कयादरा का युद्ध, मुहम्मद गौरी ने जब पहली बार चखा हार का स्वाद

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Battle of Kayadara


भारतीय इतिहास में Battle of Kayadara बहुत ही मायने रखता है। वह इसलिए कि विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी को इस युद्ध में बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा था। वास्तव में 1178 ई. में लड़े गए इस युद्ध में मुहम्मद गोरी ने पहली बार हार का स्वाद चखा था। नायिका देवी, जो कि पाटन की राजमाता थीं, उनके और बाल मुलराज सोलंकी के नेतृत्व में तब यह युद्ध लड़ा गया था।

इस लेख में आप पढ़ेंगे:

  • मुहम्मद गौरी का अभियान
  • गुजरात बन रहा था बाधक
  • मूलराज द्वितीय ने संभाली राजगद्दी
  • मुहम्मद गौरी ने भिजवाया था संदेश
  • घेर लिया Naikidevi के सैनिकों ने
  • नायिकी देवी की वीरता

मुहम्मद गौरी का अभियान

Muhammad Ghori तेजी से भारत की तरफ बढ़ता जा रहा था। उसने मुल्तान और उच्छ पर अपना अधिकार जमा लिया था। ये दोनों ही जगहें भारत की सीमा पर स्थित थीं। इन दोनों जगहों को अपने कब्जे में ले लेने के बाद मुहम्मद गौरी का साहस और बढ़ गया था। ऐसे में 1178 ईस्वी में उसने मुल्तान और उच्छ से होते हुए गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ा पाटन यानी कि नहरवाला की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।

पृथ्वीराज रासो में इस बात का वर्णन मिलता है कि Muhammad Ghori जब अपने इस अभियान पर आगे बढ़ रहा था, तो उसे इस बात का अंदेशा था कि पृथ्वीराज चौहान इस मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं। ऐसे में मुहम्मद गौरी ने अपने एक दूत को पृथ्वीराज चौहान के पास भेजा था और उनसे तटस्थ रहने के लिए कहा था। उस दौरान तृतीय चालुक्य शासक की मदद करने की पृथ्वीराज चौहान की इच्छा तो थी, मगर कदंबवास, जो उनका मंत्री था, उसने तब इस मामले में हस्तक्षेप कर दिया था और उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था। इस तरह से किराडू होते हुए मुस्लिम सेना आगे बढ़ती चली गई और उसने नडोल को अपने अधिकार में ले लिया।

एक शिलालेख किराडू से बरामद हुआ है। यह शिलालेख 26 अक्टूबर, 1178 ईस्वी का है। इस शिलालेख में उस दौरान घटी घटनाओं के बारे में लिखा गया है। शिलालेख को पढ़कर यह पता चलता है कि जब सम्राट Bhimdev II गुजरात के शासक हुआ करते थे, उन्हीं के शासनकाल में तेजपाल की पत्नी मानस ने उन मूर्तियों के स्थान पर नई मूर्तियां स्थापित कर दी थीं, जिन्हें तुरुषको ने नष्ट कर दिया था। अधिकतर लेखकों ने गुजरात के शासक के तौर पर भीमदेव का ही नाम लिखा है, लेकिन यदि गैर मुस्लिम स्रोतों पर नजर डालते हैं, तो इससे यह पता चलता है कि उस दौरान मूलराज द्वितीय गुजरात का शासन चला रहे थे।

गुजरात बन रहा था बाधक

मूलराज द्वितीय का शासनकाल 1178 ईस्वी तक चला था। यही वह वर्ष था, जब Bhimdev II ने भी सिंहासन संभाल लिया था। मुहम्मद गौरी ने गुजरात के चालुक्य राज्य पर 1178 ईस्वी में धावा बोल दिया था। चालुक्य उस वक्त एक बहुत ही समृद्ध राज्य हुआ करता था और वह हर तरह की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण था। इतना ही नहीं, भारत के अंदरूनी हिस्सों में दाखिल होने के लिए यह बहुत ही सुगम मार्ग भी हुआ करता था। इसके अधिकार क्षेत्र में पश्चिम राजपूत राज्य आते थे। हिंदुस्तान में दाखिल होने में गुजरात राज्य ही मुहम्मद गौरी के लिए तब बाधक बन रहा था।

