June Solstice: ‘21 जून’ जब आपकी परछाई भी छोड़ देगी आपका साथ

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June solstice


पाठकों, 21 जून कहें या कहें ‘ग्रीष्म सक्रांति’, कई लोग इसे ‘ग्रीष्म अयनांत’ या फिर ‘जून सॉल्स्टिस’ भी कहते हैं, जब कभी हम भूगोल का अध्ययन करते हैं तो हमारे सामने एक शब्द आता है ‘जून सॉल्स्टिस’, जिसे लेकर कई लोग काफी ज्यादा कंफ्यूज भी रहते हैं। इसके साथ ही इसलिए भी लोग संशय में रहते हैं कि 21 जून या फिर कभी-कभी 22 जून को भारत में सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात क्यों होती है?

आज हम आपसे इस लेख में इसके पीछे कारण के ही बारे में बात करेंगे क्योंकि आज हम ‘जून सॉल्स्टिस’ के बारे में बात करने वाले हैं।

इस लेख में आपके काम की बातें इस प्रकार हैं-

  • प्रस्तावना
  • क्या है ‘जून सॉल्स्टिस’ या ‘समर सॉल्स्टिस’
  • जानिए रोटेशन क्या होता है
  • रेवोल्यूशन क्या होता है
  • एक मुख्य बात
  • क्या 21 जून 2020 को परछाई हो जाएगी गायब?
  • साल 2020 का ‘जून सॉल्स्टिस’ होने वाला है कुछ अलग
  • अंतरराष्ट्रीय योग दिवस

क्या है ‘June Solstice’ या ‘Summer Solstice’

(एन.सी.आर.टी और नेशनल जियोग्राफिक के डेटा के अनुसार)

सबसे पहले कुछ पॉइंटर्स समझते हैं जो आपको जानना ज़रूरी है-

  • ‘अर्थ’ के नॉर्थ और साउथ हेमिसफेयर के मध्य यानी जीरो डिग्री में इक्वेटर स्थित होता है।
  • 23.5 डिग्री नॉर्थ हेमिसफेयर की तरफ ट्रॉपिक ऑफ़ कैंसर लाइन होती है, जिसे हम ‘कर्क’ रेखा भी कहते हैं।
  •  23.5 डिग्री साउथ हेमिसफेयर की तरफ ट्रॉपिक ऑफ़ कैप्रिकॉर्न लाइन होती है, जिसे हम ‘मकर’ रेखा भी कहते हैं। 
  • जानिए रोटेशन क्या होता है- जब धरती अपने एक्सिस में वेस्ट टू ईस्ट चक्कर लगाती है तो उस स्थति को रोटेशन कहा जाता है।
  • रेवोल्यूशन क्या होता है– जब धरती रौशनी के सूत्रधार सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाती है तो उसे रेवोल्यूशन कहा जाता है।
  • एक और ध्यान देने वाली बात ये है कि धरती जब सूर्य का चक्कर लगाती है तो एंगल भी बनते हैं।
  • वर्टीकल एक्सिस और हॉरिजॉन्टल एक्सिस के हिसाब दो ही तरह के एंगल बनते हैं।

‘सॉल्स्टिस’ एक ऐसी भौगोलिक स्थति होती है जब धरती के एक हेमिसफेयर पर दूसरे हेमिसफेयर की अपेक्षा ज्यादा सूर्य की किरणें पड़ती हैं, उस विशेष भौगोलिक स्थति को ‘सॉल्स्टिस’ कहा जाता है। इसी के साथ जब पूरी धरती पर बराबर सूर्य की किरणें पड़ती है तो उस स्थति को इक्वीनॉक्स (Equinox) कहा जाता है।

  • ‘सॉल्स्टिस’ साल में दो बार आते हैं।
  • एक ‘समर सॉल्स्टिस’ जिसे जून सॉल्स्टिस भी कहा जाता है, और एक ‘विंटर सॉल्स्टिस’ आता है।
  • इक्वीनॉक्स (Equinox) भी दो होते हैं।
  • एक ऑटोमनल इक्वीनॉक्स और दूसरा स्प्रिंग इक्वीनॉक्स।

‘जून सॉल्स्टिस’ या ‘समर सॉल्स्टिस’

अगर ‘जून सॉल्स्टिस’ की बात करें तो 21 जून या फिर 22 जून को भारत का सबसे बड़ा दिन होता है, इसके पीछे का कारण ये है कि इस दिन धरती, सूर्य का चक्कर लगाते हुए ऐसे एंगल पर पहुंच जाती है कि सूर्य की किरणें ट्रॉपिक ऑफ़ कैंसर लाइन यानी कर्क रेखा पर लंबाई में पड़ती है, जिसके कारण 21 जून साल का सबसे बड़ा दिन होता है। इस दिन सूर्य की किरणें नॉर्थ हेमिसफेयर पर ज्यादा समय तक रहती हैं, जिसके कारण 21 जून को यहां दिन बड़ा होता है और इसे ‘जून सॉल्स्टिस’ या ‘समर सॉल्स्टिस’ के रूप में भी जाना जाता है।

