INS Vikrant : हिन्द महासागर के सिकंदर “आईएनएस विक्रांत” से जुड़े सभी फैक्ट्स

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INS Vikrant


हिन्द महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है. आज के दौर में उसे अमेरिका, भारत, चीन जैसे देशों के लिए युद्ध के मैदान के तौर पर भी देखा जा सकता है. दक्षिण भारतीय शहर कोच्ची में भारत के सबसे बड़े लड़ाकू ज़हाज विक्रांत को बनाने की तैयारी जोरो से चल रहीं हैं. जिसका वजन करीब 37 हज़ार 500 टन होगा. आपको बता दें कि विक्रांत (INS Vikrant) एक संस्कृत शब्द है. जिसका अर्थ है बहादुर.

जैसा कि सभी को मालुम है कि भारत का समुद्री इतिहास हम सभी को गौरवान्वित कर देता है. इस शानदार इतिहास में भारतीय नौसेना के पोतों का अहम योगदान रहा है. भारतीय नौसेना के पोतों के इतिहास में एक नाम सबसे पहले और शिखर पर आता है. वो नाम है आईएनएस विक्रांत (इंडियन नेवल शिप) (INS Vikrant) .

आपको बता दें कि वो 1961 था. जब इस लड़ाकू नौसेना विमान को आईएनएस विजयलक्ष्मी पंडित के नाम से शामिल किया गया था. हालाँकि, बाद में इसका नाम बदलकर विक्रांत (INS Vikrant) कर दिया गया था.

आज इस लेख में आप आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) के बारे में ही जानने वाले हैं.

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इस लेख के मुख्य बिंदु

  • सबसे पहले नज़र डालते हैं इसके इतिहास पर
  • आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) को किस तारीख को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था?
  • कैसी होती थी इसकी युद्ध में भूमिका?
  • सेवा से मुक्ति?
  • आईएनएस विक्रांत को लेकर कुछ फैक्ट्स
  • फिर से बन रहा है आईएनएस विक्रांत?
  • सरांश

सबसे पहले नज़र डालते हैं इसके इतिहास पर-

  • क्या आपको पता है कि इस लड़ाकू जहाज का निर्माण कहाँ हुआ था? अगर नहीं पता है तो आपको बता दें कि इसका निर्माण भारत में नहीं हुआ था. बल्कि ब्रिटेन के विकर्स-आर्मस्ट्रॉन्ग शिपयार्ड में हुआ था.
  • उस दौर में इसका नाम क्या था? बता दें कि उस समय इसका नाम एचएमएस (हर मजेस्टी शिप) हर्कुलस हुआ करता था.
  • इसे ब्रिटेन के मजेस्टिक क्लास के पोत में शामिल किया गया था. तब साल 1945 में इसे ब्रिटिश नौसेना की सेवा में शामिल किया गया था.
  • दूसरे विश्वयुद्ध के समय ये सक्रीय सेना का सदस्य था. लेकिन युद्ध खत्म होने के बाद ही इसकी सेवा भी खत्म कर दी गयी थी.
  • फिर साल 1957 आया, यही वो साल था. जब ब्रिटिश सरकार ने इसे भारतीय सरकार को बेच दिया था.
  • इसके बाद आयरिश हारलैंड और वोल्फ शिपयार्ड में इसे फिर से बनाया गया था. उसके पीछे का उद्देश्य ये था कि भारतीय नौसेना सही समय आने पर इसका इस्तेमाल कर सके.

आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) को किस तारीख को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था?

  • इसका जवाब है कि 4 मार्च 1961 को इसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था.

कैसी होती थी इसकी युद्ध में भूमिका?

  • आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) के ही कारण भारत का दबदबा समुद्र में काफी ज्यादा बढ़ चुका था. लेकिन इस पोत के बायलर्स में समस्या होने के कारण इसे सीमित रफ्तार में ही काम करना पड़ता था.
  • साल 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में इस विमान वाहक पोत ने पाकिस्तान को नाकों चने चबवा दिए थे. इसकी दहशत इतनी ज्यादा थी कि पाकिस्तान किसी भी हालत में इसे खत्म करना चाह्ता था. इसे खत्म करने के लिए ही उसने उस दौर में अमेरिका से एक पनडुब्बी लीज़ में ली थी. उसका नाम पीएनएस गाजी था.
  • अगर उस समय पाकिस्तान कामयाब हो जाता था. दुनिया के दिमाग में जो भारत ने मनोवैज्ञानिक प्रेशर बनाया था. वो भी खत्म हो जाता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. भारतीय नौसेना ने अपनी सूझ-बूझ से पाकिस्तान को चकमा दे दिया था.
  • तब भारतीय नौसेना ने आईएनएस राजपूत का इस्तेमाल किया था. इसी को उन्होंने विक्रांत बनाकर पेश किया था. जब पाकिस्तान ने इस पर हमला किया था. तब आईएनएस राजपूत ने गाज़ीं को खत्म कर दिया था.

