Lord Mountbatten का नाम जब भी सामने आता है, तो यही याद आता है कि भारत के दो टुकड़े इन्होंने ही किये थे। इनका पूरा नाम लुईस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन था। हालांकि ये अनौपचारिक तौर पर लॉर्ड माउंटबेटन के नाम से ही जाने गये। अपनी जिंदगी में राईट ऑनरेबल दी विस्काउंट माउंटबेटन ऑफ बर्मा और दी अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा जैसी उपाधि प्राप्त करने वाले लॉर्ड माउंटबेटन की जब 27 अगस्त, 1979 को आयरलैंड में हत्या हो गई तो भारत में सात दिनों का राजकीय शोक भी घोषित किया गया था। इस लेख में हम आपको लॉर्ड माउंटबेटन के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।
इस लेख में आपके लिए है:-
- Lord Mountbatten: जीवन के प्रारंभिक दिनों में
- लॉर्ड माउंटबेटन के परिवार के बारे में
- एक नजर लार्ड माउंटबेटन के करियर पर
- द्वितीय विश्व युद्ध में क्या थी लार्ड माउंटबेटन की भूमिकाॽ
- Lord Mountbatten and India
- Lord Mountbatten से इसलिए था भारत को लगाव
- Lord Mountbatten की मौत पर भारत में मना था राजकीय शोक
Lord Mountbatten: जीवन के प्रारंभिक दिनों में
- अपने माता पिता की लॉर्ड माउंटबेटन चैथी संतान थे। बेटनबर्ग के हाइनेस प्रिंस के तौर पर वे बचपन से ही जाने जाते रहे थे।
- विंडसर में एक बहुत बड़े परिवार में ये पले-बढ़े थे। क्वीन विक्टोरिया का शासन इनके जन्म के समय था।
- पहले पहले 10 वर्षों की प्रारम्भिक शिक्षा लॉर्ड माउंटबेटन ने घर पर ही हासिल की थी। बाद में उनकी पढ़ाई हेर्टफोर्डशायर के लाकर्स पार्क स्कूल में हुई थी। फिर रॉयल नेवी कॉलेज, ओस्बोर्न से आगे की पढ़ाई उन्होंने 1913 की।
लॉर्ड माउंटबेटन के परिवार के बारे में
- Lord Mountbatten का विवाह 18 जुलाई‚ 1922 को एडविन सैंथिया एन्नेट एश्ले से हुआ था। इसके दो साल बाद उनकी पहली बेटी पेट्रीसिया (Patricia) का जन्म हुआ और पेट्रीसिया के जन्म के सात वर्षों के उनकी दूसरी बेटी पामेला का जन्म हुआ ।
- क्वीन एलिजाबेथ की आत्मकथा दी रॉयल सिस्टर्स में एनी एड्वर्डस (Anne Edwards) ने लिखा है कि अपने बच्चों से लॉर्ड माउंटबेटन को बहुत प्यार था। न केवल अपनी बेटियों‚ बल्कि अपनी बहन के बच्चे फिलिप का भी वे पूरा ख्याल रखते थे। फिलीप का विवाह रानी एलिजाबेथ द्वितीय से हुआ था।
एक नजर लार्ड माउंटबेटन के करियर पर
- वर्ष 1916 में लॉर्ड माउंटबेटन रॉयल नेवी का हिस्सा बने थे। एचएमएस-लायन और एचएमएस एलिजाबेथ बोर्ड पर उन्होंने काम किया था।
- प्रथम विश्व युद्ध जब 1919 में समाप्त हो गया तो माउंटबेटन को सब-लेफ्टिनेंट की जिम्मेवारी सौंप दी गई थी। इंजीनियरिंग का कोर्स भी उन्होंने कैंब्रिज के क्राइस्ट कॉलेज से कर लिया था। मेहनत उन्होंने बहुत की। इसका लाभ मिला। वे लेफ्टिनेंट बना दिये गये। एएचएमएस रीनाउन के युद्ध में भी उन्हें भेजा गया था।भारत की यात्रा पर लॉर्ड माउंटेबटन प्रिंस एडवर्ड के साथ आये थे।
- पढाई में विशेष रुचि होने की वजह से नेवी में सेवा देने के दौरान भी उन्होंने 1 पोर्ट्समाउथ सिग्नल स्कूल से 1924 में टेक्नोलोजीकल डेवेलपमेंट और गैजेट की पढाई की। रॉयल नेवी कॉलेज‚ ग्रीनविच के साथ लॉर्ड माउंटेबटन को इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इलेक्ट्रिकल इंजिनियर्स की सदस्यता भी प्राप्त हो गई थी।
- लॉर्ड माउंटेबटन को कमांडर दिसंबर‚ 1932 में बनाया गया था। एचएमएस डेयरिंग को समाप्त करने के लिए उनकी पहली कमांडर की पोस्टिंग 1934 में हुई थी और प्रमोट होकर वे 1937 में कैप्टन बन गये थे।
द्वितीय विश्व युद्ध में क्या थी लार्ड माउंटबेटन की भूमिकाॽ
- केली नामक रणपोत की कमांड लॉर्ड माउंटबेटन को जून‚ 1939 मिली थी। इस दौरान उन्होंने अदम्य साहस दिखाया था और कई सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया था।
- एयरक्राफ्ट करियर एचएमएस इल्यूस्ट्रियस के कैप्टन लॉर्ड माउंटेबटन 1941 में नियुक्त किये गये थे। विंस्टन चर्चिल उन्हें बहुत पसंद करते थे। यही वजह थी कि अपने जीवन में उन्हें कई महत्वपूर्ण पोस्ट एवं रैंक पर नियुक्ति लगातार मिलती गई।
