सितंबर 2017 में भारत सरकर की सुप्रीम कोर्ट ने यह घोषणा करी की रोहिङ्ग्या शरणार्थी भारत के लिए खतरा साबित हो रहे हैं इसलिए इन्हें भारत की सीमा से बाहर निकाल देना चाहिए। इसके बाद हर व्यक्ति के मन में यह सवाल उठा की दरअसल यह रोहिङ्ग्या शरणार्थी कौन हैं? इस समय समूचे विश्व के राजनैतिक मानचित्र पर रोहिङ्ग्या समस्या ज्वलंत समस्या के रूप में उभर कर आ रही है।
रोहिङ्ग्या का इतिहास:
इतिहास के पन्नों को पलटने से पता लगता है की 1400 ईस्वी में अधिकतर रोहिङ्ग्या प्राचीन बर्मा के अराकान शहर में आ कर स्थायी रूप से बस गए थे। 1430 से बर्मा के तत्कालीन बौद्ध शासक नारामिखला ने उन्हें अपने दरबार में नौकरी दे दी थी। 1785 में बर्मा में बौद्ध समूह ने अधिकार कर लिया और वहाँ बसे रोहिङ्ग्या मुस्लिम जनता पर अत्याचार आरंभ करके उन्हें देश से बाहर निकालने का प्रयत्न किया। इस घटना का परिणाम रोहिङ्ग्या के बंगाल पलायन के रूप में सामने आया जब 35 हज़ार लोग 1824 से 1826 के बीच चले युद्ध में अङ्ग्रेज़ी शासकों ने बर्मा पर कब्जा कर लिया और उन्होनें रोहिङ्ग्या मूल के निवासियों को अराकान में रहने के लिए प्रोत्साहित किया।
द्वितीय विश्व युद्ध में इन्होनें जापानी सेना के विरुद्ध अङ्ग्रेज़ी शासकों का साथ दिया और परिणामस्वरूप जापानियों ने रोहिङ्ग्या मुस्लिम को यातनाएँ देना शुरू कर दिया जिससे एक बार फिर रोहिङ्ग्या मुस्लिम का पलायन बंगाल की ओर हो गया। इस युद्ध के पश्चात बर्मी सेना ने रोहिङ्ग्या को बर्मा की नागरिकता देने से इंकार कर दिया और इन्हें बिना राज्य के बंगाली घोषित कर दिया जो आज तक यथास्थिति बना हुआ है।
रोहिङ्ग्या और बांग्लादेश:
बर्मा से पलायन के बाद रोहिङ्ग्या अधिक संख्या में बंगाल जो बाद में बांग्लादेश रूपी एक देश में भी बदल गया, की ओर शरणार्थी बन कर जाते रहे हैं। लेकिन आरंभ से ही बांग्लादेश ने रोहिङ्ग्या मुस्लिमों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार नहीं किया है। इसी कारण यहाँ भी रोहिङ्ग्या मुस्लिम लोगों को बराबर अत्याचार और नरसंहार का दंश झेलना पड़ रहा है।
रोहिङ्ग्या आज कहाँ हैं:
विश्व के धरातल पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है की अगस्त 2015 से लगभग सवा लाख से अधिक रोहिङ्ग्या म्यांमार से पलायन करके बांग्लादेश, भारत, इन्डोनेशिया, मलेशिया और थायलैंड में शरण लेने की कोशिश कर चुके हैं। हालांकि अधिकतर देश उन्हें अपनी सीमाओं में शरणार्थी मानने से इंकार कर चुकी है और भारत की सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इसका उदाहरण है। म्यांमार सरकार पहले ही इन लोगों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा चुकी है जिनमें आवागमन, चिकित्सा, शिक्षा और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर प्रतिबंध शामिल हैं।
स्वयं को अरब और फारसी लोगों का वंशज मानने वाले रोहिङ्ग्या बांग्लादेश की बांग्ला भाषा से मिलती-जुलती भाषा बोलते हैं और सुन्नी इस्लाम को अपना मुख्य धर्म मानते हैं । इस समय म्यांमार में लगभग 10 लाख रोहिङ्ग्या मुस्लिम बिना नागरिकता और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में रह रहे हैं। वर्ष 2012 से म्यांमार के रखाइन राज्य में हुई हिंसा से लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं और हजारों की जान जा चुकी है। इस हिंसा में अब म्यांमार के बौद्ध भिक्षु भी भाग ले रहे हैं जिसपर संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने चेतावनी देते हुए कहा है की म्यांमार को अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए इन हमलों को रोकना होगा।