भारत और पाकिस्तान दक्षिणी एशिया के दो परमाणु शक्ति सम्पन्न पड़ोसी देश जो लगभग समान भौगौलिक परिस्थितियाँ, भाषा, कद -काठी, रूप-रंग , वेश-भूषा आदि साझा करते हैं। दोनों देशो के बीच सीमा का विस्तार हो या क्रिकेट का बुखार हो या आतंकवाद पर तकरार हो, हर मुद्दा दुनिया भर की मीडिया का केंद्र बना रहता है। हमने अक्सर सीज़फायर का उल्लंघन, सीमापार से आतंकवाद आदि मुद्दों पर दोनों देशो का विवाद देखा है। ये बात हम सब जानते हैं ,दोनों देशो के बीच सबसे ज्यादा ज्वलंत मुद्दा आतंकवाद का ही है। किन्तु इसके अलावा भी एक मुद्दा और है जो पिछले 60 सालों से दोनों देशों के बीच जल संधि के रूप मे कायम है। आज के इस लेख मे हम भारत-पाकिस्तान के बीच मौजूद विवादित सिंधु जल संधि समझौते के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे।
इस लेख मे हम चर्चा करेंगे –
- क्या है सिंधु जल-संधि?
- सिंधु जल-संधि का इतिहास
- सिंधु जल-संधि की शर्तें?
- सिंधु जल-संधि मे विवाद का विषय?
- क्या भारत सिंधु जल-संधि को समाप्त कर सकता है?
- सिंधु जल-संधि समझौता से सम्बंधित तथ्य
क्या है सिंधु जल–संधि?
- दोस्तों आप लोगों की जानकारी के लिए मैं एक बात यहाँ पर बता देना चाहता हूँ , कि प्राकृतिक रूप से पाकिस्तान मे कोई भी ऐसी नदी नही है, जिसका उद्गम स्थान पाकिस्तान मे हो। अतः पाकिस्तान पानी की जरूरतों के लिए प्रत्यक्ष रूप से भारत से होकर बहने वाली नदियों पर निर्भर करता है।
- भारत से होकर पाकिस्तान मे 6 नदियां बहती हैं , जो आगे चलकर अरब सागर मे गिरती हैं। ये नदियां सिंधु , चिनाब , झेलम , रावी, सतलज तथा व्यास हैं।
- हिंदुस्तान के विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बॅटवारे को लेकर सिंधु जल-संधि की नीव रखी गयी। इसके सभी प्रोटोकोलों के पालन के लिए सिंधु जल संधि आयोग का गठन किया गया था। आगे चलकर यही समझौता सिंधु जल-संधि समझौते के रूप मे चर्चित हुआ था।
सिंधु जल–संधि का इतिहास
- जब हिंदुस्तान विभाजित नही हुआ था। तब पाकिस्तान का वर्तमान सिंचित क्षेत्र पंजाब का हिस्सा हुआ करता था। उस समय अंग्रेजी हुकूमत ने पंजाब क्षेत्र मे पानी की समस्या को देखते हुए, यहाँ पर भाखड़ा नांगल बांध का निर्माण कराया था।
- भाखड़ा -नांगल बांध से पूरे पंजाब मे सिंचाई के लिए नहरों का जाल बिछाया गया। इन नहरों के जल से सम्पूर्ण पंजाब क्षेत्र बहुत उपजाऊ हो गया।
- जब साल 1947 हिंदुस्तान का विभाजन हुआ, उस समय पंजाब क्षेत्र को पूर्वी पंजाब तथा पश्चिमी पंजाब मे विभाजित किया गया। पूर्वी पंजाब भारत के तथा पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान के हिस्से मे आ गया।
- दोनों हिस्सों की नहरों का विभाजन भी उनकी स्थिति के अनुसार कर दिया गया। किन्तु जल की समस्या का समाधान नही हो पा रहा था। आखिरकार जल को कैसे दो देशों मे विभाजित किया जाये।
- 20 दिसंबर 1947 को पूर्वी पंजाब और पश्चिमी पंजाब के चीफ इंजीनियर्स के बीच एक बैठक आयोजित कराई गयी, जिसके अनुसार यथा स्थिति जल का बहाव 31 मार्च 1948 तक पश्चिमी पंजाब की नहरों मे बना रहेगा।
- इस समय अंतराल मे भारत तथा पाकिस्तान के कश्मीर को लेकर सम्बन्ध बिगड़ गए। जल बॅटवारे को लेकर कोई बीच का रास्ता नही निकल पाया था।
- 1 अप्रैल 1948 को भारत ने पाकिस्तान की नहरों का पानी रोक दिया। चूँकि पाकिस्तान पानी के लिए पूर्ण रूप से भारत से होकर बहने वाली नदियां पर निर्भर है , वहां के हालत बिगड़ गए सूखे की नौबत आ गयी।
