Flute player यानी कि बांसुरी वादक की जब बात निकलती है, तो सबसे पहले जो चेहरा हमारी आंखों के सामने उमड़ता है, वह है कान्हा का। वही कान्हा, जिसे हम भगवान श्री कृष्ण भी कहते हैं। भारत में ऐसे कई बांसुरी वादक हैं, जिनकी धुन सुनकर वैसे ही सुनने वाले मग्न हो जाते हैं, जैसे कान्हा के बांसुरी बजाने पर गोपियां सहित पूरे गांववाले उनकी ओर खिंचे चले आते थे।
यहां हम आपको ऐसे ही flute players of India के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने इसके जरिये दुनियाभर में देश का नाम भी रोशन किया है और जिनके मुख पर खुद माता सरस्वती विराजमान हैं।
इस लेख में हम बात करेंगे इनके बारे में:-
- पंडित हरिप्रसाद चौरसिया
- एन रमानी
- पंडित रोनू मजूमदार
- शशांक सुब्रमण्यम
- देबोप्रिया और सुष्मिता चटर्जी
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया
- ये flute player famous हैं अपनी बांसुरी से ऐसी धुन निकालने के लिए, जिसे सुनकर हर कोई मुग्ध हो जाता है। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को 1992 में भारत सरकार पद्म भूषण और वर्ष 2000 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित कर चुकी है।
- उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में 1 जुलाई, 1938 को जन्मे और बनारस के गंगा किनारे बचपन व्यतीत करने वाले हरिप्रसाद चौरसिया ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर संगीत सीखा। जहां अपने पड़ोसी पंडित राजाराम से उन्होंने संगीत की बारीकियों का ज्ञान लिया, वहीं वाराणसी के पंडित भोलानाथ प्रसाना से उन्होंने बांसुरी बजानी सीखी।
- शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने में विशेष भूमिका निभाने वाले पंडित हरिप्रसाद सिलसिला, चांदनी, साहिबान, डर, फासले, लम्हे और विजय जैसी हिंदी फिल्मों एवं तेलुगू फिल्म सिरीवेनेला को भी संतूर वादक शिवशंकर शर्मा के साथ मिलकर अपने मधुर संगीत से सजा चुके हैं।
- पद्म भूषण एवं पद्म विभूषण के अतिरिक्त वर्ष 1984 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, वर्ष 1992 में कोर्णाक सम्मान एवं वर्ष 2000 में हाफिज अली खान पुरस्कार से भी पंडित हरिप्रसाद चौरसिया नवाजे जा चुके हैं।
- फ्रांसीसी सरकार की ओर से ‘नाइट ऑफ दि आर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स’ पुरस्कार प्राप्त करने वाले पंडित हरिप्रसाद ने कुछ फिल्मों में बाॅलीवुड के प्रख्यात संगीतकारों सचिन देव बर्मन एवं राहुल देव बर्मन के साथ भी मिलकर अपनी बांसुरी से संगीत दिया।
एन रमानी
- Flue player की बात हो और एन रमानी का नाम न लिया जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता। तमिलनाडु के तंजावुर जिले के तिरुवरूर में 15 अक्टूबर, 1934 को जन्मे और अपनी बांसुरी की धुन से संसार को दीवाना बनाकर 9 अक्टूबर, 2015 को इस दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो गये एन रमानी को वर्ष 1996 में तमिलनाडु सरकार ने मद्रास म्यूजिक एकेडमी के संगीत कलानिधि पुरस्कार से सम्मानित किया था।
- एन रमानी, जिनका पूरा नाम नटसन रमानी था और जिन्होंने कर्नाटक संगीत में बांसुरी वादन की शुरुआत की थी, उनका परिवार भी बांसुरी वादन से ही जुड़ा हुआ था। अपने दादा अझियुर नारायण स्वामी अय्यर से एन रमानी ने बांसुरी बजाना सीखा था।
- बचपन से ही संगीत में रुचि रखने वाले रमानी ने सिर्फ पांच साल की उम्र में ही कर्नाटक संगीत में प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था और आठ वर्ष की उम्र में अपने पहले कंसर्ट में प्रस्तुति भी दी थी।
