याद करिए 5 अक्टूबर साल 2011, भारतीय गणराज्य में यूपीए सरकार थी। उसी दिन भारतीय सरकार ने दुनिया का सबसे सस्ता टैबलेट “आकाश” (Aakash tablet) की सौगात भारतीय स्टूडेंट्स को दी थी।
दिल्ली में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच लॉन्च हुआ था दुनिया का सबसे सस्ता टैबलेट। उस टैबलेट पर मेड इन इंडिया का टैग था।
सरकारी तंत्र का लक्ष्य था कि Aakash tablet को स्टूडेंट्स को 1750 रुपए में उपलब्ध करवाया जाए। Aakash tablet के price ने उसे दुनिया का सप्से सस्ता टेबलेट बनाया।
उस दौर के मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि “आज भारतीय सरकार ने वो कर दिखाया है जिसे असंभव की कैटेगरी में रखा गया था। ये टैबलेट स्टूडेंट्स के लिए क्रांति का काम करेगा। हम इंटरनेट को हर उस तबके तक पहुंचाना चाहते हैं जहां पर क्रांति की उम्मीद की जा सकती है।”
इस लेख के मुख्य बिंदु-
- “आकाश” Tablet के निर्माण का जिम्मा किस कंपनी ने उठाया था?
- Aakash tablet का प्रस्ताव कब पेश किया गया था?
- आकाश टैबलेट के कुछ फैक्ट्स
- आखिर क्यों हो गया मिशन “आकाश” फेल (What caused Aakash tablet failure)?
- सारांश
“आकाश” Tablet के निर्माण का जिम्मा किस कंपनी ने उठाया था?
आपको बता दें कि टैबलेट आकाश (Aakash tablet) को भारत के शीर्ष आईटी कॉलेज में तैयार किया गया था। आकाश का निर्माण विदेशी कम्पनी डाटाविंड ने किया था।
आकाश टैबलेट (Aakash tablet) का प्रस्ताव कब पेश किया गया था?
आपको अवगत करा दें कि 22 जुलाई 2010 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश के स्टूडेंट्स के लिए आकाश टैबलेट के प्रस्ताव को देश के सामने पेश किया था।
इस टैबलेट के प्रस्ताव को देश के स्टूडेंट्स को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए पेश किया गया था।
आकाश टैबलेट (Aakash tablet) के कुछ फैक्ट्स
- आकाश टैबलेट (Aakash tablet) एंड्रॉयड आधारित टैबलेट था। इसकी शुरुआती कीमत 2250 रुपए रखी गयी थी।
- डाटाविंड कम्पनी सरकार को ये टैबलेट 2263 रुपए में उपलब्ध कराती थी। भारतीय सरकार की तरफ से स्टूडेंट्स को सब्सिडी दी जाती थी। जिसके बाद आकाश टैबलेट 1130 रुपये में विद्यार्थियों को उपलब्ध करवाया जाता था।
- आपको बता दें कि आकाश टैबलेट (Aakash tablet) में 7 इंच की टच स्क्रीन, 256 एमबी रैम और एआरएम 11 प्रोसेसर हुआ करता था।
- Aakash tablet एंड्रायड 2.2 ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करता था।
- आकाश टैबलेट को बनाने के लिए ब्रिटिश-कनाडाई कंपनी डाटाविंड ने हैदराबाद में यूनिट लगाई थी.
- Aakash tablet के प्रोटोटाइप को भारतीय सरकार ने 22 जुलाई, 2010 को देश की जनता के सामने जारी किया था।
भारतीय सरकार चाहती थी कि देश के 25 हजार कॉलेजों और चार सौ यूनिवर्सिटी को ई-लर्निंग कार्यक्रम के तहत आपस में जोड़ सकें। इसी मकसद के तहत उन्होंने आकाश टैबलेट को देश की जनता के सामने लॉन्च किया था।
आखिर क्यों हो गया मिशन “आकाश” फेल (What caused Aakash tablet failure)?
साल 2011 में जिस धूम-धाम से आकाश को लॉन्च किया गया था। तब किसे पता था?