सेवा से मुक्ति?

  • युद्ध के बाद विक्रांत को जहाज का जीर्णोद्धार करने के लिए भेज दिया गया था. इसके इंजन, बॉयलर और अन्य तकनीकी उपकरणों की मरम्मत भी की गयी थी. लेकिन कुछ सालों की सेवा के बाद साल 1997 में इसे सेवा से मुक्ति दे दी गयी थी.
  • सेवामुक्ति के बाद भी इसे देखने के लिए लोग अलग-अलग देशों से आते थे.
  • इसकी लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि भारतीय सरकार ने इसे तैरते हुए संग्रहालय में बदलने का फैलसा किया था.
  • इसे इंडियन म्यूजियम शिप के नाम से भी जाना जाता है.

आईएनएस विक्रांत को लेकर कुछ फैक्ट्स-

  • आईएनएस विक्रांत का सफर साल 1961 में शुरू हुआ था. इसी के साथ 31 जनवरी 1997 को इसे सेवा से मुक्ति दे दी गयी थी.
  • आईएनएस विक्रांत इस देश का पहला विमान वाहक पोत था. ब्रिटेन की रॉयल नेवी से इसे साल 1957 में खरीदा गया था.
  • बंग्लादेश को आज़ाद करने के दौर में इस विमान वाहक पोत ने काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया था. उसके लिए इससे जुड़े अधिकारियों को दो महावीर चक्र और 12 वीर चक्र मिले थे.
  • इस पोत के डेक पर पूर्व नौसैनिक प्रमुख एडमिरल आरएच तहिलयानी एयर क्राफ्ट उतारने वाले पहले भारतीय थे.
  • 36 सालों तक भारत की सेवा करने वाले इस विमान वाहक पोत को तोड़ने में 6 से 8 महीनों का समय लगा था. ऐसा दावा शिप ब्रेकिंग कंपनी आईबी कमर्शियल्स ने किया है. इस रिपोर्ट को कई लीडिंग मीडिया रिपोर्ट्स में छापा भी गया है.
  • आईएनएस विक्रांत 25 नॉट्स की रफ़्तार से समुद्र में चलता था. (25 नॉट्स यानी 25 समुद्री मील प्रति घंटा).
  • बाद में जब इस विमान वाहक पोत में तकनीकी समस्या आ गयी थी. तब इसकी रफ्तार घटकर 12 नॉट्स प्रति घंटा हो गयी थी.
  • आईएनएस विक्रांत की लंबाई 192 मीटर, बीम 24.4 मीटर और ड्राफ्ट 7.3 मीटर था.

फिर से बन रहा है आईएनएस विक्रांत?

  • जी हाँ, आईएनएस विक्रांत की वापसी होने वाली है. आपको बता दें कि इसी नाम से स्वदेशी विमान वाहक जहाज तैयार किया जा रहा है. इस स्वदेशी विमान वाहक जहाज को फरवरी 2021 तक भारतीय नौसेना को सौपने की तैयारी की जा रही है.
  • इसके निर्माण से जुड़े अधिकारियों ने बीबीसी से बात करते हुए बताया है कि इसके निर्माण का साल तो 2018 ही था. लेकिन उसमे देरी हो गयी. इसकी वजह ये है कि रूस से कई उपकरण की खरीदारी में देरी हो गयी.

सरांश-

विक्रांत के आने के बाद ये बात तो साफ़ है कि 7 करोड़ वर्ग किलोमीटर तक फैले हिन्द महासागर में इस जहाज का अपना एक अलग वर्चस्व तो होने ही वाला है. इसके डेक की क्षमता इतनी होने वाली है कि इसमें एक साथ 20 रूसी विमान खड़े किये जा सकते हैं. कोचीन शिपयार्ड में बन रहे इस ज़हाज में करीब 1000 लोगों से ज्यादा की टीम काम कर रही है.

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