पढ़ें, कितना मायने रखता है GI Tag?

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GI Tags


कई बार आप सुनते होंगे कि किसी उत्पाद को GI Tag मिल गया है। ऐसे में आपके मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर GI Tag है क्या? यहां हम आपको बता रहे हैं कि GI Tag क्या है और भारत के किन उत्पादों को GI Tag मिल चुका है?

ये है GI Tag

किसी क्षेत्र विशेष के उत्पादों को पहचान दरअसल GI Tag यानी कि जियोग्रॉफिकल इंडिकेशन टैग से ही मिल पाती है। उदाहरण के लिए दार्जिलिंग चाय, कांजीवरम की साड़ी, मलिहाबादी आम और चंदेरी की साड़ी आदि को GI Tag मिल चुका है। इसका मतलब यह हुआ कि इनके उत्पादन क्षेत्र के बाहर कोई और यही नाम अपने उत्पाद का नहीं रख सकता।

आसान शब्दों में कहा जाए तो GI Tag या भौगोलिक संकेत वास्तव में एक तरह का मुहर है, किसी उत्पाद को मिलता है। जैसे ही यह मुहर मिलता है, उस उत्पाद की पहचान दुनियाभर में होने लगती है। सामूहिक रूप से उस क्षेत्र को इस उत्पाद के उत्पादन का एकाधिकार मिल जाता है। GI Tag प्राप्त करने के लिए शर्त यही होती है कि जहां के लिए आपको GI Tag लेना है, उसका उत्पादन एवं प्रसंस्करण उसी क्षेत्र विशेष में होना चाहिए।

ये भी जानें

वस्तुओं का भौगोलिक सूचक (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 को भारतीय संसद की ओर से इसी उद्देश्य से पारित किया गया था कि भारत में उत्पादित माल को भी GI Tag के जरिये पंजीकरण एवं संरक्षण की सुविधा मिले। इसे लागू सितंबर, 2003 में किया गया था। यह कहना गलत नहीं होगा कि किसानों, बुनकरों, हस्तशिल्पियों एवं दस्तकारों के लिए GI Tag आय का साधन हैं। तभी तो सरकार के मेक इन इंडिया अभियान के तहत GI Tag के संवर्धन और इसके संरक्षण का बीड़ा सरकार ने उठा रखा है।

इसलिए महत्वपूर्ण है GI Tag

GI Tag का भारत जैसे देश में बड़ा महत्व है। इसके कुछ खास महत्व इस प्रकार हैं:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में इससे रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलती है। गरीब किसानों की तो इससे मदद होती ही है, साथ ही काम करने वालों को संरक्षण प्राप्त होता है। सबसे बड़ी बात है कि निचले स्तर पर भी लोग इससे काफी हद तक लाभान्वित हो पाते हैं। यह उन गिने-चुने पहलों में से है, जिसका लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचता है।
  • कृषकों की समस्याएं जिस तरह से बढ़ रही हैं और जिनकी वजह से किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं, उन्हें इस दयनीय स्थिति से उबारने में GI Tag का भी महत्वपूर्ण योगदान है। वह इसलिए कि GI Tag स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करता है, जिससे किसानों के जीवन तो आशा का संचार होता ही है, कृषि के लिए भी नई उम्मीद जगती है।
  • अब भी देश के कई आदिवासी समुदायों को विकास का लाभ नहीं मिल पा रहा है, जबकि ये आदिवास समुदाय कई विशेष तरह की चीजों में पारंगत होते हैं। ऐसे में GI Tag के जरिये इनकी विशेष चीजों को प्रोत्साहित करके इन्हें आर्थिक लाभ में परिवर्तित करेगी इन आदिवासी समुदायों की स्थिति भी बेहतर बनाने में मदद मिली है।
  • GI Tag पर्यटन को भी प्रोत्साहित करने का काम करता है। साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में भी यह बड़ा मददगार साबित होता है।
  • GI Tag का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इसकी मदद से जहां उत्पादों को अच्छा घरेलू बाजार मिलता है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय बाजार भी मिलने से इसकी कीमतों में बढ़ोतरी होती है और देश का निर्यात व्यापार फायदे में रहता है।