गुजरात प्रदेश में चालुक्य वंश के राजपूत शासक कुमारपाल सोलंकी का शासन चल रहा था। अजयपाल सोलंकी उनके बेटे थे, जिन्हें नायिकी देवी का विवाह हुआ था। उस वक्त अन्हिलवाड़ा प्राचीन गुजरात की राजधानी हुआ करती थी। इसे राजधानी बनाने की एक वजह यह भी थी कि पूरे गुजरात के क्षेत्र को यह छूती थी। केवल 4 साल तक 1171 से 1175 ईस्वी तक ही महाराजा अजयपाल का शासन चला था, क्योंकि उनकी असमय मृत्यु हो गई थी। उनकी मौत के बाद तुर्की आक्रमणकारी इस फिराक में थे कि किसी तरीके से गुजरात पर अपना अधिकार जमा लिया जाए। न केवल गुजरात का शासन, बल्कि यहां की जनता भी तब बड़ी ही समृद्ध हुआ करती थी।

मूलराज द्वितीय ने संभाली राजगद्दी

महाराजा अजय पाल के बड़े बेटे का नाम मूलराज द्वितीय और छोटे बेटे का नाम भीमदेव द्वितीय था। जब उनकी मृत्यु हो गई, तो इसके बाद बड़े बेटे मूलराज द्वितीय को सिंहासन पर बैठाया गया था। इतिहास में मूलराज द्वितीय बाल मूलराज के नाम से भी जाने जाते हैं। वह इसलिए कि बाल्यावस्था में ही उनका राज्याभिषेक हो गया था। उनकी मां नायिकी देवी को दरबारी राजाओं और सामंतों ने यह परामर्श दिया था कि उन्हें राज्य का शासन अपने हाथ में ले लेना चाहिए, ताकि राज्य पूरी तरह से सुरक्षित रहे। हालांकि, नायिकी देवी इसके पक्ष में नहीं थीं। उनका कहना था कि ऐसा करना राजवंश के नियमों की अवहेलना होगी। राजवंश का उत्तराधिकारी यदि जीवित है, तो ऐसे में किसी और का सिंहासन पर आसीन होना मुमकिन नहीं है।

आखिरकार नायिकी देवी ने यह निर्णय लिया कि वे राज्य का नेतृत्व करेंगी। राज्य के प्रतिनिधि के तौर पर उन्होंने महाराजा बाल मूलराज द्वितीय का मार्गदर्शन करना शुरू कर दिया। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन इसी दौरान राजमाता नायिकी देवी को गुप्तचरों से यह सूचना मिली कि तुर्की आक्रमणकारी राज्य पर हमला करने की तैयारी कर रहे हैं। मुहम्मद गौरी गुजरात को अपने कब्जे में लेने की तैयारी कर रहा था। मुहम्मद गौरी ने आबू पर्वत के सामने मौजूद घाट गदारराघट्टा पर 1178 ईस्वी में अपना सैन्य शिविर बनाया था, जिसकी दूरी गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ा से 40 मील की थी।

मुहम्मद गौरी ने भिजवाया था संदेश

Battle of Kayadara से पहले मुहम्मद गौरी ने अपने ट्वीट के जरिए नायिकी देवी के पास यह संदेश भिजवाया कि सब कुछ तुम हमें सौंप दो। मैं तुम सबकी जान बख्श दूंगा। मुहम्मद गौरी को इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं था कि नायिकी देवी राजनीति में कितनी कुशल थीं। उसने उन्हें हल्के में ले लिया था। नायिकी देवी ने इस परिस्थिति में बहुत ही बुद्धिमानी से काम लिया था। उन्होंने अपने सेनापति कुंवर रामवीर से इस चिट्ठी का जवाब यह लिखवाया था कि हमने तुम्हारी सारी शर्तें मान ली हैं। नायिकी देवी ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वे जानती थीं कि जो छल कर रहा है, उसके साथ उसी तरह का बर्ताव करना उचित है।

