अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का इतिहास और विवाद का पटाक्षेप

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Ayodhya में Ram Janmabhoomi पर मंदिर बनने का मार्ग सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद प्रशस्त हो गया है। फैसले में मुस्लिम पक्ष को भी 5 एकड़ की जमीन दिया जाना शामिल है। Ayodhya Verdict पर निगाहें पूरे देश की टिकी हुई थीं। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर अयोध्या का मामला इतना महत्वपूर्ण कब, कैसे और क्यों बन गया? इस लेख में इन्हीं सवालों के जवाब आपको पढ़ने के लिए मिलेंगे।

मंदिर और मजिस्द का ऐतिहासिक संदर्भ

इतिहास को कुरदने पर जानकारी मिलती है कि Ayodhya में Ram Mandir और Babri Masjid के इतिहास का chapter सन् 1527 से शुरू होता है, जब अयोध्या के राम कोर्ट इलाके में मुगल सम्राट बाबर के कहने पर एक मस्जिद बनवाई गई थी, जिसका नाम बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद रखा था और जिसे 1940 के दशक तक मस्जिद-ए-जन्म स्थान के नाम से भी जाना जाता था। वहीं, हिंदुओं ने Ayodhya को हमेशा से Ram Janmabhoomi माना।

Ayodhya में Ram Mandir और Babri Masjid विवाद की शुरुआत

सबसे पहले 1853 में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद की शुरुआत मानी जाती है, जब हिंदुओं ने भगवान राम के मंदिर को तोड़कर यहां मस्जिद का निर्माण कराये जाने का आरोप लगाया था। पहली बार इसी दौरान हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच इसे लेकर हिंसक झड़पें हुईं।ब्रिटिश सरकार की ओर से 1859 में तारों की एक बाड़ विवाद को शांत करने के लिए खड़ी कर दी गई। इस दौरान मुस्लिमों को जहां विवादित भूमि के अंदर, वहीं हिंदुओं को बाहर प्रार्थना करने की अनुमति दे दी गई। वर्ष 1885 में फैजाबाद की अदालत में महंत रघुवर दास ने यह मांग करते हुए याचिका दायर की कि बाबरी मस्जिद के बगल में ही राम मंदिर का निर्माण कराया जाए।

रामचंद्र और हाशिम की दोस्ती

वर्ष 1949 में विवादित मस्जिद में जिन लोगों ने मूर्तियां रखी थीं, उनमें महंत रामचंद्र दास परमहंस भी शामिल थे। राम जन्मभूमि मंदिर को लेकर जो आंदोलन शुरू हुआ, वे इसका मुख्य चेहरा भी रहे। फिर भी यहां के मुस्लिमों के साथ उनकी दोस्ती अटूट थी। परमहंस और बाबरी मस्जिद के मुख्य पैरोकार हाशिम अंसारी का तो एक-दूसरे के घर भी आना-जाना था। यहां तक कि मुकदमे की पैरवी तक के लिए दोनों अदालत एक ही कार से जाते थे। अपने-अपने धर्म के लिए लड़ने के बावजूद दोनों की दोस्ती में 6 दिसंबर, 1992 की घटना के बाद भी दरार नहीं आई।

1949 में पूजा का आरंभ

ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1949 में मस्जिद के केंद्रीय कक्ष में कुछ हिंदू भगवान राम की मूर्ति रखकर यहां पूजा करने लगे और मुस्लिमों की ओर से यहां इबादत भी बंद कर दी गई। वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद कोर्ट से एक अपील के जरिये रामलला की विशेष पूजा-अर्चना की अनुमति मांगी। साथ ही महंत परमहंस रामचंद्र दास की ओर से भी इसी वर्ष हिंदुओं के प्रार्थना के अधिकार को बरकरार रखने के लिए मस्जिद को ढांचा करार देते हुए मुकदमा दायर किया गया। निर्मोही अखाड़ा वर्ष 1959 में विवादित स्थल के हस्तांतरण के लिए कोर्ट चला गया। फिर उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वर्ष 1961 में खुद को एक पक्षकार बताते हुए बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया गया।

क्या चाहती थीं इंदिरा गांधी?

इतिहासकारों का मानना है कि वर्ष 1977 में मिली करारी हार के बाद इंदिरा गांधी का भी थोड़ा झुकाव Ayodhya में Ram Janmabhoomi मंदिर की ओर हुआ था। उस वक्त उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने विवादित परिसर से सटी जमीन का अधिग्रहण राम-कथा पार्क बनाने के लिए किया था और इसके बारे में माना जाता है कि इंदिरा गांधी की इसमें सहमति थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कुछ समय तक आंदोलन के दबे रहने के बाद एक फरवरी, 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पांडेय द्वारा तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मंजूरी से विवादित परिसर के ताले को खुलवा दिया गया।

1989 में मंदिर का शिलान्यास

ताला खोले जाने की वजह से मुस्लिम वर्ग में नाराजगी पैदा हो गई और उन्होंने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित कर ली। विश्व हिंदू परिषद के आंदोलन को दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी का समर्थन मिलने लगा। इस तरह से राम मंदिर की मांग धीरे-धीरे आंदोलन में परिवर्तित हो गयी। रामलला विराजमान नाम से वर्ष 1989 में पांचवां मुकदमा दायर हुआ और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार की ओर से 9 नवंबर, 1989 को बाबरी मस्जिद के पास मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दे दी गई।

गिराया गया विवादित ढांचा

बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना सहित कई हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे को गिरा दिया, जिसके बाद देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा। इन दंगों में दो हजार से भी अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

वर्ष 2002 के बाद

वर्ष 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय आया, जिसमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में विवादित जमीन को बांटने का आदेश दिया। हालांकि, वर्ष 2011 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर सर्वोच्च न्यायलय की ओर से रोक लगा दी गई।

Ayodhya Verdict

Ayodhya में Ram Mandir और Babri Masjid विवाद पर 6 अगस्त, 2019 से लगातार 40 दिनों तक सुनवाई चली। इसके बाद 9 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पांच जजों की संविधान पीठ ने Ayodhya पर verdict देते हुए विवादित जमीन का अधिकार रामजन्मभूमि न्यास को दे दिया। वहीं, मुस्लिम पक्ष यानी कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही दूसरी जगह 5 एकड़ की भूमि देने का आदेश दिया। केंद्र सरकार को कोर्ट ने राम मंदिर के निर्माण के लिए तीन माह के अंदर ट्रस्ट गठित करने का भी निर्देश दिया।

चलते-चलते

अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास को जानने के बाद आप अयोध्या विवाद और इसके अंत को समझ चुके होंगे। उम्मीद करें कि आगे इस तरह के विवाद दोबारा न पैदा हों।

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