Article 244(A) of the Constitution बीते कुछ समय से चर्चा का केंद्र बना हुआ है। आखिर ऐसी कौन-सी बात है, जिसने इसे चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया है? क्या विशेषता है संविधान के अनुच्छेद 244(A) की, जिसकी वजह से कुछ वर्गों की जुबां पर यह चढ़ा हुआ है? इस लेख में हम आपको इसी के बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं।
इस लेख में आप पढ़ेंगे:
- Article 244(A) of the Constitution के चर्चा में होने की वजह
- एक नजर संविधान के अनुच्छेद 244(A) की पृष्ठभूमि पर
- क्या है संविधान का अनुच्छेद 244(A)?
- छठी अनुसूची के बारे में
Article 244(A) of the Constitution के चर्चा में होने की वजह
भारत की आजादी के बाद से ही विभिन्न वर्गों और समूहों द्वारा पृथक या स्वायत्त राज्य की मांग उठाई जाती रही है। देश में कई राज्यों का बंटवारा हो चुका है और समय-समय पर नए राज्यों का गठन भी हुआ है। इसी तरह से एक और स्वायत्त राज्य के गठन की मांग अब जोर पकड़ती हुई दिख रही है। इस राज्य का गठन असम से पृथक एक राज्य के रूप में होना है। यह मांग उठाई जा रही है असम में कुछ वर्गों की तरफ से।
अपनी मांग का आधार ये वर्ग संविधान के अनुच्छेद 244A के प्रावधानों को बना रहे हैं और पुरजोर तरीके से एक स्वायत्त राज्य की मांग कर रहे हैं। ऐसे में एक जिम्मेवार भारतीय होने के नाते या फिर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे छात्रों के लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर what is Article 244(A) of the Constitution?
एक नजर संविधान के अनुच्छेद 244(A) की पृष्ठभूमि पर
यह 1950 का दशक था। असम एक विशाल राज्य हुआ करता था। उस वक्त इनका विभाजन नहीं हुआ था। यह अविभाजित असम के रूप में जाना जाता था। इसी दरम्यान यहां बसने वाली आदिवासी आबादी के कई वर्गों को लगा कि उनके लिए एक पृथक पहाड़ी राज्य होना चाहिए। ऐसे में उन्होंने इसके लिए मांग उठानी शुरू कर दी थी। इसके लिए उन्होंने आंदोलन भी छेड़ दिया था। हिंसक और अहिंसक दोनों तरीकों से यह आंदोलन जारी रहा। इनके आंदोलन ने असर दिखाना शुरू कर दिया। आखिरकार सरकार को इसके आगे झुकना पड़ा। वर्ष 1972 में आखिरकार सरकार की तरफ से मेघालय को एक राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया गया।
मेघालय राज्य के लिए जो आंदोलन चल रहा था, बहुत से नेता इसका हिस्सा थे। उत्तरी कछार पहाड़ियों के नेताओं ने भी इसमें भाग लिया था। इनके अलावा इस आंदोलन में कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों के नेता भी शामिल हुए थे। सरकार की तरफ से इन्हें यह विकल्प प्रदान कर दिया गया था कि वे चाहें तो असम में ही रह सकते हैं या फिर वे मेघालय का हिस्सा बन सकते हैं। यह विकल्प तो इन नेताओं को सरकार की ओर से जरूर मिला था, मगर इसके बावजूद ये मेघालय न जाकर असम में ही रहे। अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि उन्होंने आखिर ऐसा किया क्यों।
दरअसल हुआ यह था कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने इन्हें अनुच्छेद 244(A) के साथ कई तरह की अन्य शक्तियां प्रदान किये जाने का वादा कर दिया था। असम में रहने पर उन्हें ये सुविधाएं मिलनी थी। इसलिए वे यहीं रह गये। इसके बाद अत्यंत हिंसक दौर आने वाला था। कहने का मतलब है कि सरकार से वे और ज्यादा ताकत व स्वायतत्ता की मांग करने लगे थे। इसकी वजह से कई कार्बी समूह जो उस वक्त बन गए थे, उनके बीच इसे लेकर आपस में भिड़ंत भी होने लगी। इतना ही नहीं, इसने आंदोलन का रूप भी अख्तियार करना शुरू कर दिया। अब यह तेजी से बढ़ने लगा और हिंसक स्वरूप भी लेने लगा।
असर इसका इतना व्यापक होने लगा कि इसका वह परिणाम निकला, जिसके बारे में पहले किसी ने सोचा भी नहीं था। एक सशस्त्र अलगाववादी विद्रोह के रूप में तब्दील होने में इसे ज्यादा वक्त नहीं लगा। इस तरह से अब इन्होंने यह मांग करनी शुरू कर दी कि उन्हें एक पूर्ण राज्य का दर्जा से कम और कुछ नहीं चाहिए।
क्या है संविधान का अनुच्छेद 244(A)?
