कौन थे Shri Narayan Guru? जानें इनके बारे में सबकुछ

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Shri Narayan Guru


Shri Narayan Guru का नाम बीते दिनों चर्चा में इसलिए रहा है, क्योंकि उनकी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद को ‘Not Many, But One’ के नाम से भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने लॉन्च किया है। श्री नारायण गुरु दरअसल एक महान दार्शनिक, महर्षि, अद्वैत दर्शन के प्रस्तावक, आध्यात्मिक व्यक्ति और एक महान कवि थे। इस लेख में हम आपको श्री नारायण गुरु के जीवन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

इस लेख में आप पढ़ेंगे:

  • Shri Narayan Guru का प्रारंभिक जीवन
  • श्री नारायण गुरु की उपलब्धियां
  • राष्ट्रीय आंदोलन में श्री नारायण गुरु की भूमिका
  • श्री नारायण गुरु का दर्शन और साहित्य
  • विज्ञान के क्षेत्र में श्री नारायण गुरु का योगदान

Shri Narayan Guru का प्रारंभिक जीवन

  • केरल के तिरुअनंतपुरम के नजदीक चेमपजन्थि नामक एक गांव में 1856 में 26 अगस्त को श्री नारायण गुरु का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम मदन असन और इनकी मां का नाम कुट्टियम्मा था।
  • घर में उन्हें नानू के नाम से बुलाया जाता था। इनके पिता खेती करते थे। साथ ही संस्कृत के वे बड़े विद्वान थे। उन्हें आयुर्वेद और ज्योतिष की भी अच्छी जानकारी थी। अपने माता-पिता की चार संतानों में से श्री नारायण गुरु अकेले बालक थे।
  • एझावा नामक एक जाति से इनके परिवार के होने की वजह से इन्हें तब अवर्ण माना जाता था। तब केरल का समाज जातिग्रस्त था, जिसकी वजह से उन्हें काफी अन्याय भी झेलना पड़ा था।
  • श्री नारायण गुरु को बचपन से ही एकांत में रहना बहुत पसंद था। चिंतन वे बचपन से ही करने लगे थे। पूजा करने की भी उनकी कोशिश स्थानीय मंदिरों में हुआ करती थी। भजन और भक्ति गीत की इसके लिए वे रचना भी करते रहते थे।
  • तपस्या की और इनका आकर्षण बहुत ही कम उम्र में हो गया था। यही वजह थी कि 8 साल उन्होंने जंगल में संन्यासी के रूप में बिताए थे। उपनिषद, वेद, हठयोग, साहित्य एवं अन्य दर्शनों का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था।
  • श्री नारायण गुरु की माता का देहांत तब हो गया था, जब वे केवल 15 साल के थे। ऐसे में उनके मामा कृष्ण वेदयार, जो कि एक आयुर्वेदाचार्य थे, उन्होंने उन्हें अपने पास रखकर उनकी देखभाल की थी। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने श्री नारायण गुरु को रमण पिल्लै के पास भेजा था, जो कि एक सवर्ण हिंदू थे। ऐसे में उनके घर के बाहर रहकर ही श्री नारायण गुरु को अपना अध्ययन पूरा करना पड़ा था।
  • संस्कृत में उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली थी, लेकिन 1881 में गंभीर रूप से बीमार पड़ने की वजह से उन्हें घर लौटना पड़ा था। बाद में उन्होंने अपने गांव में और आसपास के इलाकों में छोटे-छोटे स्कूल खोल दिए थे।
  • उनका विवाह जबरन 28 साल की उम्र में कर दिया गया था, लेकिन बाद में उन्होंने घर का त्याग कर दिया था और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में निकल गए थे। मारूतवमलै की गुफाओं में इन्होंने साधना भी की थी और इन्होंने योग की भी शिक्षा प्राप्त कर ली थी।