- डीएपी के छापे‚ जो 1942 में मारे गये थे‚ लॉर्ड माउंटबेटन की इसमें खासी भूमिका रही थी। इसकी वजह से बहुत से लोगों की मौत हो गई थी और इसके बाद माउंटबेटन विवादों में घिर गये थे।
- लॉर्ड माउंटबेटन ने इंग्लिश कोस्ट से लेकर नोर्मंडी तक अंडरवाटर आयल पाईपलाइन का निर्माण तो करवाया ही था‚ साथ ही बारूद पेटी‚ कंक्रीट और डूबे हुए जहाजों से उन्होंने कृत्रिम बंदरगाह भी बनवाये थे।
- एम्फीबियस टैंक-लैंडिंग शिप को विकसित करने का श्रेय भी लॉर्ड माउंटबेटन को जाता है।
- सुप्रीम एलायड कमांडर फॉर साउथ एशिया के लिए वर्ष 1943 में चर्चिल और रूजवेल्ट ने लॉर्ड माउंटबेटन के नाम का प्रस्ताव दिया था‚ जिसके बाद सुप्रीम एलायड कमांडर साउथ ईस्ट एशिया कमांड (SEAC) वे नियुक्त कर दिये गये थे।
- जापानियों का आत्मसमर्पण लॉर्ड माउंटबेटन ने वर्ष 1945 में सिंगापुर में करवाया था।
Lord Mountbatten and India
- भारत में अंग्रेजों की छवि को ज्यादा खराब होने से बचाने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने लॉर्ड माउंटेबटन को भेजा था। 20 फरवरी 1947 में लॉर्ड लुइस माउंटबेटन को British India का last viceroy नियुक्त किया गया था।
- आरंभ में माउंटबेटन की कोशिश यही रही थी कि भारत को दो भागों में बांटकर भारत और पाकिस्तान दो अलग मुल्क न बनने दिये जाए‚ मगर जिन्ना के अटल इरादों के सामने लॉर्ड माउंटबेटन को घुटने टेकने पड़े थे।
- भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशाें के स्वतंत्रता दिवस के सम्मेलन में लॉर्ड माउंटबेटन का सम्मिलित होना आवश्यक था। यही वजह रही कि 14 अगस्त और 15 अगस्त दो तारीखें उन्होंने क्रमश: पाकिस्तान और भारत की स्वतंत्रता के लिए तय किये थे। मध्य रात्रि दोनों देशों को आजादी प्रदान की गई थी।
- इसके बाद अधिकतर ब्रिटिश अधिकारी तो भारत से चले गए‚ मगर लॉर्ड माउंटबेटन भारत की राजधानी घोषित की गई नई दिल्ली में ही रुके रहे थे। उन्होंने आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल का पद जून‚ 1948 तक यानी कि अगले 10 माह के लिए संभाला था।
Lord Mountbatten से इसलिए था भारत को लगाव
- Lord Mountbatten and India के बीच के रिश्ते पर 27 अगस्त‚ 1979 के द गार्जियन के संस्करण में एक रिपोर्ट छपी थी‚ जिसमें बताया गया था कि लॉर्ड माउंटबेटन की मौत के बाद भारत में लोगों ने शोक मनाया। आज़ादी के बाद वे भारत के पहले गवर्नर जनरल रहे और फिर 1948 में ब्रिटेन लौट गये‚ मगर फिर भी भारत से बहुत से लोग उन्हें चिट्ठियां लिखा करते थे।
- Lord Mountbatten and Nehru के बीच का रिश्ता भी इतना प्रगाढ़ था कि द गार्जियन के मुताबिक लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू फंड की स्थापना करने में मदद भी की थी। साथ में फंड जुटाने की कवायद का भी वे हिस्सा बने थे।
Lord Mountbatten की मौत पर भारत में मना था राजकीय शोक
- 27 अगस्त‚ 1979 को जब लॉर्ड माउंटबेटन की आयरलैंड में हत्या की खबर सामने आई थी तो भारत सरकार ने उनके सम्मान में देश में सात दिनों के राजकीय शोक की घोषणा करते हुए तिरंगे को आधा झुका दिया था। तब दुनियाभर की मीडिया में इसने काफी सुर्खियां बटोरी थी।
- Lord Mountbatten and Nehru के बीच दोस्ताना संबंधों का ही यह नतीजा था। जवाहर लाल नेहरू ने भारत के गवर्नर जनरल के पद पर उनसे बने रहने का भी अनुरोध किया था।
चलते–चलते
Lord Mountbatten भारत के लिए क्या मायने रखते थे‚ इसका अंदाजा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के इन शब्दों से लगाया जा सकता है कि ‘स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् अपने कारवां को आगे ले जाने में माउंटबेटन ने जिस तरह से भारत को सहयोग देकर समर्थ बनाने में सहायता की, देश के लिए वास्तव में वही उनकी विरासत है’। हालांकि‚ लॉर्ड माउंटबेटन ने जो भारत की आजादी के दौरान भारत के दो टुकड़े किये, उसकी वजह से उन्हें लेकर वाद-विवाद और बहस लोगों के बीच समय-समय पर देखने को मिलती रहते हैं।