मिल्खा सिंह- The Flying Sikh

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Milkha Singh
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18 जून 2021 को देश ने अपने पहले स्वर्ण एथलीट ‘फ्लाइंग सिख’ को खो दिया। मिल्खा सिंह को इसी नाम से दुनिया जानती है, मिल्खा सिंह का चला जाना निश्चित ही भारतीय खेल जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है, किन्तु इससे भी बड़ी हमारे लिए एक ओर क्षति है कि हमने खेलो के प्रति जूनून का ऐसा जीवंत व्यक्तित्व खो दिया है , जिसकी जीवनी से हमें हमेशा से प्रेरणा मिलती रही हैं। मिल्खा सिंह की जीवनी पर बनी फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ ने उनके खेल के प्रति समर्पण और जूनून को घर-घर तक पहुंचा दिया था। मिल्खा सिंह ने यह उपलब्धी तब हासिल की थी जब देश मे खेलों के लिए बेसिक सी सुविधाएँ भी नहीं थी। मिल्खा सिंह के निधन से कुछ दिन पूर्व ही, 13 जून को उनकी पत्नी निर्मल कौर का भी निधन हो चुका है। आज के इस श्रद्धांजलि लेख मे हम आपके लिए लायें हैं , मिल्खा सिंह से जुड़ी उन तमाम जानकारियों को जो हमें और आपको आने वाले कई वर्षों तक प्रेरणा देती रहेंगी। तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं – मिल्खा सिंह -‘The Flying Sikh’

इस लेख मे आपके लिए हैं

  • प्रारंभिक जीवन
  • मिल्खा बनने का सफ़र
  • ऐसे मिला ‘Flying Sikh’ नाम
  • मिल्खा सिंह की उपलब्धियां
  • ऐसे बनी फिल्मभाग मिल्खा भाग
  • मिल्खा सिंह से जुड़ी अन्य रोचक जानकारी

प्रारंभिक जीवन

  • मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 को अविभाजित हिंदुस्तान के गोविंदपुरा , पंजाब मे हुआ था , अब यह स्थान पाकिस्तान के मुज्जफरगढ़ का हिस्सा है।
  • मिल्खा सिंह के परिवार मे 10वे नम्बर के भाई थे, उनके परिवार मे कुल 15 भाई-बहन थे। मिल्खा सिंह की स्कूली शिक्षा केवल 10वी तक थी।
  • साल 1947 के भारत विभाजन का सबसे गहरा असर मिल्खा सिंह के जीवन मे पड़ा, उनके माता-पिता सहित परिवार के कई सदस्यों को दंगाइयों ने उनके सामने मार डाला था।
  • मिल्खा सिंह अपने भाई के साथ पाकिस्तान से  महिला बोगी मे छिपकर हिंदुस्तान पहुंचे थे। उन्होंने अपने संघर्ष के कई दिन दिल्ली मे शरणार्थी शिविरों मे रहकर तथा रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों मे बर्तन मांझकर काटे थे।
  • शरणार्थी शिविर से मिल्खा अपनी बहन के यहाँ चले गए तथा वहीँ से भारतीय सेना मे भर्ती की तैयारी करने लगे। सेना भर्ती मे चार असफल प्रयासों के बाद साल 1951 मे उन्होंने सेना की भर्ती पास की थी।

