसे ही हम चंद्र ग्रहण के नाम से जानते हैं। इस दौरान चंद्रमा दो तरह से प्रभावित होता है। चंद्रमा का या तो पूरा भाग ही पृथ्वी की छाया से ढक जाता है या फिर इसका कुछ हिस्सा यानी कि आंशिक भाग पृथ्वी की छाया से छिपता है। हमेशा ही चंद्र ग्रहण इसलिए नहीं लगता है, क्योंकि धरती की छाया चांद के आसपास से होकर गुजर जाती है।
चंद्र ग्रहण के प्रकार
सूर्य के पृथ्वी से 109 गुना बड़े होने और गोल होने की वजह से पृथ्वी की छाया से दो तरह के शंकु बन जाते हैं। इनमें से एक शंकु को प्रच्छाया यानी कि UMBRA कहा जाता है। वहीं, इसके दूसरे शंकु को खंड छाया या फिर उपच्छाया यानी कि PENUMBRA के नाम से जाना जाता है। जब पृथ्वी की प्रच्छाया चांद पर पड़ती है, केवल उसी स्थिति में ग्र्रहण लगता है। इसकी वजह है छाया का घना होना। यह पृथ्वी और चंद्रमा की जो स्थिति होती है, उसके मुताबिक चांद को कभी आंशिक रूप से तो कभी पूरी तरह से ढक लेती है। जब चांद आंशिक रूप से ढकता है, तो इस स्थिति को हम आंशिक चंद्र ग्रहण के नाम से जानते हैं। यह कुछ मिनटों के लिए ही लगता है। वहीं जब
जब चांद पूरी तरह ढक जाता है, तो इस स्थिति को पूर्ण चंद्र ग्रहण कहते हैं। यह कई घंटों तक नजर आता है। बाद में चंद्रमा अपनी परिक्रमा करते हुए धीरे-धीरे आगे निकल जाता है, जिससे वह धरती की छाया से फिर से मुक्त हो जाता है। उस पर सूर्य की रोशनी पड़ने लगती है और इससे उसका फिर से प्रतिबिंबित होना शुरू हो जाता है।
यदि आप पृथ्वी की उपच्छाया में खड़े होकर चंद्रमा को देखते हैं तो आप चंद्रमा द्वारा प्रच्छाया वाले कटे हुए हिस्से को देख नहीं पाएंगे। आपको केवल आंशित चंद्र ग्रहण ही नजर आयेगा। वहीं, यदि आप पृथ्वी की प्रच्छाया में खड़े हो जाते हैं और चांद को निहारते हैं, तो आप प्रच्छाया से पूरी तरह से ढका होने की वजह से चांद को देख ही नहीं पाएंगे। इसका मतलब ये हुआ कि आप पूर्ण चंद्र ग्रहण देख पा रहे हैं।
चंद्रमा पर धरती की उपच्छाया कोई भी खास असर नहीं डालती है। जब भी ग्रहण लगता है तो हमेशा पश्चिम की तरफ से ही चांद धरती की प्रच्छाया में दाखिल होता है। यही वजह है कि ग्रहण सर्वप्रथम इसके पूर्वी हिस्से में लगता है। फिर यह सरकता जाता है और इस तरह से धीरे-धीरे पूर्व की ओर से ही निकल भी जाता है।
धरती की प्रच्छाया में चंद्रमा का प्रवेश एक स्थान से पश्चिम से होता है। पूर्वी भाग जो इसका सर्वप्रथम प्रच्छाया में पहुंचता है, वहां से एक घंटा एक मिनट में यह दूसरे और दो घंटा 42 मिनट में तीसरे स्थान तक पहुंचता है। इस तरह से चांद करीब दो घंटे में प्रच्छाया के केंद्र में पहुंच पाता है और यहां से निकलने में उसे करीब तीन घंटे लग जाते हैं। चंद्रमा प्रच्छाया से बाहर आने के बाद उपच्छाया में भी जाता है, मगर इसकी रोशनी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
इतने चंद्र ग्रहण लगते हैं
करीब 15 चंद्र ग्रहण औसत रूप से 10 वर्षों में लगते हैं। एक साल में देखा जाए तो अधिकतम तीन चंद्र ग्रहण लगते हैं। ऐसा भी होता है कि किसी साल कोई चंद्र ग्रहण नहीं लगता। ग्रहण के वक्त चांद काला नहीं नजर आता है, बल्कि यह धुंधला हो जाता है और लाल रंग का या फिर तांबे के रंग का दिखने लगता है। इस वक्त जो रोशनी आप चांद में देखते हैं, वह चांद के प्रतिबिंब वाला नहीं होता है, बल्कि यह सूर्य की रोशनी होती है। वायुमंडल से परावर्तित होने के बाद विपरीत दिशा से सूर्य की रोशनी प्रच्छाया में दाखिल हो जाती है। इसी के कारण चंद्रमा का रंग धुंधला लाल हो जाता है।
निष्कर्ष
चंद्र ग्रहण है तो पूरी तरह से एक खगोलीय घटना, मगर केवल हमारे देश में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी लोगों ने इसे धर्म और आध्यात्म आदि से जोड़ रखा है, जिस वजह से इसे लेकर तरह-तरह की परंपराएं और भ्रांतियां तक प्रचलित हैं। हालांकि, वैज्ञानिक सोच वाले इससे कोई सरोकार नहीं रखते। बताएं, आपने अब तक कितनी बार चंद्रग्रहण देखा है?
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Stay tuned for more, Amber.
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Sahi kaha aapne dharmik mahatv to hota hai in chijo ka but mujhe bhi yahi lagta hai ki scientific facts hi sahi hai. chandra grahan kal ka dekha maine but utna saf nahi tha
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Thank you Shashank, don’t forget to share.