यह वक्त था जून, 2000 का। जब दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति थे किम डेई-जंग (Kim Dae-jung)। उन्होंने प्योंगयांग (Pyongyang) के लिए उड़ान भरी थी। प्लेन से नीचे अपने कदम उतारते ही भारी भीड़ उनके स्वागत के लिए वहां तैयार खड़ी थी।। मुस्कुराते हुए उत्तर कोरिया के तत्कालीन नेता किम जोंग-ईल (Kim Jong-il) ने किम डेई-जंग का अभिनंदन किया था। एयरपोर्ट पर दोनों ने बड़े ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया था। इसी के साथ तीन दिवसीय Inter Korean summit का आगाज हो गया था। वर्ष 1950 से 1953 तक चले कोरियाई युद्ध के बाद बंट गये दोनों देशों के इतिहास में यह पहला मौका था जब दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया के शीर्ष नेताओं ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया था।
इस लेख में आप जानेंगे:
- Inter Korean Summit साबित हुआ मील का पत्थर
- Sunshine Policy को लेकर संदेह की स्थिति
- देखने को मिले ये उतार-चढ़ाव
- दूसरा Inter Korean Summit
- तीसरा Inter Korean Summit
- चौथा व पांचवां Inter Korean Summit
- वर्तमान में क्या हैं हालात?
- क्या कह रहे दक्षिण कोरिया के विशेषज्ञ?
साबित हुआ मील का पत्थर
Inter Korean summit मील का पत्थर दोनों देशों के लिए साबित हुआ था। इसी दौरान 15 जून के दक्षिण-उत्तर संयुक्त घोषणापत्र (June 15 South-North Joint Declaration) को दोनों देशों ने अपनाया था।
- मिलकर दोनों मुल्कों ने शांति के लिए काम करने का संकल्प लिया था। साथ ही एक बार फिर से दोनों देशों को मिलाकर कोरियाई पेनिंसुला (Korean Peninsula) बनाने की दिशा में भी काम करने का संकल्प लिया गया।
- इसी साल कुछ समय के बाद किम डेई-जंग को शांति के लिए किये गये उनके प्रयास के लिए नोबेल का शांति पुरस्कार देने की भी घोषणा कर दी गई थी। दक्षिण कोरिया से इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले किम डेई-जंग पहले व्यक्ति थे।
Sunshine Policy को लेकर संदेह की स्थिति
भले ही शिखर सम्मेलन आयोजित हो गया था और दोनों देश शांति कायम करने की प्रतिबद्धता के साथ आगे भी बढ़ गये थे, मगर किम की ‘सूर्योदय योजना’ (Sunshine Policy) को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई थी, क्योंकि बड़े पैमाने पर उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रमों (nuclear programs)को बढ़ावा देने के लिए इसमें निवेश करने में जुटा हुआ था। आलोचकों का कहना था कि Inter Korean summit की आड़ में उत्तर कोरिया कैश का जुगाड़ करके अपने परमाणु कार्यक्रमों को गति देने में जुटा है। फिर भी बहुत से लोग इस बात से सहमत होते हैं कि इस अप्रत्याशित शिखर सम्मेलन से कम-से-कम अंतर-कोरियाई संबंधों में शांति तो आई और दोनों देश शांति अभियान चलाने के लिए तत्पर तो हो गये।
देखने को मिले ये उतार-चढ़ाव
बीते 15 जून को इस लैंडमार्क समझौते के 20 साल पूरे हो गये। बीते दो दशकों में अंतर-कोरियाई संबंधों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले।
- दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष देखने को मिला तो नाॅर्थ कोरिया में ज्वाइंट फैक्ट्री पार्क Kaesong Industrial Zone का 2004 में खुलना और 2016 में बंद होना भी देखने को मिला।
- छः पार्टियों की बातचीत देखने को मिली तो कई शिखर सम्मेलन भी आयोजित होते देखे गये।
- वर्ष 2007 में पश्चिम और पूरब को जोड़ने वाली रेल लाइन भी फिर से जोड़ दी गई थी।
- इसी बीच प्योंगयांग परमाणु हथियार और बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करता चला गया।
दूसरा Inter Korean Summit
वर्ष 2007 में दूसरी बार Inter Korean summit का 2 से 4 अक्टूबर तक आयोजन हुआ था। द न्यूयाॅर्क टाइम्स के अनुसार उस वक्त किम डेई-जंग के उत्तराधिकारी रोह मू-ह्यून (Roh Moo-hyun) का कार्यकाल लगभग समाप्त होने वाला था। इससे पहले वर्ष 2006 में उत्तर कोरिया अपना पहला परमाणु परीक्षण कर चुका था, जिससे उत्तर कोरिया के इरादों पर संदेह उत्पन्न होने लगा था कि दक्षिण कोरिया से जो आर्थिक मदद उसे शांति स्थापना के प्रयासों हेतु मिल रहा है, वह वास्तव में इस उद्देश्य के लिए इस मदद का कितना इस्तेमाल कर रहा है। आगामी चुनाव में अपनी पार्टी की हार को भांपते हुए तब रोह मू-ह्यून ने उत्तर कोरिया की यात्रा करके भविष्य के आर्थिक विकास से संबंधित कई समझौतों पर हस्ताक्षर कर दिये थे।