मिल्खा बनने का सफ़र

  • मिल्खा सिंह ने भर्ती के दौरान मैराथन दौड़ मे छठा स्थान प्राप्त किया था , जिससे उन्हें सेना के खेल कोटे से  विद्युत् -यांत्रिक इंजीनियरिंग डिवीज़न मे भर्ती किया गया था।
  • मिल्खा के अंदर दौड़ने के प्रति उत्साह बचपन से ही था। अपने स्कूली दिनों मे घर से स्कूल तक की 10 किलोमीटर की दूरी मिल्खा दौड़कर ही पूरी करते थे।
  • सेना मे ट्रैंनिंग के दौरान एक 6  मील दौड़ प्रतियोगिता रखी गयी थी जिसमे प्रतिभाग करने वाले खिलाड़ी को रोज 1 गिलास अतिरिक्त दूध दिया जा रहा था। दूध के लालच मे मिल्खा ने इस दौड़ प्रतियोगिता मे प्रतिभाग किया और पहले 6 खिलाड़ियों मे जगह बना ली।
  • मेलबर्न ओलम्पिक(1956 ) खेलों मे चयन के दौरान मिल्खा सिंह के साथ एक बुरा वाक्या घटित हुआ था, 400 मीटर क्वालीफाइंग रेस से ठीक एक दिन पहले कुछ अज्ञात लोगों ने सोते हुए मिल्खा सिंह के ऊपर कंबल डालकर हमला कर दिया।
  • इस घटना मे चोटिल होने के बावजूद मिल्खा सिंह ने अगले दिन क्वालीफाइंग रेस मे भाग और उस रेस मे पहला स्थान प्राप्त करके ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया था।
  • 1956 मेलबर्न ओलम्पिक मिल्खा सिंह का प्रदर्शन खास नहीं रहा था , लेकिन वहां उनकी मुलाकात विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस से हुई।चार्ल्स जेनकिंस से मिल्खा ने दौड़ के गुर सीखे जो उन्हें आगे बहुत काम आये।
  • इसके बाद के वर्षो मे मिल्खा ने एशियाई खेल , कॉमनवेल्थ तथा नेशनल गेम्स मे गोल्ड और रिकार्ड्स की झड़ी लगा दी थी।
  • साल 1958 टोक्यो एशियाई गेम्स  मे 200 मीटर रेस मे मिल्खा सिंह ने तात्कालिक सर्वश्रेठ खिलाड़ी अब्दुल खालिक को फोटो फिनिश के साथ पराजित किया था।
  • फोटो फिनिश से तात्पर्य है कि जब जीत का निर्णय नहीं हो पा रहा हो तब विजयी रेखा पर मौजूद कमरे मे कैद तस्वीर से जीत -हर का फैसला किया जाता है।
  • कॉमनवेल्थ गेम साल 1958 मे मिल्खा ने विश्व के सर्वश्रेठ एथलीट्स मे से एक अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को 400 मीटर की रेस मे पराजित किया था। इस दौड़ को जीतने  के बाद मिल्खा सिंह ट्रैक मे ही बेहोश हो गए थे। 
  • साल 1960 रोम ओलम्पिक के 400 मीटर दौड़ जो अपने आप मे एक रिकार्ड्स होल्डर दौड़ थी। इसमें मिल्खा सिंह के साथ मे अमेरिका के ओटिस डेविस , जर्मनी के कार्ल कॉफमेन जैसे दिग्गज भाग ले रहे थे।
  • इस दौड़ मे 250 मीटर की रेस तक मिल्खा सिंह आगे चल रहे थे , किन्तु उन्हें ऐसा महसूस हुआ की यदि वे इसी स्पीड से दौड़ते रहे तो शायद उनके फेफड़े फट जाये , उन्होंने अपनी स्पीड को कुछ धीमा किया और साथ मे पीछे मुड़कर अन्य प्रतिभागियों की स्थिति ज्ञात करनी चाही। इसी बीच उनसे तीन प्रतिभागी दौड़ मे आगे निकल गए और यह दौड़ मिल्खा सिंह ने चौथे स्थान के साथ वर्ल्ड रिकार्ड्स टाइम 45.32 sec मे पूरी की थी।
  • रोम ओलम्पिक मे अच्छा प्रदर्शन न कर पाने से निराश मिल्खा ने एक बार सन्यास लेने का मन बना लिया था। किन्तु अपने सीनियर्स और साथी खिलाड़ियों की सलाह पर उन्होंने एक बार फिर से ट्रैक मे वापसी की और जकार्ता एशियाई गेम मे उम्दा प्रदर्शन किया।

