महाभारत हिन्दुओं का प्रमुख काव्य ग्रंथ है। पूरे ‘महाभारत’ में एक लाख श्लोक हैं। महाभारत काल को लेकर विद्वानों के बीच विभिन्न मत हैं, फिर भी जादातर महाभारत काल को ‘लौहयुग’ से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि महाभारत में वर्णित ‘कुरु वंश’ 1200 से 800 ईसा पूर्व के दौरान शक्ति में रहा होगा। पौराणिक मान्यता को देखें तो पता चलता है कि अर्जुन के पोते परीक्षित और महापद्मनंद का काल 382 ईसा पूर्व ठहरता है।
महाभारत को संक्षिप्त में जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।
कौरवों की कथा –
कौरवों की सेना जब पांडवों से युद्ध हार रही थी तब दुर्योधन भीष्म पितामह के पास जाता है और उन्हें कहता है कि आप अपनी पूरी शक्ति से युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। तब भीष्म पितामह तुरंत पांच सोने के तीर निकलते हैं और कुछ मंत्र पढ़ते हैं । मंत्र पढ़ने के बाद वो दुर्योधन से कहते हैं कि कल इन पांच तीरों से वे पांडवों का वध कर देंगे। मगर दुर्योधन को भीष्म पितामह की बातों पे विश्वास नहीं होता है और वो उनसे तीर ले लेता है और कहता है कि वह कल सुबह तीरों को उन्हें वापस कर देगा । इसके बाद हे भगवान कृष्ण अर्जुन को बुलाते हैं और कहते हैं कि तुम दुर्योधन के पास जाओ और सोने के पांचो तीर मांग लो। वो अर्जुन को ये भी याद दिलाते हैं की दुर्योधन की जान उसने एक बार गंधर्व से बचायी थी और इसके बदले उसने कहा था की तुम उससे कोई एक चीज़ मांग सकते हो । समय आ गया है की तुम उससे कुछ मांगलो, जाओ तुम दुर्योधन से वो पांच सोने के तीर मांग लो जो भीष्म पितामह ने उसे दिए हैं । अर्जुन दुर्योधन के पास जाता है और उसने वो तीर मांग लेता है । क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन अपने वचन को पूरा करते हुए तीर अर्जुन को दे देता है ।
द्रोणाचार्य का जन्म –
द्रोणाचार्य को भारत का प्रथम टैस्ट ट्यूब बेबी कहा जा सकता है । द्रोणाचार्य के पिता महर्षि भारद्वाज थे और उनकी माता एक अप्सरा थीं। एक शाम महर्षि भारद्वाज शाम को गंगा नहाने जाते हैं तभी उन्हें वहां एक अप्सरा नहाती हुई दिखाई देती है । उस अप्सरा की सुंदरता को देख वो मंत्र मुग्ध हो जाते हैं और उनके शरीर से शुक्राणु निकलने लगते हैं, जिसे वह एक मिट्टी के बर्तन में इकट्ठा करके अंधेरे में रख देते हैं । उन्हीं शुक्राणु से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था।
युयत्सु –
धृतराष्ट्र का एक बेटा युयत्सु नाम का भी था। युयत्सु एक वैश्य महिला का बेटा था. दरअसल, धृतराष्ट्र के संबंध एक दासी के साथ थे जिससे युयत्सु पैदा हुआ था।
उडुपी के राजा –
उडुपी के राजा न तो पांडव की तरफ से थे और न ही कौरव की तरफ से थे । उडुपी के राजा ने कृष्ण से कहा था कि कौरवों और पांडवों दोनों तरफ की सेनाओं को भोजन की ज़रूरत होगी और हम उन्हें भोजन बनाकर खिलाएंगे। सेना ने जब राजा से इस भोजन के बारे में पूछा तो उन्होंने इसका श्रेय पूरा कृष्ण को दिया। राजा ने कहा कि जब भगवान् कृष्ण भोजन करते हैं, तो अपने आहार से उन्हें पता चल जाता है कि कल कितने लोग युद्ध में मरने वाले हैं और भोजन इसी हिसाब से बनाया जाता है।
दानवीर कर्ण –
कर्ण जब युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस ले रहा था, तो भगवान कृष्ण ने उसकी दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही। वे गरीब ब्राह्मण बनकर कर्ण के पास गए और कहा कि तुमसे मुझे अभी कुछ उपहार चाहिए। कर्ण ने उत्तर में कहा कि आप जो भी चाहें मांग लें। ब्राह्मण ने सोना मांगा। कर्ण ने कहा कि सोना तो उसके दांत में है और आप इसे ले सकते हैं। ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं इतना कायर नहीं हूं कि तुम्हारे दांत तोड़ूं। कर्ण ने तब एक पत्थर उठाया और अपने दांत तोड़ लिए। ब्राह्मण ने इसे भी लेने से इंकार करते हुए कहा कि खून से सना हुआ यह सोना वह नहीं ले सकता। कर्ण ने इसके बाद एक बाण उठाया और आसमान की तरफ चलाया। इसके बाद बारिश होने लगी और दांत धुल गया।