आतंकवादी घटनाओं को हतोत्साहित करने एवं इससे निपटने के लिए Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime (GCTOC) Act, 2019 को 1 दिसंबर, 2019 से प्रवर्तित कर दिया गया है। राष्ट्रपति से इसे मंजूरी मिल गई थी।
MCOCA से बेहतर कैसे?
Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime (GCTOC) Act, 2019 वास्तव में प्रेरित महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (Maharashtra Control of Organised Crime Act- MCOCA) से है। हालांकि, GCTOC कई मायनों में MCOCA से अलग है। महाराष्ट्र के अधिनियम में संचार के अवरोधन पर नियंत्रण यानी कि Checks on Interception of Communication को शामिल किया गया है, जबकि गुजरात के अधिनियम में इसे बाहर रखा गया है। गुजरात के अधिनियम में एक विशेष बात यह है कि इसमें जो आतंकवादी कृत्य की परिभाषा दी गई है, उसमें ‘सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने की मंशा’ यानी कि Intention to Disturb Public Order को भी शामिल कर लिया गया है। इस तरह से GCTOCA, MCOCA की तुलना में बेहद कठोर और व्यापक भी हो जाता है।
Interception in MCOCA
- MCOCA में 5 धाराओं यानी कि धारा 13, 14, 15, 16 और 27 को इंटरसेप्शन कॉल्स से संबंधित रखा गया है। एक बार जब इसे सक्षम प्राधिकारी की ओर से अनुमोदित कर दिया जाता है तो यह interception 60 दिनों तक ही जारी रह सकता है। यदि इस अवधि का विस्तार किया जाना है तो इसके लिए फिर से अनुमति लेनी पड़ती है। अवधि का विस्तार करने के लिए जब आवेदन किया जाता है तो इसमें यह बताना जरूरी होता है कि अब तक interception से क्या हासिल हुआ है। साथ में यह भी बताना होता है कि यदि वह परिणाम नहीं मिल पाया है जो कि वांछित था तो उसकी वजह क्या रही है। यह स्पष्ट रूप से बताना पड़ता है। जब विस्तार के लिए भी अनुमति दे दी जाती है तो यह भी केवल 60 दिनों के लिए ही होती है।
- अधिनियम के प्रावधान के मुताबिक प्राधिकारी के आदेशों की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन भी किया जाता है। साथ ही अनधिकृत तरीके से interception या फिर interception का उल्लंघन करने को लेकर एक साल तक की कारावास की सजा का भी निर्धारण किया जाता है। इसमें एक प्रावधान यह भी किया गया है कि interception की क्या उपयोगिता रही है, इससे संबंधित एक विश्लेषण कैलेंडर वर्ष के अंतिम तीन महीने के अंदर महाराष्ट्र विधानसभा में पेश भी करना पड़ता है।
कौन कर सकते हैं Calls का Interception?
- आरक्षी अधीक्षक यानी कि एसपी या फिर उससे ऊपर के रैंक के पुलिस अधिकारी के समक्ष जांच की निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक या मौखिक तरीके से कॉल्स के interception के प्राधिकार की मांग के लिए आवेदन किया जाता है। इसमें अधिनियम के विभिन्न विवरणों का उल्लेख आवेदन में करना पड़ता है। जब जांच एजेंसी की ओर से यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए बाकी सभी तरीके इस्तेमाल में लाए जा चुके हैं और वे असफल रहे हैं, तभी interception की अनुमति दी जाती है।
- जो प्राधिकारी इंटरसेप्शन की अनुमति देते हैं, वे राज्य गृह विभाग के एक अधिकारी होने चाहिए। साथ ही उनका रैंक सचिव से नीचे का नहीं होना चाहिए। जिन मामलों में जल्दी हो, उसमें अतिरिक्त डीजीपी या फिर उससे ऊपर के अधिकारी की ओर से भी इंटरसेप्शन की अनुमति दी जा सकती है, किंतु 48 घंटे के अंदर आवेदन को सक्षम प्राधिकारी को सौंपा जाना आवश्यक होता है।
कैसे ताकतवर है GCTOCA?
MCOCA की तुलना में Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime (GCTOC) Act, 2019 अधिक ताकतवर भी है। वह इसलिए कि गुजरात के इस अधिनियम में केवल interception के आधार पर ही जो सबूत इकट्ठा किए गए हैं, उसे यह स्वीकार कर लेता है। इसमें communication interception की प्रक्रिया के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। GCTOCA की धारा 14 को MCOCA के समान ही रखा गया है, मगर इसमें एक चीज यह भी जोड़ दिया गया है कि सीआरपीसी, 1973 या फिर उस वक्त प्रवर्तित ‘किसी अन्य कानून’ में निहित किसी भी प्रावधान के बावजूद जुटाए जाने वाले साक्ष्य मामले की सुनवाई के दौरान अदालत में साक्ष्य के तौर पर अभियुक्त के खिलाफ स्वीकार किए जाएंगे। ‘किसी अन्य कानून’ को इसमें परिभाषित नहीं किया गया है। इसके अलावा MCOCA की तरह GCTOCA में अनिवार्य वार्षिक रिपोर्ट के जैसा कोई भी प्रावधान नहीं किया गया है।
आतंकवादी कृत्य की परिभाषा
निरस्त किए जा चुके आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA), 2002 की तरह GCTOCA में आतंकवादी कृत्य को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने की मंशा से किया गया कृत्य ही आतंकवादी कृत्य है। इस परिभाषा से पाटीदार आंदोलन जैसे किसी भी आंदोलन को आतंकवादी कृत्य सरकार घोषित कर सकती है और कठोर सजा भी दे सकती है। भारत का जो मुख्य आतंकवाद रोधी कानून Unlawful Activities Prevention (UAPA), 1967 है, उसमें इस तरह के आंदोलनों को आतंकवाद कहने का प्रावधान नहीं है, बल्कि इसे IPC की धाराओं और देशद्रोह कानून के दायरे में रखा गया है, जिसमें अत्यंत कठोर सजा दिए जाने का पर्याप्त प्रावधान नहीं है। GCTOCA में सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करना या राज्य की एकता, अखंडता व सुरक्षा को खतरे में डालना या फिर लोगों या लोगों के किसी भी वर्ग के मन में आतंक कायम करने की मंशा रखना आतंकवादी कृत्य के रूप में माना जाएगा।
GCTOCA से जुड़े विभिन्न तर्क
राज्य सरकार चाहे तो इस आशय के नियमों का निर्माण करने के लिए न्यायालय को भी कह सकती है। यही नहीं, अधिनियम की संवैधानिक वैधता को मामला विशिष्ट के आधार पर चुनौती भी देने का प्रावधान है। एक महत्वपूर्ण तर्क GCTOCA में यह भी है कि इसमें जांच प्रक्रिया में कार्यकारी को शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन इसी तरह के प्रावधान पहले निरस्त हो चुके TADA और POTA में भी मौजूद थे।
निष्कर्ष
Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime (GCTOC) Act, 2019 से विधि व्यवस्था और निजता के बीच संघर्ष की स्थिति बन रही है। फिर भी यह तो वक्त ही बताएगा कि communication interception का इस्तेमाल इसमें कैसे होता है।