- जल बंटवारे का मामला दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। साल 1949 मे डेविड लिलियंथल ने इस मामले को राजनीतिक के बजाय तकनीकी तरीके से सलझाने का सुझाव दिया। डेविड लिलियंथल एक अमेरिकी विशेषज्ञ और टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख थे।
- भारत के तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस जल बॅटवारे को अमेरिका -कनाडा जल संधि के समान करना चाहते थे। वे एक स्थायी और दूरदर्शी समाधान के पक्ष मे थे।
- जवाहरलाल नेहरू जी ने डेविड लिलियंथल को भारत बुलाकर जल बॅटवारे की समस्या का एक उचित हल निकालने का प्रयास किया गया।
- डेविड लिलियंथल ने भारत और पाकिस्तान दोनों की जरूरतों को ध्यान मे रखते हुए। इस जल बंटवारे पर एक किताब लिखी।
- साल 1951 मे उनकी इस किताब को तात्कालिक विश्व बैंक के प्रमुख और उनके मित्र डेविड ब्लैक मे पढ़ा। इस किताब को पढ़कर उन्होंने दोनों देशो से संपर्क स्थापित करके जल बॅटवारे के लिए मध्यस्थता की पेशकश की।
- साल 1951 से साल 1960 तक लगभग 10 वर्षों तक भारत-पाकिस्तान के बीच जल बॅटवारे को लेकर बैठकों और बातचीत का दौर चलता रहा।
- अंत में दोनों देश 19 सितम्बर 1960 को इस संधि की शर्तों पर राजी हुए थे। तब भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच कराची मे इस इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। इतिहास मे यह समझौता सिंधु जल-संधि के नाम से जाना गया।
- सिंधु जल-संधि समझौते की शर्तों को 12 जनवरी, 1961 से लागू किया गया था।
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सिंधु जल–संधि की शर्तें?
- भारत से होकर पाकिस्तान सिंधु, झेलम, चिनाब , रावी , सतलज तथा व्यास प्रवाहित होती हैं। इन्हे पूर्वी तथा पश्चिमी नदियां मे बांटा गया। सतलज, रावी तथा व्यास पूर्वी नदियां बताई गयी तथा इनके जल पर भारत को पूर्ण अधिकार दिया गया। चिनाब, झेलम तथा सिंधु नदियों को पश्चिमी नदी कहा गया तथा इनके जल पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया।
- चूँकि पश्चिमी नदियां भारत से होकर गुजरती हैं, इसलिए भारत को पश्चिमी नदियों के जल मे सीमित अधिकार दिये गये। जैसे भारत ‘रन ऑफ द रिवर’ प्रोजेक्ट अर्थात बिना पानी का बहाव रोके जल-विद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त भारत को पश्चिमी नदियों पर नौ –परिवहन तथा कृषि कार्य के लिए जल उपयोग का अधिकार भी दिया गया है।
- संधि के तहत भारत को सामान्य उद्देश्य, बिजली उत्पादन और फ्लड स्टोरेज के लिये पश्चिमी नदियों पर क्रमशः 1.25, 1.60,और 0.75 मिलियन एकड़ फीट (MAF) [कुल 3.6 MAF] भंडारण इकाइयों के निर्माण की अनुमति है।
- सिंधु जल-संधि समझौते की सभी बातें उसके विवाद तथा हल आदि के लिए सिंधु जल-संधि आयोग का निर्माण किया गया था। भारत-पाकिस्तान के उच्चायुक्त इस आयोग मे अपने देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- समझौते की शर्त के अनुसार सिंधु जल-संधि आयोग हर साल 31 मार्च को समझौते से सम्बंधित बातों पर बैठक करेगा। दोनों देश के प्रतिनिधि अपनी -अपनी आपत्तियों को रख कर उनका यथा संभव हल निकालेंगे तथा समझौते की शर्तों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराएंगे।
- इस समझौते मे यह भी कहा गया है, कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है तो पहला देश उसका जवाब देगा, दोनों पक्षों की बैठकें होंगी।
- यदि जल बंटवारे से सम्बंधित किसी वाद-विवाद का हल नही निकलता है। तब इस स्थिति मे दोनों देशों की सरकार द्वारा इस मामले को सुलझाना होगा या वो किसी तटस्थ विशेषज्ञ और कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन की मदद भी ले सकते हैं।
सिंधु जल–संधि मे विवाद का विषय?
