प्राचीन काल के युद्धों में योद्धा तलवारों के अलावा तीर और कमान का प्रयोग किया करते थे। इससे भी पीछे अगर देखें तो रामायण और महाभारत में मुख्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले हथियार वो होते थे, जिन्हें एक योद्धा अपने बल से दुश्मन योद्धा पर फेंकते थे। अगर शाब्दिक अर्थ में देखें तो इस प्रकार के अस्त्रों को प्रक्षेपास्त्र कहा जाता है। इन्हीं प्रक्षेपास्त्र को अँग्रेजी में मिसाइल कहा जाता है। इस प्रकार आज की मिसाइल वो हथियार है जो युद्ध लड़ते समय दुश्मन सैनिकों पर फेंक कर मारा जाए । समय के साथ-साथ युद्ध तकनीक में परिवर्तन आया और मिसाइलों के प्रकार में भी वृद्धि होती चली गयी। लेकिन अगर सामान्य वर्गिकरण किया जाए तो मिसाइल दो प्रकार की होती हैं: क्रूज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल ।
बैलिस्टिक मिसाइल:
अगर सरल शब्दों में कहा जाए की जब किसी प्रक्षेपास्त्र के साथ दिशा बताने वाला यंत्र लगा दिया जाता है तो वह हथियार बैलिस्टिक मिसाइल बन जाता है। इस मिसाइल को जब अपने स्थान से छोड़ा जाता है या फिर कहें दागा जाता है तो यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण नियम के अनुसार अपने पूर्व निर्धारित लक्ष्य पर जाकर गिरता है। जब इस मिसाइल को किसी स्थान से छोड़ा जाता है तो यह बहुत तेज़ी से पहले ऊपर की दिशा की ओर जाती है और फिर गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होकर बहुत तेज़ी से नीचे आती हुए अपने निर्धारित लक्ष्य को भेद देती है। दरअसल यह मिसाइल छोड़े जाने पर ऊपर जाते हुए यह पृथ्वी के सबसे ऊपर के वातावरण तक जाती है और फिर नीचे आती है। इस मिसाइल के इस तरह से जाने और आने के कारण ही इसे बैलिस्टिक मिसाइल कहा जाता है । इस मिसाइल की मारक क्षमता 5000 किलोमीटर से लेकर 10000 किलोमीटर तक होती है । इस मिसाइल में जो दिशा यंत्र लगा होता है उसके कारण यह अपने प्रक्षेपण के शुरुआत में ही गाइड कर दी जाती है। उसके बाद जैसे यह ऊपर जाती है तो इसका निर्देश पाठ आर्बिटल मेकैनिक्स के सिद्धांतों और बैलिस्टिक्स के सिद्धांतों से निश्चित कर दिया है। वर्तमान समय में बैलिस्टिक मिसाइल को रासायनिक रॉकेट इंजिन के द्वारा प्रोपेल किया जाता है। इन मिसाइलों में बहुत बड़ी मात्रा में विस्फोटकों को ले जाने की क्षमता होती है। भारत के पास बैलिस्टिक मिसाइल के रूप में पृथ्वी, अग्नि, और धनुष मिसाइलें हैं।
सबसे पहली बैलिस्टिक मिसाइल:
विश्व के प्रक्षेपणास्त्रों के इतिहास में सबसे पहली बैलिस्टिक मिसाइल नाजी जर्मनी ने 1930 से 1940 के मध्य में विकसित की थी। यह कार्य रॉकेट वैज्ञानिक वेन्हेर्र वॉन ब्राउन के संरक्षण और देखरेख में किया गया था। यह सबसे पहला बैलिस्टिक मिसाइल ए4 था जिसे दूसरे शब्दों में वी-2 रॉकेट के नाम से भी जाना जाता है। इस मिसाइल का परीक्षण 3 अक्तूबर 1942 को हुआ था।
बैलिस्टिक मिसाइल का प्रयोग:
सबसे पहले इस मिसाइल का प्रयोग फ्रांस के विरुद्ध 6 सितंबर 1944 को किया गया था और इसके तुरंत दो दिन बाद लंदन पर इसका प्रयोग किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने तक यानि 1945 वर्ष के मई मास तक बैलिस्टिक मिसाइल को 30000 से भी अधिक बार प्रयोग किया गया था।