भारतवर्ष एक नहीं बल्कि अनेको सभ्यताओ, संस्कृतियों व साहित्यो का देश हैं जिसकी वजह से हमें, भारतवर्ष के अलग-अलग क्षेत्रो में, अलग-अलग संस्कृतियां, सभ्यतायें और साहित्य आदि देखने को मिलती हैं जो कि, उस विशेष क्षेत्र के इतिहास, भूगोल, जीवन-शैली और विचारधारा को अभिव्यक्त करती हैं इसलिए जब हम, तमिल काव्य के 3 रत्नो की बात करते हैं तो अप्रत्यक्ष तौर पर हम, संगम साहित्य की ही बात करते हैं जो कि, एक समृद्ध, विकासित और साहित्य की दृष्टि से पूर्णत फलीफुली संस्कृति हैं इसीलिए आज के अपने इस लेख मे, हम, आपको Three Gems of Tamil poetry की पूरी जानकारी प्रदान करेंगे और साथ ही साथ संगम साहित्य से भी आपका साक्षात्कार करवायेगे ताकि आप भी तमिल काव्य के तीन रत्नो की जानकारी प्राप्त कर सकें और संगम साहित्य के अपने ज्ञान को विकसित ओर अपडेट कर सकें।
संगम और साहित्य शब्द का क्या अर्थ हैं?
संगम और साहित्य शब्दो के अपने-अपने विशेष अर्थ और अपनी-अपनी विशेष उपयोगिता हैं इसलिए हम, सरल भाषा में, संगम को किसी सम्मेलन, गोष्ठी, संघ, परिषद्, समिति अथवा संस्थान के तौर पर परिभाषित कर सकते हैं जिसमें हमें, किसी विशेष वस्तु या फिर क्षेत्र के लोगो की बडी संख्या देखने को मिलती हैं इसलिए हम, इसे सरल भाषा में, संगम कहते हैं।
साहित्य का यदि संधि-विच्छेद किया जाये तो हम, सामाजिक + हित्य के योग के रुप में, साहित्य को पाते हैं अर्थात् जिस वस्तु या क्रिया से किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पुरे समाज का कल्याण और उपकार होता हैं उसे हम, साहित्य कहत हैं जैसे कि, भारतीय या फिर विश्व-प्रसिद्ध लेखको व कवियो की कृतियो को हम, मूलत साहित्य ही कहते हैं जिससे पुरे समाज का कल्याण होता हैं और साथ ही साथ राष्ट्र का सतत विकास होता हैं।
तमिल के संदर्भ में, क्या अर्थ हैं संगम साहित्य का?
जब हम, तमिल के संदर्भ में, संगम साहित्य की बात करते हैं तो हमें, इसका एक विशेष और मूलभुत अर्थ देखने को मिलता हैं जैसे कि – संगम का अर्थ हम, तमिल संदर्भ में तमिल कवियों, तमिल लेखको, तमिल विद्वानो, आचार्यो, बुद्धिजीवियो व दार्शनिको को शामिल करते हैं और इनके सामूहिक रुप को हम, संगम कहते है और इन्ही बुद्धिजीवियो, कवियों व लेखको द्धारा लिखी गई रचनाओ को हम, सामूहिक तौर पर साहित्य की संज्ञा देते हैं।
इस प्रकार संगम साहित्य से हमारा अभिप्राय होता हैं तमिल के कवियो, लेखको व बुद्धिजीवियो द्धारा लिखित रचनायें जो कि, पूरे समाज की अभिव्यक्ति करती हैं और उनके कल्याण व उज्जवल भविष्य के निर्माण मे, अपना योगदान देती हैं।
संगम युग अर्थात् संगम काल क्या हैं?
हम, आपको कुछ मौलिक उपलब्ध जानकारीयों के आधार पर तमिल काव्य के 3 रत्नो की जानकारी प्रदान करने के लिए कुछ बिंदुओ का सहारा लेने जा रहे हैं जो कि, इस प्रकार से हैं-
संगम युग या संगम काल क्या हैं?