- मुख्यतः पाकिस्तान की आपत्ति भारत की पश्चिमी नदियों पर बनी पाकल दुल (1000 मेगावॉट) , रातले (850 मेगावॉट), किशनगंगा (330 मेगावॉट), मियार (120 मेगावॉट) और लोअर कालनई (48 मेगावॉट) आदि परियोजनाओं को लेकर है। भारत का पक्ष है की हमारी ये सभी परियोजनाएं समझौते के अनुरूप ही है , हम केवल अपने अधिकारों का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहते हैं।
- इसके अतिरिक्त साल 1987 मे तुलबुल परियोजना जम्मू-कश्मीर में झेलम नदी पर बनाये जाना प्रस्तावित था। परन्तु पकिस्तान की इस प्रोजेक्ट पर आपत्ति के कारण भारत को यह प्रोजेक्ट बंद कर देना पड़ा था। सिंधु जल-संधि की दो महत्वपूर्ण नदियां सिंधु एवं सतलज तिब्बत से निकलती है। तिब्बत चीन के अधिकार क्षेत्र मे है , चीन के द्वारा इन नदियों पर बड़े -बड़े बांध बनाकर इसके जल का उपयोग किया जा रहा है। किन्तु पाकिस्तान ने कभी भी चीन की इन परियोजनाओं का विरोध नही किया है।
क्या भारत सिंधु जल–संधि को समाप्त कर सकता है?
- सिंधु जल संधि की शर्तों के अनुसार कोई भी एक देश इस संधि से न तो पीछे हैट सकता है और न ही इस संधि की शर्तों मे बदलाव कर सकता है।
- किन्तु यदि वियना समझौते के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ की धारा 62 पर गौर किया जाये। तो भारत पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने तथा आतकंवादी गतिविधियों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने के मुद्दे पर इस संधि से पीछे हट सकता है।
- भारत यदि किसी भी कारण से सिंधु जल-संधि से पीछे हटता है। तो पाकिस्तान इस मामले को लेकर सबसे पहले विश्व बैंक के पास जायेगा और यदि विश्व बैंक इस मामले मे गंभीरता दिखाता है, तो भारत के विश्व बैंक तथा अन्य देशो के साथ संबंधों पर असर पड़ सकता है।
- यदि इस मामले से विश्व बैंक अपने हाथ पीछे खींचता है तो उस स्थिति मे यह मामला किसी तटस्थ विशेषज्ञ या कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन की मध्यस्थता से सुलझेगा।
- विश्व बैंक ने अगस्त 2020 मे सिंधु जल-संधि को लेकर मध्यस्थता करने से इंकार कर दिया था। तब पाकिस्तान भारत की दो परियोजनाओं पर आपत्ति लेकर विश्व बैंक के पास पंहुचा था।
- ज्ञात हो भारत मे साल 2001 संसद हमले, साल 2008 मुंबई हमले तथा साल 2019 पुलवामा हमले के बाद बार -बार पाकिस्तान का पानी रोके जाने की बात उठती रही है। किन्तु भारत इसके बाद की स्थितियों को ध्यान मे रखते हुए , पानी रोकने का निर्णय नही लेता है।
- चूँकि दोनों देश परमाणु सम्पन्न हैं तथा ग्लोबल वार्मिंग के बाद पीने योग्य पानी की किल्लत ने इस समस्या को वैश्विक बना दिया है। ऐसे मे यदि पाकिस्तान का पानी रोका गया तो युद्ध की स्थिति बन सकती है, जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।
- सिंधु जल-संधि समझौता एकतरफ़ा रद्द करने से भारतीय उपमहाद्वीप मे कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होंगी और अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का पक्ष कमजोर हो सकता है।