कि साल 2019 आते-आते आकाश धड़ाम से जमीन पर गिर भी पड़ेगा। इसे बनाने वाली कंपनी डाटाविंड ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को बंद कर दिया है।
जिस तरह सफलता का कोई एक कारण नहीं होता है। उसी तरह विफलता का भी कोई एक कारण नहीं हो सकता है। चलिए अब हम समझने की कोशिश करते हैं कि आखिरकार आकाश के फेल होने का क्या कारण था? जिस टैबलेट को इतनी शिद्दत से पेश किया गया था। उसका ऐसा हश्र क्यों हुआ?
(इस पहलू को समझने के लिए हम इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट पर नजर डालते हैं)
- डाटाविंड ने जिस ‘आकाश’ को इंटरनेट में क्रांति के तौर पर भारत में लांच किया था। इस टैबलेट को उन्होंने स्टूडेंट्स को हजार रुपए से कुछ ज्यादा कीमत में प्रोवाइड करने का भरोसा दिलाया था। फिर आखिरकार स्टूडेंट्स ने ही आकाश को अपनाने से इंकार क्यों कर दिया था?
- अर्थशास्त्रियों ने नोटबंदी,जीएसटी और देश में टैक्स स्ट्रक्चर को “आकाश” फेल (Aakash tablet failure) के पीछे का मुख्य कारण माना है।
- डाटाविंड के सीईओ सुनील सिंह तूली ने मीडिया से बात करते हुए “आकाश” के फेल (Aakash tablet failure) होने का कारण बताते हुए कहा था कि दो बड़ी चुनौतियों ने इस टैबलेट के सफर को खत्म कर दिया था।
बकौल सुनील सिंह- “हमने इस टैबलेट को जिस टारगेट ऑडियंस के हिसाब से बनाया था। उनके ऊपर नोटबंदी का काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा। कम्पनी के ऊपर कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ने लगा था। ये कर्ज़ 250 करोड़ तक पहुंच चुका था।”
- डाटाविंड कम्पनी की तरफ से ये भी कहा गया था कि हमारे ग्राहक लोवर सेक्शन से आते थे। जो कैश ऑन डिलीवरी पर ख़रीदारी करते थे। लेकिन नोटबन्दी के बाद से सभी बिजनेस बुरी तरह से ठप्प हो गए थे। जिसका असर कम्पनी के उत्पादन पर भी पड़ा था।
- डाटाविंड के सीईओ सुनील सिंह तूली ने आगे कहा है कि टैबलेट पर 18 प्रतिशत का जीएसटी लगता है। वहीं स्मार्टफोन पर बस 12 प्रतिशत जीएसटी लगता है। हमारा मानना है कि सरकार को एजुकेशन डिवाइस पर जीएसटी का दर कम करना चाहिए था। टैक्स का ऐसा सिस्टम तैयार किया गया जिसमें व्यापार करना मुश्किल हो गया था।
सारांश
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में साल 2010 में आकाश टैबलेट परियोजना की शुरुआत हुई थी। 5 अक्टूबर 2011 को टैबलेट को जनता के सामने लॉन्च भी कर दिया गया था।
तब के तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने इस योजना को काफी कारगर बताया था। साथ ही यह भी बताया था कि इतने कठिन लक्ष्य को भारतीय सरकार ने काफी प्रतिबद्धता से हासिल किया है। लेकिन आकाश के लॉन्च होने के बाद से ही कई वर्गों में इसको लेकर शिकायतें भी आने लगी थीं। सरकार के सस्ते टैबलेट से स्टूडेंट्स भी खुश नहीं थे। जाहिर सी बात है कि सरकार जिस योजना के तहत आकाश को लॉन्च की थी। वो योजना पूरी तरह से विफल साबित हुई थी। इसके विफलता का मुद्दा साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उठा था।
कई अर्थशास्त्रियों ने इस बात को माना है कि आकाश टैबलेट परियोजना के पीछे रिसर्च पर्याप्त नहीं की गई थी। उसी का असर है कि टैक्सपेयर जनता के पैसों के साथ भी खिलवाड़ किया गया था।
22 जुलाई 2010 हो या 5 अक्टूबर 2011 सवाल वहीं पर आकर खड़ा होता है कि सरकारें आती हैं। नीतियां बनाती हैं और उसी नीतियों को जनता के ऊपर लाद देती हैं। नीतियां असफल होती हैं तो पैसों की बर्बादी किसी और की नहीं बल्कि जनता की ही होती है।