‘खादी केवल वस्त्र नहीं, बल्कि विचार है।‘ ये वाक्य भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कही थी। खादी का नाम आते ही आज भी लोगों के जेहन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की छवि आती है। वो तस्वीर जिसमें महात्मा गांधी हाथों में सूत लिए खुद चरखा चलाते हुए नज़र आते हैं। ये तो शायद हर एक भारतवासी जानता है कि गांधी, खादी और आजादी एक- दूसरे के पूरक हैं। खादी हमेशा से ही हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक रहा है। लेकिन धीरे-धीरे अब बदलते वक्त के साथ इसने भी फैशन की दुनिया में अपना नाम शुमार कर लिया है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्या रिश्ता है खादी और महात्मा गांधी का, कैसे हुआ खादी का जन्म और भारत में कैसा रहा खादी का सफर।
क्या है खादी
खादी जिसे खद्दर भी कहा जाता है। खादी हाथ से बनने वाले वस्त्रों को कहते हैं। खादी के कपड़े सूती, रेशम या ऊन से बने हो सकते हैं। इनके लिये बनने वाला सूत चरखे की सहायता से बनाया जाता है। हालांकि बदलते वक्त के साथ इसके निर्माण कार्य में भी बहुत बदलाव आया है। खादी वस्त्रों की विशेषता है कि ये शरीर को गर्मी में ठण्डे और सर्दी में गरम रखते हैं। लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं खादी की असली पहचान महात्मा गांधी और भारत के आजादी की लड़ाई से है।
महात्मा गांधी, खादी और महत्व
खादी भारतीय कपड़ा विरासत का प्रतीक है। भारत की आजादी की लड़ाई में पूरे देश को संगठित करने में महात्मा गांधी, खादी और चरखे का बहुत बड़ा योगदान रहा है। महात्मा गांधी ने उपनिवेशवाद और अन्याय के खिलाफ अपनी लड़ाई के दौरान चरखे का उपयोग किया। इसका मकसद आत्मनिर्भरता और गरीबी के खिलाफ लड़ाई था। जिसके तहत महात्मा गांधी ने खादी का सामान इस्तेमाल करने का अत्यधिक समर्थन किया था। आज़ादी की लड़ाई के वक्त गांधी जी कहते थे कि तुम तब तक सुखी नहीं हो सकते हो, जब तक तुम्हारा समाज सुखी नहीं हो जाता। उन्होंने सुख की परिभाषा को व्यापक बना दिया और उसे जीवनशैली से जोड़ दिया। इसलिए साल १९१८ में उन्होंने देश से गरीबी मिटाने और देश को स्वावलंबी बनाने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की। जिसके तहत देशवासियों को विदेशों से आए कपड़े ना पहनने और देश में बने कपड़े के इस्तेमाल के लिए जागरुक किया गया। इसमें गरीबों ने गांधी जी के साथ मिलकर चरखे की मदद से सूत निकाले और खादी का निर्माण किया और उसका इस्तेमाल भी किया।
खादी के जन्म से जुड़ी महात्मा गांधी की एक आत्मकथा
महात्मा गांधी ने खादी के जन्म को लेकर अपनी एक रोचक आत्मकथा बताई है। महात्मा गांधी कहते हैं कि ‘हमें अब अपने कपड़े तैयार करके पहनने थे। इसलिए आश्रमवासियों ने मिल के कपड़े पहनना बन्द किया और यह तय किया कि वे हाथ-करधे पर देशी मिल के सूत का बुना हुआ कपड़ा ही पहनेगें। इसमें हमें बहुत कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ा। बहुत मुश्किल से हमें कुछ बुनकर मिले, जिन्होंने देशी सूत का कपड़ा बुन देने की मेहरबानी की। इन बुनकरों को आश्रम की तरफ से यह गारंटी देनी पड़ी थी कि देशी सूत का बुना हुआ कपड़ा खरीद लिया जायेगा। इसके बाद देशी सूत का बुना हुआ कपड़ा हमने पहना और इसका प्रचार भी किया। लेकिन ऐसे में तो हम कातनेवाली मिलों के एजेंट बन गए थे, इसलिए हमने तय किया अब हम सूत से कपड़ा खुद ही बुनेंगे और वो भी चरखे की मदद से। हालांकि ये करना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी हमने हार नहीं मानी और कई लोगों की मदद से ये कर दिखाया। क्योंकि जब तक हम हाथ से कातेगें नहीं, तब तक हमारी पराधीनता बनी रहेगी। तो इस तरह खादी का जन्म हुआ।‘
आजादी के बाद खादी
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में खादी का बहुत महत्व रहा। गांधीजी ने १९२० के दशक में गावों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये खादी के प्रचार-प्रसार पर बहुत ज़ोर दिया था। लेकिन आजादी के लगभग एक दशक बाद खादी और ग्रामोद्योग आयोग की स्थापना की गई। खादी को लेकर गांधी जी के सपने को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग वाले मंत्रालय के अधीन कर दिया गया। खादी ग्रामोद्योग आयोग में जब तक खादी के पुराने कार्यकर्ता रहे तब तक काम सही रहा, लेकिन धीरे- धीरे खादी को लेकर लोगों का समर्पण भाव कम होता गया। जिसके बाद समय के साथ खादी कार्यक्रम की दिशा और दशा दोनों ही बिगड़ने लगी। इसके लिए समय- समय पर देश में ‘खादी बचाओ’ जैसे आंदोलन भी हुए हैं।
वर्तमान में खादी
भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए खादी को लेकर महात्मा गांधी की सोच आज फैशन के इस जमाने में कहीं गुम हो गई है। भारत के परिधानों के लिए विदेशी कंपनियों पर काफी हद तक निर्भर हो गया है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि खादी का वजूद भारत से बिल्कुल मिट चुका है। आज खादी ने भारत के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी पैठ बनाई है। वर्तमान में मोदी सरकार ने भी खादी के महत्व और उसको प्रोत्साहित करने पर काफी बल दिया है। हमारे देश में फ़ैशन की दुनिया की जानी-मानी हस्तियों ने भी आज़ादी की पोशाक खादी को बचाने की लड़ाई में योगदान देने की मिसालें पेश की हैं। आज आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश और बिहार आदि राज्यों से लाए गए अलग-अलग तरह की खादी से तैयार किए गए कपड़ों से पश्चिमी और भारतीय दोनों तरह की पोशाकें तैयार की जाती हैं।
निष्कर्ष
खादी का रिश्ता हमारे इतिहास और परंपरा से है। आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी ने खादी को एक अहिंसक और रचनात्मक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। खादी के शस्त्र से गांधी जी ने १९४७ से पहले भारत में शासन जमाकर बैठी विदेशी सल्तनत को चुनौती दी। जिसके बाद खादी विदेशी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बन गई।












































