महाजनपद काल का इतिहास: एक नजर में

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छठी शताब्दी ईसापूर्व को भारत के प्रारंभिक इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह क्रांतिकारी बदलावों का साक्षी रहा था। यह वह दौर था जब लोहे का प्रयोग बढ़ रहा था। सिक्कों का विकास हो रहा था। बौद्ध व जैन के साथ कई दार्शनिक विचारधाराएं विकसित हो रही थीं। इस दौरान महाजनपद के 16 राज्यों का वर्णन प्रारंभिक ग्रंथों में मिलता है। इस काल को Mahajanapada Period के नाम से इतिहास में जाना गया है और यहां हम आपको महाजनपद काल का इतिहास विभिन्न चरणों में बता रहे हैं।

Mahajanapada Period की जानकारी के स्त्रोत

  • बौद्ध साहित्य- 16 महाजनपदों के बारे में जानकारी अंगुत्तर निकाय और महावस्तु से, जबकि Mahajanapada Age के बारे में जानकारी सुत्त पिटक और विनय पिटक से प्राप्त होती है।
  • जैन साहित्य- 16 महाजनपदों का भगवती सूत्र में भी उल्लेख मिलता है।
  • विदेशी विवरण- Mahajanapada Period के बारे में जानकारी विदेशी लेखकों नियार्कस, प्लूटार्क, जस्टिन, अनेसिक्रिटस और अरिस्टोबुलस आदि की भी रचनाओं से हासिल होती है।

महाजनपदों के बारे में

महाजनपद काल का इतिहास मुख्य रूप से 16 महाजनपदों के बारे में ही है, जिनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से है:

अंग

इसकी राजधानी चम्पा (मालिनी) थी, जो वर्तमान में बिहार के भागलपुर व मुंगेर का क्षेत्र है। इसके प्रमुख नगर चम्पा (बंदरगाह), भद्रिका और अश्वपुर थे। ब्रह्मदत्त बिंबिसार के वक्त यहां का शासक था, जिसे बिंबिसार ने शिकस्त देकर मगध में अंग को शामिल कर लिया था।

अवंति

इसकी राजधानी उज्जैन एवं महिष्मति थी, जो कि वर्तमान में मध्य प्रदेश में उज्जैन जिले से लेकर नर्मदा नदी तक का क्षेत्र है। इसके प्रमुख नगर मुक्करगढ़ कुरारगढ और सुदर्शनपुर रहे है। यहां का शासक चण्ड प्रद्योत था, जो कि महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के समकालीन था। अवंति का संस्थापक हैहय वंश के लोगों को पुराणों के मुताबिक माना जाता है। चण्ड प्रधोत के उपचार के लिए एक वैद्य जीवक को बिंबिसार की ओर से ही भेजा गया था। इसे प्रमुख और बेहद शक्तिशाली महाजनपद इसलिए माना जाता था, क्योंकि यहां लोहे की खान थी।

वत्स

इसकी राजधानी कौशाम्बी (वर्तमान में इलाहबाद और बांदा) थी, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश में इलाहबाद व मिर्जापुर का क्षेत्र है। यहां का शासक उदयिन था, जिसका चण्ड प्रधोत और अजातशत्रु के साथ संघर्ष लंबा चला था। अवंति ने बाद में वत्स को जीत लिया था।

अश्मक

इसकी राजधानी पोटन या पैथान (प्रतिष्ठान) थी, जो वर्तमान में नर्मदा एवं गोदावरी नदियों के मध्य का भाग क्षेत्र है। इसकी स्थापना इक्ष्वाकु वंश के शासक मूलक ने की थी। दक्षिण भारत में स्थित यह एकमात्र जनपद था। अवंति ने बाद में अश्मक को जीत लिया था।

काशी

इसकी राजधानी बनारस या वाराणसी थी, जो वर्तमान में वाराणसी के आसपास का क्षेत्र है। द्धिवोदास ने काशी की स्थापना की थी और अजातशत्रु यहां का शासक था, जिसके शासनकाल में मगध का हिस्सा काशी बनी थी। वरुणा एवं अस्सी नदियों के बीच काशी बसी थी, जो कि सूती वस्त्र और अश्व के व्यापार के लिए जगत प्रसिद्ध थी।

कौशल

इसकी राजधानी श्रावस्ती (कुसावती/अयोध्या) थी, जो वर्तमान में फैजाबाद, गोण्डा और बहराइच का सरयू नदी का क्षेत्र है। प्रसेनजीत यहां का शासक था और यहां की राजधानी महाकाव्य काल में अयोध्या थी।