अब आपको बताते हैं कि what is Article 244(A) of the Constitution? दरअसल, संसद को इस अनुच्छेद के जरिये एक खास तरह की शक्ति असम को लेकर यह प्रदान करता है। इसके अंतर्गत संसद चाहे तो कानून बनाकर एक स्वायत्त राज्य की स्थापना असम के कई जनजातीय क्षेत्रों को आपस में मिलाकर कर सकती है। साथ ही इस अनुच्छेद में यह प्रावधान भी किया गया है कि एक स्थानीय विधायिका या मंत्रिपरिषद या फिर दोनों की स्थापना की भी स्थानीय प्रशासन के लिये यह चाहे तो परिकल्पना कर सकता है। मूल रूप से अनुच्छेद 244(A) भारतीय संविधान का हिस्सा नहीं था। भारतीय संविधान में इसे 22वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 के जरिये जोड़ा गया था। उस वक्त इसने बड़ी सुर्खियां भी बटोरी थी।
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में आदिवासी क्षेत्रों को काफी स्वायत्त शक्तियां प्रदान की गई हैं, लेकिन जब इनकी तुलना अनुच्छेद 244A में प्रदान की गईं स्वायत्त शक्तियों से की जाती है, तो वे इसे सामने बौनी पड़ जाती हैं। इन सभी में सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति की बात करें तो यह कानून व्यवस्था पर नियंत्रण से संबंधित है। वहीं, छठी अनुसूची पर नजर डालने पर हम पाते हैं कि इसमें स्वायत्त परिषद में आदिवासी क्षेत्रों को कानून व्यवस्था को लेकर किसी तरह का कोई भी अधिकार प्रदान नहीं किया गया है।
छठी अनुसूची के बारे में
भारतीय संविधान में छठी अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के जनजातीय लोगों के लिए बड़ी मायने रखती है, क्योंकि इन राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये यह अनुसूची जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था करती है। इस व्यवस्था को प्रावधान भी कहा जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के अंतर्गत इस तरह के खास प्रावधान को सुनिश्चित किया गया है। जिन जिलों को इस प्रावधान के अंतर्गत जगह मिली हुई है, उनमें असम के डिमा हसाओ, कार्बी आंग्लोंग और पश्चिम कार्बी के साथ बोडो प्रादेशिक इलाके में पड़ने वाले पहाड़ी जिले भी शामिल हैं।
स्वायत्त ज़िलों के गठन या फिर पुनर्गठन का अधिकार राज्यपाल को प्रदान किया गया है। यही वजह है कि इनके क्षेत्रों को घटाने या फिर बढ़ाने का अधिकार राज्यपाल के हाथों में मौजूद है। राज्यपाल को यह अधिकार भी है कि वह चाहे तो इनके नाम को बदल भी सकता है। इसके अलावा सीमाओं के निर्धारण का अधिकार भी राज्यपाल के पास मौजूद है। पांचवीं अनुसूची से तुलना करने पर हम पाते हैं कि अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन पांचवीं अनुसूची में संघ की कार्यकारी शक्तियों के अंतर्गत आता है, जबकि छठी अनुसूची में यह राज्य सरकार की कार्यकारी शक्तियों के अधीन आ जाता है।
यहां जिस पांचवीं अनुसूची की हम बात कर रहे हैं, उसका संबंध असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम के अलावा अन्य किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के साथ अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन व नियंत्रण से है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि अनुसूचित क्षेत्रों तक किसी राज्य में कार्यरत संपूर्ण सामान्य प्रशासनिक तंत्र का विस्तार नहीं होता है। आज की तारीख में पांचवीं अनुसूची में 10 राज्य शामिल हैं, जो छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश हैं।
और अंत में
Article 244(A) of the Constitution के बारे में आप यह समझ गए होंगे कि असम के कुछ वर्गों को इससे अलग स्वायत्त राज्य की मांग के लिए बल मिल रहा है। प्रावधान ही इसके ऐसे हैं, जो इस बारे में सदन को विचार-विमर्श करने के लिए मजबूर कर सकती है। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इन मांगों का भविष्य क्या होता है।