गुप्त द्वार से वे अपने राज्य की सभी महिलाओं को लेकर निकल गईं और पड़ोसी राज्य नाडोल में उन्होंने शरण ले लिया। उधर मोहम्मद गौरी को जब यह संदेश मिला कि नायिकी देवी ने उसकी शर्तें मान ली हैं, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने सोचा कि नायिकी देवी ने तो बिना लड़े ही घुटने टेक दिए हैं। उसने जश्न मनाना शुरू कर दिया।

घेर लिया Naikidevi के सैनिकों ने

मुहम्मद गौरी भ्रम में था, जबकि इधर नायिकी देवी ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी। Naikidevi Bhimdev II और मूलराज द्वितीय को अपनी पीठ पर बांधकर अपने घोड़े पर सवार होकर मोहम्मद गौरी के सैन्य शिविर की ओर चल पड़ीं। उन्होंने अपने 25 हजार सैनिकों को अलग-अलग टुकड़ों में बांट दिया था। इतना ही नहीं, मोहम्मद गौरी के सैनिकों के बीच भी नायिकी देवी के कई सैनिक शामिल हो गए थे। उन्होंने भेष बदल लिया था। बहुत से सैनिक आबू पर्वत की घाटियों में छिप गए थे। उन्होंने इसे हर ओर से घेर लिया था। कयादरा की सीमा को भी इन सैनिकों ने घेर लिया था। नायिकी देवी आगे-आगे चल रही थी। उनके पीछे सेनापति कुंवर रामवीर भी बाकी सेना को लेकर चल रहे थे।

इधर मुहम्मद गौरी अपने शिविर से बाहर निकला, तो उसने चालुक्य सोलंकी राजपूतों को अपने सैन्य शिविर की ओर आते हुए देखा। उसे कुछ घुड़सवार अपनी तरफ आते हुए नजर आए। जब वे लोग नजदीक आ गए तो मोहम्मद गौरी ने देखा कि एक महिला अपने बच्चों को बांधकर उसकी ओर आ रही है। मुहम्मद गौरी तो यह सोच रहा था कि नायिकी देवी ने हार मान ली है, लेकिन इससे पहले कि उसे कुछ समझ में आता, उसके शिविर में जो नायिकी देवी के सैनिक मौजूद थे, उन्होंने हर हर महादेव बोलते हुए मोहम्मद गौरी के सैनिकों पर हमला कर दिया और वहां कोहराम मचा दिया।

नायिकी देवी की वीरता

नायिकी देवी के साथ हाथी वाली और घोड़े वाली सेना भी थी। पैदल सैनिक भी बड़ी संख्या में थे। उन्होंने पर्वतों को और रास्तों को हर तरफ से घेर लिया था। मुहम्मद गौरी के पास कुछ भी सोचने-समझने का वक्त नहीं बचा हुआ था। उसकी सेना भाग रही थी, जिसे कि उसने फिर से जमा किया और आक्रमण की तैयारी की। इधर नायिकी देवी दोनों हाथों में तलवार लिए हुए लड़ रही थी। मुहम्मद गौरी की सेना को नायिकी देवी के सैनिक गाजर-मूली की तरह काट रहे थे। नायिकी देवी ने भी कोहराम मचा दिया था।

मुहम्मद गौरी ने जब यह देखा तो वह बुरी तरीके से डर गया और भागना शुरू कर दिया। हालांकि नायिकी देवी की तलवार उसे भी लग गई थी, जिससे कि वह घायल हो गया था। किसी तरह से उसके सैनिकों ने उसे बचा लिया और उसे घोड़े पर बैठा कर मुल्तान पहुंचाया।

और अंत में

इस तरह से Battle of Kayadara भारतीय इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि यह हर भारतीय को यह गर्व करने का मौका देता है कि अपने देश में नायिकी देवी जैसी वीरांगना भी हुई थीं, जिन्होंने मुहम्मद गौरी को जबरदस्त धूल चटाई थी। बाद के वर्षों में भी यह आगे आई पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाला साबित होता रहा है।

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