कुरू

इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर इसकी राजधानी थी। कौरण्य यहां का शासक था और महाभारत व अष्ठाध्यायी में इसका उल्लेख मिलता है। मेरठ, दिल्ली व थानेश्वर इसी महाजनपद के क्षेत्र के अंतर्गत थे।

पांचाल

अहिक्षत्र और काम्पिल्य इसकी राजधानी थी। चुलामी ब्रह्मदत्त यहां का शासक था। इसके क्षेत्र के अंतर्गत बरेली, बदायूं और फर्रूखाबाद शामिल थे, जिनका वर्णन महाभारत और अष्ठाध्यायी में मिलता है।

सूरसेन या शूरसेन

इसकी राजधानी मथुरा थी, जहां का शासक यदुवंशी भगवान कृष्ण को माना गया है। शूरसेन के बारे में मेगस्थनीज ने अपनी किताब इण्डिका में लिखा है। अवंतिपुत्र यहां का शासक था, जो कि बुद्ध का समकालीन भी था।

मल्ल

इसकी राजधानी कुशीनारा या पावापुरी थी और ओक्काक यहां के गणतंत्रात्मक शासन का प्रमुख था। इसी महाजनपद में महात्मा बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था।

वज्जि

इसकी राजधानी मिथिला या वैशाली थी, जो कि आठ लिच्छवी, विदेह, वज्जि, कुण्डग्राम, ज्ञातृक, भोज, इक्ष्वाकु और कौरव का संघ थी। इनमें सबसे प्रमुख विदेह, लिच्छवी और वज्जि थे। यहां का सबसे प्रमुख शासक चेटक हुआ था। वज्जि संघ की राजधानी वैशाली का संस्थापक इक्ष्वाकु वंश के विशाल को माना जाता है।

कम्बोज

हाटक (वैदिक युग में राजपुर) इसकी राजधानी हुआ करती थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान के रावपिण्डी, पेशावर और काबुल घाटी का क्षेत्र है। इसकी ख्याति श्रेष्ठ घोड़ों के लिए थी। यहां के दो शासकों चन्द्रवर्मण एवं सुदक्षिण का वर्णन महाभारत में भी मिलता है।

चेदी

शुक्तिमति यहां की राजधानी थी। शिशुपाल का यहां शासन था, जो कि महाभारतकालीन था और सुदर्शन चक्र से भगवान कृष्ण ने उसका वध किया था। इसके क्षेत्र में वर्तमान के मध्य प्रदेश व बुंदेलखण्ड के यमुना नदी क्षेत्र शामिल था।

गांधार

इसकी राजधानी तक्षशिला थी, जहां का शासक बिंबिसार का समकालीन पुष्कर सरीन था। आधुनिक पेशावर और रावलपिण्डी का क्षेत्र गांधार का हिस्सा थे। द्रहिवंशी यहां का शासक रहा था। ऊनी वस्त्र के लिए इसकी प्रसिद्धि थी।

मत्स्य

विराटनगर इसकी राजधानी थी और इसमें वर्तमान के राजस्थान के अलवर, जयपुर व भरतपुर के क्षेत्र शामिल थे। मत्स्य के कुरूक्षेत्र, पांचाल और सूरसेन के बारे में मनु स्मृति में कहा गया है कि ये ब्राह्मण मुनियों का अधिवास यानी कि ब्रह्मर्षिदेश थे।

मगध

इसकी राजधानी गिरिव्रज थी, जिसे कि राजगीर और राजगृह के नाम से भी जानते हैं। वर्तमान के पटना व गया तक यह विस्तृत था। मगध के प्रथम शासक को लेकर पुराणों एवं बौद्ध व जैन ग्रंथों में मतभेद है। पुराणों के अनुसार बृहद्रथ वंश ने सबसे पहले मगध पर शासन किया, जबकि बौद्ध ग्रंथ के मुताबिक हर्यक वंश ने सर्वप्रथम मगध पर शासन किया था।

निष्कर्ष

महाजनपद काल का इतिहास पढ़कर पता चलता है कि वर्तमान में भारत के जिन नगरों को हम देख रहे हैं, वहां का समाज सदियों पहले ही काफी हद तक विकसित हो चुका था। बस समय के साथ इनकी दशा में उतार-चढ़ाव आते रहे। बताएं, Mahajanapada Age के बारे में यह जानकारी आपको कैसी लगी?

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