इन उत्पादों को मिल चुका है GI Tag

अब तक भारत में 300 से भी अधिक उत्पादों को GI Tag मिल चुका है। सबसे पहला GI Tag वर्ष 2004 में दार्जिलिंग चाय को मिला था। GI Tag 10 वर्षों के लिए मान्य होता है और उसके बाद इसका नवीनीकरण कराना पड़ता है। यहां हम आपको उन प्रमुख उत्पादों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें GI Tag प्राप्त हो चुका हैः

  • हाल ही में ओडिशा की कंधमाल हल्दी, हिमाचल प्रदेश के काला जीरा और छत्तीसगढ़ के जीराफूल सहित 14 उत्पादों को GI Tag प्रदान किया गया है। उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) की ओर से आंकड़े जारी किये गये हैं, उनमें GI Tag पाने वाले अन्य उत्पादों में केरल के वायनाड की रोबस्टा कॉफी, हिमाचल प्रदेश का चूली तेल, कर्नाटक की सिरिसी सुपारी, कर्नाटक की कुर्ग अरेबिका कॉफी और आंध्र प्रदेश की अराकू वैली अरेबिका भी शामिल हैं।
  • – मध्य प्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे, जयपुर के ब्लू पोटरी, तिरुपति के लड्डू, महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी एवं बनारसी साड़ी को GI Tag प्राप्त हो चुका है। कड़कनाथ चिकन भारत के दुर्लभ पोल्ट्री नस्लों में से एक है। यह 500 किग्रा से भी अधिक कीमत में बिकता है।
  • महाराष्ट्र के अल्फांसो आम, असम के बोका साल चावल, तेलंगाना के शिल्प आदिलबाद डोकर एवं लोकप्रिय पारंपरिक कपास गलीचे वारंगल धुर्री, पुरुलिया के चै मास्क, बंगाल के डोकरा और मधुरकाथी नामक चटाई, बिहार के मगही पान, जरदालू आम एवं कटरनी चावल को भी GI Tag मिल चुका है।
  • इनके अलावा मैसूर सिल्क एवं कांगड़ा चाय आदि को भी GI Tag प्राप्त हो चुका है।

निष्कर्ष

जिन उत्पादों को GI Tag प्राप्त हो चुका है, उनके जरिये उनका तो संरक्षण हो ही रहा है, साथ में उन लाखों-करोड़ों लोगों का भी संरक्षण हो रहा है, जो इन उत्पादों के साथ किसी-न-किसी रूप में जुड़े हैं। बताएं, GI Tag वाले किन-किन उत्पादों को आप अब तक इस्तेमाल में ला चुके हैं?

13 COMMENTS

  1. kamaal hai explain karne ka tarika aapka. GI tag ko lekar ham bahut confuse rahte the but ab mera concept ekdam clear ho gaya isko lekar. thanks a lot aapko.

  2. gi tag par ye bahut hi accha article publish kiya hai aapne. mera bhi yahi manna hai ki gi tag dekar kuch product ko encourage karna accha hai. kai chijo ki vishesh pahchan hoti hai. aapne ekdam complete article diya hai is topic pe. accha laga padhke.

  3. Ye jo aap article likhte hain ye style mujhe bahut pasand aaya hai. aapka aabhar manunga yadi aap mahadevi varma ke jivan aur sahity ke bare me ek article likhen. exam ke najariye se aapke article ko samajhna aasan hota hai.

  4. Useful article hai gi tag pe. Notes ki tarah info di aapne. thanks. geog me ek topic hai wind ke apardanatmak swarup. english me isko erosional landforms likhte hain. is pe isi tarah se agar ap jankari de sakte hain to hamare kam aayega.

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