संसद द्वारा पारित किया गया शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यकरण) विधेयक, 2016

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पाकिस्तान और चीन में पलायन कर गए लोग अब भारत में छोड़ी गई संपत्ति पर उत्तराधिकार का दावा नहीं कर सकेंगे। संसद में शत्रु संपत्ति कानून संशोधन विधेयक को मंजूरी मिल गई है। इस संशोधन विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी पहले ही मिल गई है। 15 मार्च 2017 कोलोकसभा ने भी ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया। शत्रु संपत्ति संशोधन विधेयक में युद्ध के बाद चीन और पाकिस्तान पलायन कर गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के उत्तराधिकार या हस्तांतरण के दावों को खारिज करने का प्रावधान है।

विधेयक पर विपक्ष की आशंकाओं को दूर करते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस कानून से मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। सरकार को अपने शत्रु राष्ट्र या उनके नागरिकों की संपत्ति रखने या फिर किसी व्यवसायिक हित में मंजूरी नहीं देनी चाहिए। ऐसी संपत्ति पर सरकार का अधिकार होना चाहिए न कि शत्रु देश के नागरिकों के पास इसका अधिकार होना चाहिए। राजनाथ सिंह ने कहा यह कानून पाकिस्तान समेत चीन और अन्य देशों में भी लागू किया जा चुका है। उन्होंने कहा यह सिर्फ पाकिस्तान गए लोगों की संपत्ति का नहीं बल्कि चीन गए लोगों की संपत्ति का मामला है।

शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यकरण) विधेयक 2016, 10 मार्च को राज्यसभा में ऐसे समय में पारित किया गया था, जब विपक्षी सदस्य सदन में लगभग नदारद थे। लोकसभा में इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित किया गया। इस विधेयक के तहत शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968, को संशोधित किया गया है। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार शत्रु संपत्ति के सभी अधिकार कस्टोडियन के अधीन होंगे और इसके अनुसार शत्रु संपत्ति का हस्तांतरण नहीं किया जा सकेगा। यह कानून अबतक हुए सभी शत्रु संपत्ति हस्तांतरणों पर मान्य होगा। नए विधेयक के अनुसार, शत्रु के उत्तराधिकारी या कानूनी उत्तराधिकारी उसकी संपत्ति के हकदार नहीं होंगे। विधेयक के अनुसार, नागरिक अदालतों और अन्य प्राधिकारों को शत्रु संपत्ति से संबंधित मुद्दों में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होगा।

यूपी में राजा महबूबाबाद की जमीन का हवाला देते हुए गृह मंत्री ने कहा कि महबूबाबाद के पुरखे राजा आमिद मोहम्मद को जमीन अंग्रेजो के जरिए तालूकदारी संपत्ति के रूप में मिली थी। महबूबाबाद अब भी जमीन के नॉन आकूपेंसी टेनेंट हैं। तालूकदारी संपत्ति वह संपत्ति है जोकि अंग्रेजो के जरिए स्वतंत्रता संग्राम के विरोधियों को दी गई थी।

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