सुप्रीम कोर्ट और उसके कार्य

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भारत के सुप्रीम कोर्ट की स्थापना, भारतीय संविधान के भाग 5, अध्याय 4 के अंतर्गत 28 जनवरी 1950 को की गई थी। संवैधानिक रूप से सुप्रीम कोर्ट भारत की न्यायिक व्यवस्था का सर्वोच्च प्राधिकरण माना जाता है। भारत के संविधान के अनुसार  सुप्रीम कोर्ट का महत्व संघीय न्यायलय और संविधान के संरक्षक के रूप में माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट की संरचना और उसके कार्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:

सुप्रीम कोर्ट और इसकी संरचना:

भारत को संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में पहचान प्राप्त करने के दो दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी। स्वतन्त्रता मिलने से पूर्व “चैंबर ऑफ प्रिंसेस” ही भारत की फेड्रेल न्यायिक व्यवस्था का कार्य देखते थे। 1958 तक सुप्रीम कोर्ट का आधिकारिक कार्यालय भी चेम्बर ऑफ प्रिंसेस का दफ्तर ही होता था। लेकिन 1958 के बाद सुप्रीम कोर्ट को वर्तमान भवन में स्ठांतरित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के गठन होने के बाद इसके द्वारा अब तक लगभग 24,000 से अधिक के फैसले लिए जा चुके हैं।

देश के सर्वोच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य व सात न्यायाधीशों के रूप में किया गया था। लेकिन समय के साथ न्यायालय के कार्यक्षेत्र में वृद्धि के साथ ही यह पीठ समय पर सभी मामलों को निपटाने में समर्थ नहीं रही। परिणामस्वरूप न्यायालय में न्यायधीशों की संख्या में भी वृद्धि की जाने लगी। 1950 में प्रारम्भिक संख्या सात से बढ़कर 1956 में 11, 1960 में 14, 1978 वर्ष में 18, 1986 में 26 और इसे बढ़ाकर 2008 में 31 न्यायधीशों की कर दी गई। इसके साथ ही यह न्यायधीश छोटी खंडपीठों के रूप में भी निर्णय लेते हैं। कुछ ऐसे केस जिनमें कानून के मूल प्रश्नों की विस्तृत व्याख्या करनी हो तब संवैधानिक पीठ के रूप में पाँच या इससे अधिक न्यायधीश यह काम करते हैं। अगर किसी कानूनी मामले में छोटी पीठ उसे सुलझाने में असमर्थ रहती है तब वह उसे बड़ी पीठ के पास विचार करने के लिए भेज सकती है।

सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र और कार्य:

भारत के सर्वोच्च न्यायलय के अधिकार क्षेत्रों और कार्यों का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124-147 में किया गया है। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट, देश की सर्वोच्च न्यायिक व्यवस्था का प्रतिरूप है जिसका मुख्य कार्य राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के हाई कोर्ट द्वारा सुनाये गए फैसलों के विरुद्ध अपील सुनकर निर्णय देना है। इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्यों के मध्य हुए विवादों या मौलिक अधिकारों व मानव अधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी हुई अपीलों को सुप्रीम कोर्ट में सीधे ही सुना जाता है। विस्तार से सुप्रीम कोर्ट के कार्यों को निम्न रूप में स्पष्ट किया जा सकता है:

  1. संघीय न्यायालय:

गणराज्य रूप में भारत के प्रशासन तंत्र को राज्य व केन्द्रीय शासित राज्यों के रूप में विभाजित किया गया है। अनुच्छेद 131 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का मुख्य कार्य यह देखना है कि राज्य व केंद्र शासित राज्यों में लिए जाने वाले निर्णय विधिनुसार लिए जा रहे हैं।

  1. संविधान व कानून की व्याख्या:

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भारतीय संविधान की व्याख्या करना एक मुख्य कार्य माना जाता है। इस व्याख्या का उपयोग किसी विधि सम्मत मामले में उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है।

  1. अपील पर सुनवाई:

भारत में सुप्रीम कोर्ट सभी न्यायलयों में सबसे ऊंची संस्था मानी जाती है। अन्य कोर्ट में जिन मामलों में संविधान की व्याख्या की ज़रूरत होती है, उनके लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर निर्णय देती  है। सिविल एवं आपराधिक मामलों के संबंध में भी यदि संविधान संबंधी किसी प्रश्न उठने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर उसका निर्णय हो सकता है।

  1. परामर्श दाता:

सुप्रीम कोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण कार्य उस किसी भी मामले में सलाह देने का माना जाता है जो देश के राष्ट्रपति के सम्मुख रखा जाता है। यह मामला वैधानिक या सार्वजनिक महत्व से संबन्धित हो सकता है।

  1. संविधान का संरक्षक:

संविधान द्वारा निर्मित सुप्रीम कोर्ट, संविधान का संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। यह कार्य दो प्रकार से किया जाता है। एक तो सर्वोच्च संघीय न्यायालय के रूप में उन मामलों में जहां केंद्र व राज्यों के मध्य शक्तियों के बँटवारे से संबन्धित कोई विवाद हो, और दूसरा भारत के प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए रक्षक के रूप में कार्य करता है।

इन कार्यों को करते समय कभी-कभी सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए क़ानूनों की समीक्षा करने की भी जरूरत हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट की यह शक्ति न्यायिक समीक्षा शक्ति कहलाती है।

  1. याचिका संबंधी कार्य:

संविधान के अनुच्छेद 32 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए रिट याचिका भी जारी करने का अधिकार रखती है।

  1. विभिन्न कार्य:

उपरोक्त कार्यों के अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 138 में भारत का सुप्रीम कोर्ट निम्न प्रकार के विभिन्न कार्य निर्देशित किए गए हैं :

  1. अपने अधीनस्थ न्यायलयों के कार्यों की जांच करना;
  2. अपने अधीनस्थ काम करने वाले कर्मचारियों की नियुक्ति व विभिन्न प्रकार की सेवा संबंधी नियम व शर्तों के साथ उन कर्मचारियों की पदोन्नति या पद से हटाने संबंधी कार्य;
  3. यदि कोई व्यक्ति न्यायलय की अवहेलना या अवमानना करता है तब उसे दंड देने का कार्य;
  4. भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोक सभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के साथ अन्य विभिन्न पदाधिकारियों के चयन में यदि किसी प्रकार का विवाद होता है, तब उसमें निर्णय लेने का कार्य;
  5. संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष सहित सदस्यों के गलत व्यवहार की जांच करना

अंत में कहा जा सकता है कि भारत में सुप्रीम कोर्ट अपने विभिन्न कार्यों के माध्यम से देश में कानून एवं व्यवस्था को भली प्रकार से लागू करना होता है।

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