श्री नारायण गुरु की उपलब्धियां

  • ‘एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर’ का प्रसिद्ध नारा श्री नारायण गुरु ने दिया था। उन्होंने भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर का निर्माण वर्ष 1888 में अरुविप्पुरम में करवाया था। उन्होंने यह कदम जाति आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ उठाया था।
  • कलावनकोड में उन्होंने एक मंदिर अभिषेक भी किया था और मूर्तियों की जगह पर उन्होंने दर्पण रख दिया था। ऐसा करके उन्होंने यह संदेश दिया था कि हर व्यक्ति के अंदर परमात्मा मौजूद है।
  • श्री नारायण गुरु ने धर्म परिवर्तन के लिए असमानता का इस्तेमाल नहीं किए जाने का संदेश यह कहते हुए दिया था कि समाज में इससे अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो हो जाएगी। लोगों को उन्होंने समानता की सीख दी थी।
  • अल्वे अद्वैत आश्रम के नाम से उन्होंने वर्ष 1923 में एक सर्व क्षेत्र सम्मेलन आयोजित किया था, जो कि भारत में इस तरह का पहला आयोजन भी था। एझावा समुदाय में जो धार्मिक रूपांतरण हो रहे थे, उसे रोकने की दिशा में यह एक बड़ी कोशिश थी।

राष्ट्रीय आंदोलन में श्री नारायण गुरु की भूमिका

  • मंदिर प्रवेश आंदोलन में श्री नारायण गुरु सबसे आगे-आगे चल रहे थे। छुआछूत के प्रति जो सामाजिक भेदभाव थे, वे इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे। वयकोम सत्याग्रह, जो कि त्रावणकोर सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है, इसे श्री नारायण गुरु ने गति प्रदान करने का काम किया था। निम्न जातियों को मंदिरों में प्रवेश दिलाने के लिए यह आंदोलन चला था। महात्मा गांधी के साथ सभी लोगों का ध्यान इसके जरिए श्री नारायण गुरु की ओर गया था।
  • भारतीयता के सार को श्री नारायण गुरु ने अपनी कविताओं में समाहित कर लिया था। यही नहीं, दुनिया की विविधता में जो एकता मौजूद थी, उसे भी उन्होंने अपनी कविताओं में रेखांकित किया था।

श्री नारायण गुरु का दर्शन और साहित्य

  • श्री नारायण गुरु के दर्शन में सार्वभौमिक एकता के दर्शन होते हैं। समकालीन दुनिया में जो विभिन्न देशों और समुदायों के बीच नफरत का वातावरण था, हिंसा, कट्टरता, विभाजनकारी प्रवृतियां और संप्रदायवाद आदि फैले हुए थे, इन सभी से निपटने में श्री नारायण गुरु का दर्शन बड़ा ही महत्व रखता था।
  • अलग-अलग भाषाओं में श्री नारायण गुरु ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। थेवरप्पाथिंकंगल, असरमा, अद्वैत दीपिका और थिरुकुरल आदि इनमें प्रमुख हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में श्री नारायण गुरु का योगदान

  • तकनीकी प्रशिक्षण, व्यापार, स्वच्छता, हस्तशिल्प, कृषि और शिक्षा पर श्री नारायण गुरु ने विशेष बल दिया था। अध्यारोप दर्शनम्, जो कि ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ, इसका वर्णन करता है, श्री नारायण गुरु ने इसकी रचना की थी।
  • आत्मोपदेश शतकम् और दैवदशकम् भी इन्होंने लिखे हैं, जिनमें यह जानने के लिए मिलता है कि रहस्यवादी विचार और अंतर्दृष्टि आज की उन्नत भौतिकी से किस हद तक समानता रखते हैं।

श्री नारायण गुरु का निधन

वर्ष 1928 में 20 सितंबर को श्री नारायण गुरु का निधन हो गया था। इनकी पुण्यतिथि केरल में श्री नारायण गुरु समाधि के रूप में मनाई जाती है।

चलते-चलते

Shri Narayan Guru ने अपने जीवनकाल के दौरान आध्यात्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता के नए मूल्यों को हमेशा प्रोत्साहित किया। खासकर दलितों के आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान पर उनका हमेशा बल रहा। समाज में अपने योगदान के लिए श्री नारायण गुरु आज भी याद किए जाते हैं।

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