- अपने मामा टीआर महालिंगम के मार्गदर्शन में रमानी ने बांसुरी वादन की अपनी कला को बहुत ही खूबसूरती से निखारा। ऑल इंडिया रेडियो पर वर्ष 1945 में रमानी ने पहली बार प्रस्तुति दी। सिर्फ 22 वर्ष की उम्र में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिलने लगी।
पंडित रोनू मजूमदार
- कृष्ण लीला को बांसुरी की धुन में जीवंत करने के लिए ये flute player famous हैं। वर्ष 2014 में प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से सम्मानित होने वाले रोनू मजूमदार की जड़ें मैहर घराने से हैं, जिसने देश को पंडित रवि शंकर और उस्ताद अली अकबर खान जैसे कई मशहूर संगीतकार दिये हैं।
- रोनू मजूमदार मास्को में हुए फेस्टिवल ऑफ इंडिया के साथ नई दिल्ली में एशियाड 1982 में भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। यूनाइटेड स्टेट्स के साथ सिंगापुर, जापान, कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड और मध्य पूर्व के कई देशों में ये अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।
- आर्ट ऑफ लीविंग के बैनर तले आयोजित हुए वेणु नाद कार्यक्रम में उन्होंने एक ही मंच पर 5 हजार 378 बांसुरी वादकों को जमा करके एक कंसर्ट का आयोजन भी किया था, जो कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो चुका है।
शशांक सुब्रमण्यम
- शशांक सुब्रमण्यम भी सर्वश्रेष्ठ flute players of India में से एक हैं, जो कि ग्रैमी अवाड्र्स तक के लिए नामांकित हो चुके हैं। भारत सरकार की ओर से प्रदान किये जाने प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार को प्राप्त करने वाले शशांक सुब्रमण्यम सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं।
- शशांक जब 1984 में सिर्फ 6 साल के थे, तभी से उन्होंने बांसुरी बजाना शुरू कर दिया था। बीते तीन दशकों के दौरान ढेरों कंसर्ट में बांसुरी वादन से अपने दर्शकों का दिल जीत चुके हैं।
- रुद्रपटना में प्रो सुब्रमण्यम के यहां जन्मे शशांक सुब्रमण्यम ने अपने पिता से कर्नाटक संगीत की दीक्षा ली। पंडित जसराज से उन्होंने हिंदुस्तानी संगीत सीखा।
- बिना किसी गुरु के खुद से बांसुरी वादन सीखने वाले शशांक सुब्रमण्यम ने परंपरागत बांसुरी वादन की तकनीक से हटकर कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के मिश्रण को अपने बांसुरी वादन में जगह दी है।
देबोप्रिया और सुष्मिता चटर्जी
- प्रयागराज (इलाहाबाद) के संगीत घराने से ताल्लुक रखने वालीं देबोप्रिया और सुष्मिता चटर्जी ‘Flute Sisters’ यानी कि ‘बांसुरी बहनों’ के नाम से मशहूर हैं। दोनों बहनें हिंदुस्तानी संगीत की कलाकार हैं, जो कि भारतीय बांसुरी संगीत में पारंगत हैं।
- देबोप्रिया और सुष्मिता चटर्जी ने पंडित भोलानाथ प्रसन्ना से बांसुरी बजाने का प्रशिक्षण लिया है। अपनी किशोरावस्था में ही दोनों बहनों ने अपने गुरु पंडित हरिप्रसाद चैरसिया के साथ बांसुरी बजाना सीखना शुरू कर दिया था।
- देबोप्रिया चटर्जी को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत श्रेणी में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
चलते-चलते
इन सभी flute players ने देशभर में बांसुरी वादन को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनकी बांसुरी की धुनों को सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। हिंदुस्तानी संगीत में इनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।