  • बी.बी.सी की रिपोर्ट के अनुसार 21 जून के दिन सूर्य की किरणें 13 घंटे 58 मिनट और 12 सेकंड तक धरती के नॉर्थ हेमिसफेयर पर रहती हैं।
  • अगर आप खगोल विज्ञान की रिपोर्ट्स को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि इस समय अर्थ का नॉर्थ हेमिसफेयर जिसे उत्तरी गोलार्द्ध भी कहा जाता है, वो सूर्य की तरफ पूरी तरह से झुका हुआ रहता है। जिसकी वजह से इस हिस्से पर सूर्य की किरण पूरी तरह से पड़ती है।
  • खगोल विज्ञान की ही रिपोर्ट के अनुसार नॉर्थ हेमिसफेयर का हिस्सा सूर्य की तरफ 23.4 डिग्री से झुका हुआ रहता है।
  • आपको बता दें कि ‘सॉल्स्टिस’ साल में दो बार आता है, पहली बार 21 जून या 22 जून को और दूसरी बार 21 दिसंबर के जाड़े में जब दिन सबसे छोटा होता है।
  • इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार ‘जून सॉल्स्टिस’ के दौरान सूर्य आकाश में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित होता है, मतलब धरती, सूर्य का चक्कर लगाते हुए ऐसे पोजीशन में पहुंच जाती है कि सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर परपेंडीकुलर यानी लंबाई पर पड़ने लगती हैं।   

एक मुख्य बात

नेशनल जियोग्राफिक के डेटा के अनुसार सबसे ज़रूरी बात आपको याद रखनी है कि 21 जून या 22 जून को जब नॉर्थ हेमिसफेयर में ‘समर सॉल्स्टिस’ पड़ता है, ठीक उसी समय ‘अर्थ’ के साउथ हेमिसफेयर में ‘विंटर सॉल्स्टिस’ पड़ता है। इसका कारण साफ़ है कि जब नॉर्थ हेमिसफेयर का हिस्सा सूर्य के पास रहेगा और उसमे ज्यादा रौशनी का प्रवाह होगा तो उसी समय साउथ हेमिसफेयर सूर्य से दूर होगा और उसमे रौशनी का प्रवाह कम होगा। इसी वजह से जब धरती के नॉर्थ हेमिसफेयर में ‘समर सॉल्स्टिस’ होता है तो साउथ हेमिसफेयर में ‘विंटर सॉल्स्टिस’ पड़ता है।

क्या 21 जून 2020 को परछाई हो जाएगी गायब?

ये सही बात है, ग्रीक के मशहूर वैज्ञानिक अराटोस्थेज ने अपनी शोध में पता लगाया था कि जब सूर्य कर्क रेखा के सीधे ऊपर होता है तब कुछ पल के लिए आपकी परछाई भी आपका साथ छोड़ देगी।

  • आपको बता दें कि वैज्ञानिक अराटोस्थेज 21 जून के दिन पृथ्वी पर सूर्य की पड़ने वाली किरण को मापने का प्रयास किए थे।
  • टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार इस साल ‘जून सॉल्स्टिस’ या ‘समर सॉल्स्टिस’ 21 जून को ही पड़ेगा।
  • इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार साल 1975 में ‘समर सॉल्स्टिस’ 22 जून को पड़ा था, अब ऐसा फिर से साल 2203 में होगा।

साल 2020 का ‘जून सॉल्स्टिस’ होने वाला है कुछ अलग

अब आपके मन में सवाल आया होगा कि आखिर इस साल ऐसा क्या होने वाला है? कि ये ‘Summer Solstice’ सबसे अलग होगा। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि दैनिक भास्कर, टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार इस साल 21 जून साल का सबसे बड़ा दिन भी होगा और इसी दिन सदी का दूसरा सबसे लंबा सूर्यग्रहण भी लगने वाला है। 21 जून 2020 इस बार दो संयोगो को साथ लेकर आने वाला है।

  • दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार इस बार जैसी ग्रहों की स्थति बन रही है वैसी स्थति 100 सालों में एक बार बनती है।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस

द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार 21 जून का दिन साल का सबसे बड़ा दिन होने के कारण ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के तौर पर चुना था।

  • 21 जून के दिन से ही दक्षिणी गोलार्द्ध में बसने वालों के लिए सर्द मौसम की शुरुआत मानी जाती हैं।

सरांश

भूगोल बड़ा ही दिलचस्प विषय है, इसे जितना आप समझेंगे उतनी ही आपकी जिज्ञासा और बढ़ती जाएगी। इस लेख के माध्यम से हमने आपको सरल भाषा में ‘जून सॉल्स्टिस’ समझाने की कोशिश की है। उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा प्रयास पसंद आएगा।

चलते-चलते आपको एक और तारीख से रूबरू करवा देते हैं, बता दें कि धरती, सूर्य का चक्कर लगाते हुए 21 सितंबर के आस-पास ऐसी स्थति में पहुंच जाती है कि इस तारीख को यहां दिन और रात की अवधी बराबर होती है। इसी तारीख के बाद से ही दिन के मुकाबले रात बड़ी होने लगती है। 21 सितंबर से शुरू हुई ये प्रक्रिया ‘विंटर सॉल्स्टिस’ यानी 23 दिसंबर तक चालू रहती है। इसी प्रक्रिया के माध्यम से पूरे विश्व में मौसम परिवर्तित होता रहता है।

2 COMMENTS

  1. उम्दा लेख और लिखने की बेहतरीन कला ओपन नौकरी वेल डन ।

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