- यदि भारत पाकिस्तान की तरफ पानी का बहाव रोकता है, तब इसका असर हमारे अन्य पड़ोसी देशो पर पड़ सकता है। वे इस अवसर का लाभ उठाकर उनकी तरफ से आने वाले पानी पर रोक लगाकर भारत को संकट मे डाल सकते हैं।
- ज्ञात हो भारत की सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज नदियों का उद्गम स्थान तिब्बत है। चीन अपनी ओर से आने वाले पानी का बहाव रोककर या बहाव नियंत्रित करके भारत मे सूखा या बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। इसी प्रकार से नेपाल तथा बांग्लादेश की तरफ से आने वाली नदियों को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
सिंधु जल-संधि समझौता से सम्बंधित तथ्य
- भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल-संधि समझौता पूर्णतया असंवैधानिक है। भारत की संसद मे इसके सम्बन्ध मे कभी भी कोई बिल पेश नही किया गया। तब इसका विरोध सांसद अशोक मेहता ने दर्ज किया था , जिसे लोकसभा स्पीकर द्वारा अस्वीकार कर दिया था।
- भारतीय संविधान के अनुसार- पानी राज्यों का विषय है, बावजूद इसके तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर राज्य को इस विषय से दूर रखा था। इस संधि से जम्मू-कश्मीर राज्य के पानी के उपयोग अधिकार का हनन हुआ है।
- उस समय चीन के साथ भारत के तनावपूर्ण रिश्तों के चलते जवाहरलाल नेहरू ने विश्वबैंक की मध्यस्थता मे इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिये थे। उस समय की परिस्थितयों का अनुमान आज के समय मे बैठकर लगाना असंगत है, हो सकता है नेहरूजी द्वारा लिया गया निर्णय उस परिस्थिति के अनुरूप सही था। फिर भारत उस समय एक नवीन राष्ट्र था, एक नए देश को युद्ध की आग मे झोंक देना सही निर्णय नही हो सकता था।
- संधि के अनुसार भारत ने विश्व बैंक को 62060000 पाउंड स्टर्लिंग मुद्रा का भुगतान किया था। इस राशि से पाकिस्तान मे पश्चिमी नदियों(झेलम,चिनाव, सिंधु ) के पानी के उपयोग हेतु आवश्यक संरचनाओं का निर्माण किया जाना था।
- सिंधु जल संधि के अनुसार भारत पश्चिमी नदियों से 6.42 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई कर सकता है। इसके साथ ही भारत अपनी अतिरिक्त सिंचित फसल क्षेत्र की सिंचाई सिंधु से 70 हजार एकड़ , झेलम से 4 लाख एकड़ तथा चिनाव से 2 लाख 31 हज़ार एकड़ तक कर सकता है। इसके लिए भारत को केवल पाकिस्तान के लिए पानी की निर्बाध रूप से आपूर्ति करने की जरुरत है।
चलते –चलते
सिंधु जल-संधि समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच मे एक अनचाहा बंधन है। दोनों ही देश चाहते हुए भी इस संधि से अलग नही हो सकते हैं। किसी भी एक देश द्वारा इस संधि का उल्लंघन दक्षिण एशिया मे बहुत बड़ा जल संकट उत्पन्न कर सकता है। भारत को जरुरत है वो कश्मीर मे अपनी जल प्रबंधन व्यवस्था को आधुनिक बनाकर अधिक से अधिक पानी का इस्तेमाल करे , जिससे जम्मू-कश्मीर राज्य का विकास सुनिश्चित हो सके। पाकिस्तान को जरुरत है वो प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियों को रोककर भारत के साथ अपने सम्बन्ध सुधारे। जिससे की उसकी शिकायतों को सुलझाने के लिए भारत के साथ उसकी बातचीत निरंतर रूप से चलती रहे। इसी के साथ हम आज के इस अंक को यही समाप्त करते हैं। धन्यवाद !