रोलेट एक्ट -साधारण कानून जो नरसंहार का कारण बन गया

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Rowlatt Act

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में “काला कानून” के नाम से जाना जाने वाला कानून, प्रसिद्ध राजनैतिज्ञ मोतीलाल नेहरू जी के शब्दों में “अपील, वकील और दलील” के अस्तित्व को समाप्त करने वाला कानून था। आइये देखते हैं कि किस प्रकार एक साधारण दिखाई देने वाला कानून, नरसंहार का कारण बन गया।

क्यूँ बना रोलेट एक्ट 

१९१८ के नवंबर में दूसरे विश्व युद्ध के समापन के साथ ही ब्रिटेन और उसके मित्र देश एक बड़ी शक्ति के रूप में विश्व-राजनीति के मानचित्र पर उभर कर आए थे। इस समय ब्रिटिश शासकों ने अपने बढ़े हुए मनोबल का प्रयोग भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन का दमन करने के लिए सुअवसर माना। इस समय भारत में विश्व युद्ध के चलते पहले ही आर्थिक और सामाजिक ढांचा बिखर चुका था। मध्यम व निम्न वर्ग महँगाई के साथ ब्रिटिश अत्याचारों के तले कुचला जा चुका था। इस समय समाज का धनाढ्य वर्ग, ऊंची कीमतों के बल पर और ब्रितानी शासन ऊंची करदर से अच्छी आय के बूते पर और अधिक ताकतवर हो गए थे। इस सामाजिक असंतुलन से जब ब्रिटिश शासक आसानी से पार नहीं पा सके तब एक विशेष कमेटी का गठन किया गया। इंगलेंड के हाईकोर्ट के न्यायधीश मि रोलेट के नेतृत्व में जिस समिति को बनाया गया उसका उद्देश्य भारत की “आतंकवादियों के कारण बिगड़े हुए हालात में सुधार करने के लिए कुछ सावधानियाँ” बताना था। इस समिति की रिपोर्ट में भारतीय स्वतन्त्रता सेनानियों को आतंकवादी बताते हुए और दबे-कुचले मध्यम व निम्न वर्ग की बेचेनी को हालात बिगड़ने का कारण बताया गया था। इसी रिपोर्ट पर निर्मित कानून को “रोलेट एक्ट” का नाम दिया गया था।

रोलेट एक्ट की वास्तविकता 

रोलेट एक्ट के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार के हाथ कुछ ऐसे अधिकार दिये गए थे जिनके अनुसार, ब्रिटिश शासक सरल शब्दों में कहें तो बिलकुल निरंकुश हो गए थे। संक्षेप में यह अधिकार इस प्रकार थे:

  1. बिना अरेस्ट वारंट के किसी भी व्यक्ति को जो शासन के लिए खतरा हो या बन सकता हो, २ वर्ष या इससे अधिक समय के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। इन्हें जमानत का भी अधिकार नहीं होगा;
  2. इस प्रकार से गिरफ्तार व्यक्ति को जेल में अनियमित समय के लिए रखा जा सकता है और अगर वह जेल में है तो उसे वहीं रोका भी जा सकता है;
  3. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसपर आरोप लगाने वाले व्यक्ति का नाम जानने का अधिकार नहीं है;
  4. “आतंकवादी” (क्रांतिकारी) के मुकदमे निचली अदालत की जगह सीधे हाई कोर्ट में तीन जजों के सामने लाये जाएँगे और उन्हें अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा;
  5. राज्यविरोधी सामग्री का प्रकाशन और वितरण गैरकानूनी और अपराध माना जाएगा;

रोलेट एक्ट का प्रभाव

६ फरवरी १९१९ के दिन सर विलियम विन्सेंट ने जब इस रिपोर्ट को सभापटल पर रखा तो सबसे पहले उन्हें आंतरिक विद्रोह का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस विद्रोह को अनदेखा करते हुए रोलेट एक्ट को भारत में मार्च १९१९ में लागू कर दिया गया।

फरवरी में रिपोर्ट आने के बाद गांधी जी ने सत्याग्रह सभा की स्थापना करी जिसका उद्देशय शांतिपूर्ण तरीके से इस काले कानून का विरोध करना था। इसी सभा के कार्यों को विस्तार देते हुए ६ अप्रैल १९१९ में देशव्यापी बंद का आव्हान किया जिसमें सारी दुकानों को बंद रखने का प्रस्ताव किया गया। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए देश के कई प्रमुख नेताओं ने दिल्ली, बंबई और अहमदाबाद में नेतृत्व सम्हाल और अँग्रेजी शासन ने इस आंदोलन को राष्ट्र विरोधी मानते हुए गिरफ्तार करके नज़रबंद करना शुरू कर दिया गया।

जलियाँवाला हत्याकांड

काले कानून का विरोध का बड़ा स्वरूप पंजाब में अधिक दिखाई दिया। १३ अप्रैल १९१९ के दिन इसके विरोध में एक छोटे से बाग में शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था। उस समय पंजाब में अंग्रेज़ अफसर जनरल डायर ने, जिसपर अमृतसर के बिगड़े हालत पर काबू पाने की ज़िम्मेदारी थी, मार्शल लॉं लगा रखा था। जनरल डायर ने इस सभा को मार्शल लॉं का विरोध मानते हुए बाग के मुंह पर, जो उस बाग में आने-जाने का एकमात्र रास्ता था, अपने १५० सिपाहियों  के साथ मोर्चा जमा लिया। वहाँ घूमने आए लोग और सभा के लिए इकट्ठे हुए लोग जो लगभग २०००० थे, डायर ने राज्य का विरोध करने वालों की सभा मानते हुए सिपाहियों को बिना चेतावनी देते हुए गोली मारने का आदेश दे दिया। कहा जाता है कि लगभग १० मिनट तक चली इस गोलीबारी में १००० से अधिक हर उम्र के पुरुष, महिला और बच्चों की मृत्यु हो गई। १५०० से अधिक घायल हो गए । अपनी जान बचाने को कुछ लोग बाग में बने एकमात्र कुएँ में कूद गए, जो बाद में ३७० लोगों की लाशों से भर गया था। बाग की १० फीट ऊंची चारदीवारी को फांद न पाने के कारण हताहतों की संख्या का अंदाज़ा आज तक कोई नहीं लगा सका है।

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