संगम युग या संगम काल आज से लगभग 300 ईसा पुर्व से लेकर 300 ईस्वी को बीच दक्षिण भारत के समृद्ध काव्य व साहित्य के आधार पर ’’ संगम युग या संगम काल ’’ कहा जाता हैं जिससे संबंधित कुछ तथ्य हम, आपके सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं जो कि, इस प्रकार से है-
- दक्षिण भारत में, राजाओ व राज-प्रमुखो की मौजूदगी में, कवियो का एक संगम अर्थात् कवि सम्मेलनो का आयोजन किया जाता था जिन्हें उस समय की प्रथानुसार, संगम कहा जाता था।
- दक्षिण भारत में, हमें, 8वीं सदी के आस-पास पांड्य राजाओ को संरक्षित 3 संगमो का वर्णन मिलता हैं जिन्हें साहित्यिक तौर पर द्रविड साहित्य के शुरुआती नमुने कहा जा सकता हैं और
- उस काल में, दक्षिण भारत में, कुल 3 सगंमो अर्थात् 3 कवि समागमो या सम्मेलनो का आयोजन किया जाता था जिसें उस काल में, सामूहिक रुप से ’’ मुच्चगम अर्थात् Muchchangam ’’ कहा जाता था आदि।
उपरोक्त बिंदुओ की मदद से हमने आपको संगम साहित्य की एक झलक प्रसस्तु की हैं और तमिल काव्य के 3 रत्नो की जानकारी हम, आपको आपके प्रदान कर रहे हैं।
तमिल काव्य के तीन रत्न [Three Gems of Tamil poetry]
तमिल काव्य के 3 अलग-अलग रत्नो की जानकारी हम, आपके सामने बिंदु-दर-बिंदु रखना चाहते हैं जो कि, इस प्रकार से है –
प्रथम काव्य रत्न संगम
प्रथम काव्य रत्न संगम के संबंध में, प्रचलित धारणा यह हैं कि, इसका आयोजन मदुरै मे, किया गया था जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध मुनि अर्थात् अगस्त्य मुनि द्धारा की गई और इन्ही को दक्षिण भारत में, आर्य संस्कृति के प्रचार-प्रसार का साथ ही साथ तमिल भाषा की पहली ग्रन्थ को प्रतिपादित करना का श्रेय भी दिया जाता हैं।
हम, अपने पाठको व तमिलवासियो को बताना चाहते है कि, इस प्रथम काव्य रत्न संगम में, कई देवी-देवताओ ने, भागीदारी की थी लेकिन वर्तमान समय में, इसका कोई सुरक्षित दस्तावेजी प्रमाण नहीं हैं।
द्धितीय काव्य रत्न संगम
द्धितीय काव्य रत्न संगम के संबंध में, हम, उपलब्ध प्रमाणो व स्रोतो के आधार पर कह सकते हैं कि, द्धितीय काव्य रत्न संगम का आयोजन कवत्तापुरम अर्थात् कपाटपुरम में, किया गया था जिसकी अध्यक्षता दो प्रमुख व्यक्तियो द्धारा की गई – मुनि अगस्त्य और तोल्कापियम द्धारा इस द्धितीय काव्य रत्न संगम का आयोजन किया जायेगा जिनकी सभी कृतियां नष्ट हो गई केवल एक तमिल भाषा में, लिखा व्याकरण अर्थात् तोल्कापियम ही सुरक्षित रह सका जो कि, आज तक हमारे पास उपलब्ध हैं।
तृतीय काव्य रत्न संगम
नकीर्र की अध्यक्षता में, तृत्यी काव्य रत्न संगम का आयोजन किया गया जिसमें कुल 8 साहित्यो का सृजन किया गया जिन्हें प्रचलित भाषानुरुप ऐत्तुतोगई कहा जाता हैं जिसके सभी 8 ग्रंथो के नाम व उनमें लिखी कविताओ की संख्या इस प्रकार से हैं –
- प्रेम पर कुल 400 अलग-अलग छोटी-छोटी कविताओ को मिलाकर सामूहिक रुप से नण्णिन्नै ग्रंथ की रचना की गई,
- कुरुन्थाथोकै में, भी हमें, 400 प्रेम कविताओ की ही संग्रह मिलता हैं,
- प्रेम विषय पर किलार द्धारा 500 कविताओ के ग्रंथ को हम, एनगुरुनूर के नाम से जानते हैं,
- चेर राजाओ की प्रशंसा में, कुल 8 कवितायें लिखी गई जिन्हें हम, पदितुप्पतु नामक ग्रंथ के नाम से जानते हैं,
- देवताओ को प्रंशसित करते हुए कुल 20 कविताओ की रचना की गई जिसके ग्रंथ को परिपादल कहा गया,
- 150 कविताओ को संग्रह करने वाली ग्रंथ को करितोगई कहा गया,
- रुद्र भ्रमण द्धारा रचित कुल 400 कविताओ के संग्रह को अहनानुरु कहा गया और
- राजा की प्रशंसा में, लिखी कुल 400 कविताओ के संग्रह को पुरनानूरु कहा गया आदि।
इस प्रकार हमने आपके समक्ष तृतीय काव्य रत्न संगन मे, लिखित कुल 8 ग्रंथो का उनकी कविताओ सहित उल्ले किया ताकि आपको इनकी जानकारी प्राप्त हो सकें।
इस प्रकार हमने आपको तमिल के तीनो काव्य रत्न संगमो की पूरी उपलब्ध जानकारी प्रस्तुत की जिसे ग्रहण करके आप तमिल संगमो को लेकर अपने ज्ञान को और बढा सकते हैं और अपनी संस्कृति के प्रति एक जागरुक तमिलवासी बन सकते हैं।
तमिल काव्य के तीन रत्न (Three Gems of Tamil poetry) – सवाल व जबाव
सवाल 1– प्रथम व तृतीय काव्य रत्न संगन की अध्यक्षता किस एक मुनि के द्धारा की गई थी?
जबाव 1– मुनि अगस्त्य के द्धारा।
सवाल 2- तृतीय काव्य रत्न संगन में, कुल कितने ग्रंथो की रचना की गई थी?
जबाव 2– 8 ग्रंथो की रचना की गई थी।
सवाल 3- तृतीय काव्य रत्न संगन की अध्यक्षता अगस्त्य मुनि के साथ किसने की थी?
जबाव 3– नकीर्र ।
सवाल 4– संगल साहित्य किसे कहते हैं?
जबाव 4– तमिल के प्रमुख कवियों, लेखको, विद्वानो व बुद्धिजीवियो द्धारा लिखी गई कविताओं व रचनाओ के संग्रह को ही सामूहिक रुप से संगम साहित्य कहा जाता है।