ऐसे मिला ‘Flying Sikh’ नाम

  • बात साल 1960 की है, तब तक अंतराष्ट्रीय स्तर पर मिल्खा सिंह का काफी नाम हो चुका था। उस समय पाकिस्तान के उमर खालिद का विश्व स्तर पर दौड़ मे बहुत नाम था।
  • पाकिस्तान ने  इंटरनेशनल एथलीट कंपीटीशन मे अब्दुल खालिक के साथ मिल्खा सिंह को दौड़ मे भाग लेने का न्यौता दिया, किन्तु भारत विभाजन मे परिवार की मौत का दर्द मिल्खा को पाकिस्तान जाने से रोक रहा था।
  • मिल्खा ने पाकिस्तान जाने से मना कर दिया था। तब भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के विशेष आग्रह पर मिल्खा सिंह पाकिस्तान जाने को राजी हुए थे।
  • मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान जाकर  इंटरनेशनल एथलीट कंपीटीशन मे उम्दा प्रदर्शन करते हुए अब्दुल खालिक को हरा दिया था। तब मिल्खा सिंह को दौड़ता हुआ देखने के लिए स्टेडियम मे आयी महिलाओं ने अपना बुरखा उतार दिया था।
  • जिस दौड़ मे मिल्खा ने अब्दुल खालिक को हराया था। उस दौड़ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री फील्ड मार्शल अयूब खान भी देख रहे थे, उन्होंने मिल्खा की तारीफ मे कहा -मिल्खा ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो’ आज से दुनिया तुम्हे ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से जानेगी। इस तरह से मिल्खा को ‘उड़न सिख’ या ‘फ्लाइंग सिख’ कहा जाने लगा।

मिल्खा सिंह की उपलब्धियां

  • वर्ष 1958 टोक्यो, एशियाई गेम्स में 200 मीटर व 400 मी में स्वर्ण पदक.
  • वर्ष 1958 कार्डिफ, कॉमनवेल्थ गेम्स में 400 मीटर स्वर्ण पदक जीता.
  • वर्ष 1958 कटक राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम.
  • वर्ष 1958 कटक राष्ट्रीय खेलों की 200 मीटर रेस में – प्रथम.
  • वर्ष  1958 एशियाई खेलों के बाद आर्मी मे मानद कैप्टेन सम्मान.
  • वर्ष 1959 में – पद्मश्री पुरस्कार.
  • वर्ष 1962 जकार्ता एशियाई खेलों की 400 मीटर दौड़ में  स्वर्ण पदक.
  • वर्ष 1962 जकार्ता एशियाई खेलों की 4*400 रिले रेस में  स्वर्ण पदक.
  • वर्ष 1964 के कलकत्ता राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में – द्वितीय.

ऐसे बनी फिल्मभाग मिल्खा भाग

  • मिल्खा सिंह की बेटी सोनिया सांवलका ने अपने पिता के जीवन पर आधारित एक बुक लिखी है , जिसका नाम है ” रेस ऑफ माई लाइफ”। यह बुक साल 2013 मे प्रकाशित हुई थी। 
  • इस किताब के प्रकाशित होने के बाद फिल्म निर्माता राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने उनके जीवन पर फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ बनाने का निर्णय लिया।
  • अपने जीवन पर आधारित फिल्म के लिए मिल्खा सिंह ने मात्र 1  रुपया लिया था। यह एक रुपया साल 1958 मे छापा गया था। मिल्खा सिंह ने इसे अपने पहले कॉमनवेल्थ गेम मे स्वर्ण पदक की याद के रूप मे संजोकर रखा है। 
  • ‘भाग मिल्खा भाग ‘ फिल्म मे अभिनय के लिए अभिनेता फरहान अख्तर ने भी मात्र एक रुपया मेहताना लिया था।

