दोस्तों, भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की मदद से भारत ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी का विकास कर लिया है, जो भारतीय विमानों को दुश्मन देश की मिसाइल से बचाने और उनके रडारों से छुपाने मे सक्षम है। DRDO की जोधपुर प्रयोगशाला द्वारा यह तकनीक विकसित की गयी है। DRDO ने इस तकनीक को नाम दिया है – Advanced Chaff Technology या एडवांस चैफ टेक्नोलॉजी, इस तकनीक की मदद से हम दुश्मन देश की मिसाइलों को आसानी से भटका सकते हैं। देश के रक्षा मंत्री ने इसे आत्मनिर्भर भारत की दिशा मे एक और कदम बताया है। इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है, कि अब देश इस तकनीक मे आत्मनिर्भर बन गया है साथ ही इस तकनीक मे होने वाले भारी खर्चे से भी निजात मिलेगी। आज के इस लेख मे हम एडवांस्ड चैफ टेक्नोलॉजी के बारे में सभी आवश्यक जानकारी आप तक पहुंचा रहे हैं। तो चलिए शुरू करते हैं- DRDO की एडवांस चैफ टेक्नोलॉजी।
क्या होती है चैफ टेक्नोलॉजी
- यह एक इलेक्ट्रॉनिक काउंटर मेजर डिस्पेंसिंग तकनीक है , जिसका इस्तेमाल लगभग सभी देशों की सेनाओं द्वारा अपने जहाजों तथा वायुयानों को दुश्मन देश की मिसाइल, रेडियो तरंगों, रडार आदि की नजर से बचाने के लिए किया जाता है।
- यह तकनीक हवा मे चैफ रॉकेट की मदद से बहुत सारे लक्ष्यों का निर्माण करके दुश्मन देश की रडार निर्देशित या रेडियो तरंग निर्देशित मिसाइल का मार्ग भटका देती है।
- वायुयानों मे चैफ टेक्नोलॉजी एक ऐसी युक्ति है जिसमे चैफ रॉकेट के प्रयोग द्वारा हवा मे बारीक़ कणों का एक बादल बना दिया जाता है, जो दुश्मन देश के रडार पर नजर आता है,रडार इसे भी लक्ष्य मानकर कार्यवाही करता है। इस अवसर का लाभ उठाकर विमान दुश्मन राडार से काफी आगे निकल जाता है।
- दूसरे शब्दों मे कहा जाये तो, चैफ टेक्नोलॉजी हवा मे दुश्मन की मिसाइलों को अपने मार्ग से भटकाने का कार्य करती है। यह तकनीक विमानों को इंफ्रा-रेड और रडार दोनों की नज़रों से बचाने मे सक्षम है।
- चैफ़ तकनीक मे एल्युमिनियम या ज़िंक की छोटी-छोटी स्ट्रिप्स का प्रयोग किया जाता है। ये धातु के बादल बनाकर रडार निर्देशित मिसाइल को भ्रमित करने का कार्य करती है।
DRDO की एडवांस चैफ टेक्नोलॉजी
- DRDO, जोधपुर की रक्षा प्रयोगशाला ने इस तकनीक का विकास उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (HEMRL), पुणे के सहयोग से प्राप्त उन्नत चैफ सामग्री और चैफ कार्ट्रिज-118/I के द्वारा किया है।
- भारतीय वायु सेना ने अपनी सभी कसौटियों मे इसे परखने के बाद इसकी सफलता की घोषणा की है और जल्द ही इसे वायुसेना मे शामिल किये जाने की पुष्टि की है।
- DRDO की एडवांस चैफ टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इससे बहुत कम चैफ सामग्री के इस्तेमाल से कार्य को अंजाम दे सकते हैं।
- DRDO की जोधपुर की रक्षा प्रयोगशाला इससे पहले इस तकनीक का भारतीय नौसेना के लिए सफल इस्तेमाल कर चुकी है।
- DRDO ने नौसेना के लिए इस तकनीक का शार्ट-रेंज चैफ रॉकेट (SRCR), मीडियम-रेंज चैफ रॉकेट (MRCR) तथा लांग-रेंज चैफ रॉकेट (LRCR) तीन श्रेणियों मे विकास किया है।
- भारतीय नौसेना ने अरब सागर मे चैफ टेक्नोलॉजी रॉकेट के शॉर्ट, मीडियम, लॉन्ग तीनो प्रकारों का सफल परीक्षण किया है।
भारतीय रक्षा एवं अनुसंधान संगठन या DRDO
- साल 1958 में भारतीय थल सेना एवं रक्षा विज्ञान संस्थान के तकनीकी विभाग के रूप में भारतीय रक्षा एवं अनुसंधान संगठन की स्थापना की गयी थी। उस समय इसकी शुरुआत 10 प्रयोगशालाओं के साथ की गयी थी।
