भारत की मिसाइल यात्रा, जिसने दुनिया को हिला डाला

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भारत की मिसाइल यात्रा

इस लेख में हमने भारत की मिसाइल यात्रा के बारे में चर्चा की है।सामरिक शक्ति के हिसाब से भारत का मज़बूत बने रहना ज़रूरी है, क्योंकि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन से भारत को हमेशा ही खतरा सताता रहता है। यही वजह है कि मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत ने बहुत पहले ही काम करना शुरू कर दिया था, ताकि आत्मनिर्भर बने रहकर देश की सुरक्षा व्यवस्था को इतना मज़बूत बनाये रखा जा सके, जिसे दुनिया की कोई भी ताकत भेद न सके।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में यदि बात की जाए तो भारत में मिसाइल का पहली बार इस्तेमाल टीपू सुल्तान द्वारा 1792 में किया गया था, जिसकी मदद से वे इस्ट इंडिया कंपनी के 3,820 सैनिकों को बंधक बना पाने में कामयाब हो गये थे। हमने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, मगर इसके बाद मिसाइल तकनीक के मामले में मज़बूती से आगे बढ़ने के लिए विशेष शस्त्र विकास टीम बनाई गई जो आगे चलकर रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (DRDL) बन गई। आइये एक नजर डालते हैं भारत की महत्वपूर्ण मिसाइलों परः

एकीकृत नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम (IGMDP)

1. यह वक्त था जुलाई, 1983 का। रक्षा मंत्रालय की ओर से आईजीएमडीपी को हरी झंडी मिलने के बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री आर वेंकटरमण ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी कि डीआरडीओ को त्रिशूल, आकाश, नाग, पृथ्वी ओर अग्नि नामक पांच नियंत्रित प्रक्षेपास्त्रों का विकास एक साथ करने के लिए कहा। 

2. इसरो में एसएलवी-3 कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन करने वाले वैज्ञानिक एवं देश के पूर्व राष्ट्रपति डाॅ एपीजे अब्दुल कलाम इसके निदेशक बने। 

3. अग्नि, पृथ्वी और आकाश अब तक तैयार कर शामिल भी किये जा चुके हैं। समय से पहले त्रिशूल को बंद करने के बाद फिलहाल नाग परीक्षण के दौर में है। 

4. के-15 और के-4 नामक दो प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण किया जा रहा है, जो समुद्र के भीतर काम कर सकते हैं।

महत्वपूर्ण गतिविधियां

1. ब्रह्मोस जिस पर काम चल रहा है, यह सतह से, सतह के नीचे से, समुद्र के अंदर से और हवा में भी दागे जाने के बाद लक्ष्य पर निशाना लगाने में सक्षम सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। 

2. सब सोनिक क्रूज मिसाइल निर्भय के अलावा एयर डिफेंस मिसाइल और 150 किलोमीटर तक मार करने में समर्थ अत्याधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रहार पर भी इस वक्त काम चल रहा है।

अग्नि 5 एवं अग्नि 6

1. भारत ने 19 अप्रैल, 2012 को सुबह 8 बजकर 7 मिनट पर व्हीलर्स द्वीप पर अग्नि-5 का सफल परीक्षण किया, जिसके बाद उसका आईसीबीएम क्लब में शामिल होने का सपना पूरा हो गया। 

2. व्हीलर्स द्वीप का नाम बदलकर अब एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप कर दिया गया है। 

3. इसके परीक्षण में स्वदेशी प्रौद्योगिकी का अधिक इस्तेमाल हुआ। यह 50 टन का था। साथ ही इस पर 1.5 टन वजन लाद दिया गया था। 

4. अग्नि 6 पर भी डीआरडीओ काम कर रहा है, जो अधिक दूरी तक मार करने में सक्षम है। 

बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम

1. सबसे पहले तो नवंबर, 2006 में पृथ्वी एयर डिफेंस (PAD) और फिर दिसंबर, 2007 में एयर डिफेंस मिसाइल (AAD) का परीक्षण किया गया। 

2. अधिक ऊंचाई पर रोकने के लिए इसे तैयार किया गया। इसे पृथ्वी डिफेंस व्हीकल (PDV) के नाम से जाना गया। 

3. इसकी रेडार की क्षमता 600 से 800 किलोमीटर की है, जिससे यह क्रिकेट की गेंद के आकार की भी छोटी चीज को आसानी से देख सकता है। 

4. फिलहाल इसकी क्षमता को बढ़ाकर 1,500 किलोमीटर तक करने की कोशिश चल रही है।

5. फिर 11 फरवरी, 2017 एक जहाज से एक प्रक्षेपास्त्र दागा गया। एक पीडीवी एक्जोथर्मिक प्रक्षेपास्त्र 97 किमी की ऊंचाई पर इसे विफल करने में कामयाब रहा।

इस वक्त हमारी स्थिति

1. अग्नि-6 के सफल परीक्षण के बाद तो अब चीन भी भारत डरने लगा है। चीन के लगभग सभी लक्ष्य अब भारत की दूरी में हैं। 

2. अग्नि 2, 3 और 5 के साथ ब्रह्मोस को जल्द उचित स्थानों पर तैनात करना होगा, ताकि चीन की ओर से संभवित खतरों को टाला जा सके। 

3. पाकिस्तान को भी जवाब देने में अब हम पूरी तरह से सक्षम हैं।

आगे की राह

चीन और पाकिस्तान से संभावित खतरे के मद्देनजर अग्नि सीरीज के मिसाइलों को तैनात रखना ज़रूरी है। साथ में तेजी से गोता खाने की क्षमता वाले ब्रह्मोस भी तैनात रहे तो बेहतर है। बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस को यदि रुस की ट्रायंफ प्रणाली के साथ मिला दें तो हवाई प्रतिरक्षा को और मज़बूत किया जा सकता है।

निष्कर्ष

मिसाइलें कितनी कारगर साबित हो सकती हैं, इसे खाड़ी युद्धों, अफगानिस्तान, गाजा और लीबिया में देखा जा चुका है। ऐसे में भारत भी अपने मिसाइलों के जरिये दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने की स्थिति में आ चुका है। जरूरत केवल इस बात की है कि मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारी क्षमता निरंतर बढ़ती ही रहे, ताकि हम किसी भी जगह अपने पड़ोसियों के मुकाबले कम न पड़ जाएं।

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