मिल्खा सिंह से जुड़ी अन्य रोचक जानकारी

  • मिल्खा सिंह आजाद भारत के पहले ऐसे एथलीट थे जिन्होंने भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स मे स्वर्ण पदक दिलाया था। कॉमनवेल्थ गेम्स मे दौड़ मे स्वर्ण पदक का उनका रेकॉर्डस लगभग 50 वर्षों के बाद दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों मे भारत के कृष्णा पूनिया ने तोड़ा था।
  • ऐसा माना जाता है कि मिल्खा सिंह ने अपने जीवन मे लगभग 80 अंतरराष्ट्रीय दौड़ मे प्रतिभाग किया था तथा उसमे से 77 दौड़ों में मिल्खा ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
  • उनकी पत्नी निर्मल कौर भारतीय वालीबॉल टीम की कप्तान थीं। उनके साथ मिल्खा  की प्रथम मुलाकात कोलोंबो मे खेल टूर के दौरान हुई थी।
  • निर्मल कौर मिल्खा की बहुत बड़ी प्रशंसक थी , साल 1960 मे इन दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी और उन्होंने शादी करने का फैसला किया था।
  • मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की शादी की मंजूरी मे निर्मल कौर के पिताजी रजामंद नहीं थे। तब पंजाब के तात्कालिक मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के बीच मे आने से निर्मल कौर के पिताजी ने शादी की मंजूरी प्रदान की थी।
  • साल 1962 मे मिल्खा सिंह और निर्मल कौर शादी के बंधन मे बंध गए। इस जोड़े के 3 पुत्रियां तथा एक पुत्र है, प्रसिद्ध गोल्फर जीव मिल्खा सिंह इन्ही के पुत्र हैं।
  • साल 1960 रोम ओलम्पिक मे मिल्खा सिंह द्वारा पहने गए जूतों को, मिल्खा सिंह द्वारा दृष्टिहीन बच्चों की मदद के लिए नीलाम किया था।
  • मैडम तुसाद म्यूजियम में मिल्खा सिंह को सम्मान देने के लिए उनका मोम का पुतला लगाया गया है। पुतले को देखकर मिल्खा सिंह ने कहा था की यह पुतला आने वाले समय मे दुनिया को मेरी याद दिलाता रहेगा।
  • रोम ओलंपिक का मेडल हाथ से जाने का गम उन्हें जीवन भर रहा। उनकी आखिरी इच्छा थी कि वह अपने जीते जी किसी भारतीय खिलाड़ी के हाथों में ओलंपिक मेडल देखें लेकिन अफसोस उनकी अंतिम इच्छा उनके जीते जी पूरी न हो सकी।
  • मिल्खा सिंह की अंतिम यात्रा मे उनके साथ उनके हाथ मे उनकी पत्नी निर्मल कौर की तस्वीर रखी गयी थी। ये घटना उनके अपनी पत्नी के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक है।

चलते चलते

देश मे मिल्खा सिंह सरीखी अनेकों खेल हस्तियां हैं जिन्होंने देश के सामने एक उदाहरण बनकर हमे खेलने की प्रेरणा दी है। कर्णम मल्लेश्वरी, पी टी ऊषा, कपिल देव, मेजर ध्यानचंद , अभिनव बिंद्रा , विश्वनाथन आनंद ,सुशील कुमार, बाई चुंग भूटिया, मैरीकॉम तथा गीता -बबिता फोगाट ये सब ऐसे खेल व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपने सम्बंधित खेल क्षेत्र मे पीछे की पीढ़ी के लिए जीतने की राह आसान बनायी है। लोग इन खेल व्यक्तित्वों से प्रेरणा लेकर अपने बच्चों को खेल क्षेत्र मे भी बढ़ावा दे रहें हैं। इसी का परिणाम है की आज देश का नाम  विराट कोहली, सुनील छेत्री, सरदार सिंह ,सानिया नेहवाल, पी वी संधु सरीखे खिलाड़ी आगे बढ़ा रहे हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं की आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आ रही है। देश -दुनिया के अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भरे लेखो के लिए Opennaukri से जुड़े रहें।

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