- DRDO देश मे रक्षा उपकरणों के अनुसंधान एवं विकास के लिए एक महत्वपूर्ण संस्थान है। वर्तमान मे इसकी देशभर मे52 प्रयोगशालाएँ हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा उपकरण इत्यादि क्षेत्र मे अनुसंधान मे कार्यरत हैं।
- DRDO रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है, वर्तमान में इसके अध्यक्ष डॉ जी सतीश रेड्डी हैं तथा इसका मुख्यालय नई दिल्ली मे है।
- वर्तमान में DRDO के जिम्मे एयरोनॉटिक्स, आर्मामेंट्स, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्र्मेंटेशन, इंजीनियरिंग प्रणालियां, मिसाइलें, साज़ो सामान, नौसेना प्रणालियां, एड्वांस कम्प्यूटिंग, सिम्युलेशन, साइबर, जीवन विज्ञान, कृषि, रक्षा आदि क्षेत्रों के अनेक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स हैं।
- DRDO मिसाइल, हल्के विमान, रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध हथियारों का भी विकास करता है तथा रक्षा से जुड़ी अनेक परियोजनाओं में कार्य करता है।
- DRDO का अध्यक्ष रक्षा मंत्री का वैज्ञानिक सलाहकार, सामान्य अनुसंधान और विकास का निदेशक तथा रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग का सचिव भी होता है।
- DRDO के महान वैज्ञानिकों में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, अविनाश चन्देर, टेसी थॉमस, एन प्रभाकरन, वी के सारस्वत आदि शामिल हैं।
- DRDO द्वारा एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम(IGMDP) के तहत ब्रह्मोस, पृथ्वी, आकाश ,नाग, त्रिशूल, अग्नि, पिनाक जैसे अनेकों मिसाइलों का विकास किया गया है।
- भारत ने जुलाई 1983 मे स्वदेशी मिसाइल के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के उद्देश्य के साथ समन्वित निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम (इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम-(IGMDP) की स्थापना की थी।
- स्वदेशी तकनीक से मिसाइल बनाने की जिम्मेदारी रक्षा एवं अनुसंधान संगठन DRDO को सौपी गयी। अभी तक DRDO द्वारा जितनी भी मिसाइलों का विकास किया गया है वो सब IGMDP के अंतगर्त किया गया है।
- हाल ही में, DRDO द्वारा आकाश NG मिसाइल का विकास किया गया है। इसके द्वारा फुर्ती के साथ उड़ने वाले ऑब्जेक्ट को निशाना बनाया जा सकता है।
- वर्तमान में DRDO मे 5000 से अधिक वैज्ञानिक तथा 25000 से अधिक तकनीकी कर्मचारी कार्य करते हैं। हल्के भार वाले तेजस विमान के विकास मे DRDO का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
चलते चलते
DRDO ने रक्षा उपकरणों के अतिरिक्त कोरोना काल में भी देश के लिए वेंटिलेटर, PPE किट, मास्क, ऑक्सीजन प्लांट, Covid हॉस्पिटल, दवा आदि का निर्माण करके अपनी उपयोगिता को और अधिक बढ़ा दिया है। DRDO Centre for Personnel Talent Management (CEPTAM) के द्वारा विभिन्न तकनीकी पदों पर आवेदन आमंत्रित करता है। देश के युवाओं के पास DRDO में कार्य करके देश सेवा करने का सुनहरा मौका रहता है। DRDO ने देश की सीमओं की रक्षा के लिए मानव रहित विमान संजय-नेत्र का विकास किया है , इसके अतिरिक्त युद्धक टैंक, रोबोट आर्म्स, लेजर चेतावनी प्रणाली, वायु रक्षा फायर नियंत्रण रडार जैसी अनेक तकनीकों का विकास भी किया है। भारत की आंतरिक एवं बाह्य रक्षा प्रणाली में DRDO का अविस्मरणीय योगदान रहा है। DRDO अपनी तकनीक और क्षमताओं में दिन-प्रतिदिन वृद्धि करता जा रहा है। हम आशा करते हैं की DRDO ऐसे ही नये कीर्तिमान स्थापित करते हुए देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाते रहे। इसी उम्मीद के साथ हम आज का यह लेख समाप्त करते हैं। जय हिन्द।