तीसरा Inter Korean Summit
भले ही वर्ष 2018 में 27 अप्रैल को तीसरे Inter Korean summit के दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई-ईन (Moon Jae-in) और उत्तर कोरिया के प्रमुख किम-जोंग ऊन (Kim Jong-un) के बीच आयोजन से उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच संबंध सुधरने की संभावना कुछ हद तक बनी थी। तब पन्मुंजोम घोषणापत्र (Panmunjom Declaration) पर दोनों ने हस्ताक्षर किये थे, जिसके तहत शांति, समृद्धि और कोरियाई पेनिंसुला के एकीकरण के वादे को दोनों देशों ने अंगीकार किया था।
चौथा व पांचवां Inter Korean Summit
26 मई, 2018 को चौथे Inter Korean summit का आयोजन ज्वाइंट सिक्योरिटी एरिया में किया गया, जिसमें मून और किम फिर से मिले थे। दोनों की बैठक इस दौरान दो घंटे तक चली थी। हालांकि, अन्य शिखर सम्मेलन की तरह पहले से इसका ऐलान नहीं किया गया था। फिर 18 से 20 सितंबर, 2018 को पांचवें अंतर-कोरियाई शिखर सम्मेलन का आयोजन प्योंगयांग में किया गया था।
वर्तमान में क्या हैं हालात?
वर्ष 2018 में सिंगापुर में जब पहला उत्तर कोरिया-यूएस शिखर सम्मेलन (North Korea-United States summit) हुआ तो इसमें मून जेई-ईन ने मध्यस्थता का काम किया। सभी को उम्मीद थी कि इसके बाद उत्तर कोरिया परमाणु निरस्त्रीकरण की ओर बढ़ेगा, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है।
- हालांकि, प्योंगयांग इस वक्त आर्थिक मोर्चे पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, क्योंकि नोवेल कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए उसने रुस और चीन से लगी अपनी सीमाओं को बंद कर रखा है।
- उत्तर कोरिया ने बीते हफ्ते न केवल दक्षिण कोरिया से अपने सारे संवाद खत्म कर दिये हैं, बल्कि दक्षिण कोरिया को गंभीर अंजाम भुगतने की धमकी भी वह दे चुका है। उत्तर कोरिया ने सिओल को दुश्मन की तरह ही मानने का निर्णय ले लिया है।
- इस तरह से एक बार फिर से उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के संबंध उसी जगह पहुंचते दिख रहे हैं, जहां ये वर्ष 2000 में पहले अंतर-कोरियाई शिखर सम्मेलन के आयोजन से पहले थे।
क्या कह रहे दक्षिण कोरिया के विशेषज्ञ?
दक्षिण कोरिया के एक प्रमुख अखबार द कोरिया हेरल्ड से बातचीत में Korea Institute for National Unification के अध्यक्ष कोह यू-ह्वान (Koh Yu-hwan) ने कहा है कि स्थिति बेहद गंभीर हो चुकी है और अंतर-कोरियाई संबंध (http://www.koreaherald.com/view.php?ud=20200614000118) एक बार फिर से 15 जून, 2000 से पीछे जाते दिख रहे हैं।
वहीं Korea Institute for Defense Analyses में वरिष्ठ रिसर्च फेलो सुह छू-सुक (Suh Choo-suk) ने इसी अखबार से बातचीत में कहा है कि हमें जल्द ही ऐसे कदम उठाने होंगे, जिनसे कि संबंधों को वापस बिगड़ने से रोका जा सके और दोनों देशों के बीच विनाशकारी सैन्य संघर्ष को टाला जा सके। यह संघर्ष बड़ी विपदा ला सकता है। ऐसे में सरकार को एक बार फिर से अंतर-कोरियाई संवाद स्थापित करने के लिए प्रयास करने ही होंगे।
निष्कर्ष
उत्तर कोरिया के रवैये को देखते हुए और बढ़ते वित्तीय घाटे व आर्थिक संकट की वजह से दक्षिण कोरिया ने कई Inter Korean summit में लिये संकल्प अखंड कोरिया के सपने देखना बंद कर दिया। हाल ही में दक्षिण कोरिया में हुए एक पब्लिक ओपिनियन पोल्स में मुश्किल से 10 से 20 फीसदी लोग ही दोनों कोरियाई देशों के एक होने के पक्ष में नजर आये। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई-ईन ने भी दोनों देशों के एकीकरण को अब भविष्य का लक्ष्य मानकर छोड़ दिया है। दोनों देशों के बीच का रिश्ता 20 साल बाद भी अधर में ही लटका हुआ नजर आ रहा है।
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