संसद में भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन बिल पास, जानिए इसमें किए गए हैं क्या- क्या बड़े बदलाव

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भ्रष्टाचार रोकथाम कानून

भ्रष्टाचार हमेशा से ही हमारे देश की एक बड़ी समस्या रही है। भ्रष्टाचार एक ऐसे दीमक की तरह है, जो भीतर ही भीतर राष्ट्र को खोखला बना रहा है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए कड़े कानून की लगातार मांगों के बाद आखिरकार देश में अब जल्द ही भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन बिल पास हो जाएगा। भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन बिल को संसद के दोनों सदनों यानी कि लोकसभा और राज्यसभा से मंजूरी मिल गई है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब इसे जल्द ही पूरे देश में लागू भी कर दिया जाएगा।

भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन बिल 2018 के अनुसार अब रिश्वत लेना और देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आएगा। इसमें रिश्वत लेने और देने वालों को अधिकतम सात साल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है। अब तक हमारे देश में साल 1988 में बना भ्रष्टाचार रोकथाम कानून ही लागू था। लेकिन लगातार इस बिल में संशोधन की मांगे उठ रही थी। इस कानून के लागू होने से जहां भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सकेगी, वहीं ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण भी मिलेगा।

भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन बिल में किए गए बड़े बदलाव

  • पहले सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत लेते पकड़े जाने पर सिर्फ 6 महीने से लेकर 5 साल तक की सजा का प्रावधान था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 3 से 7 साल कर दिया गया है।
  • सरकारी पद पर बैठे किसी भी कर्मचारी पर रिश्वत लेने का मामला चलाने से पहले लोकपाल या लोकायुक्त से अनुमति लेनी होगी।
  • पहले सिर्फ रिश्वत लेने को ही अपराध की श्रेणी में रखा गया था, लेकिन अब रिश्वत देना भी अपराध में गिना जाएगा। इसमें भी 3 से 7 साल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है।
  • कानून में किए गए संशोधन के मुताबिक किसी बिचौलिए के जरिए रिश्वत लेना भी अपराध होगा और बिचौलिए को भी सज़ा मिलेगी।
  • हालांकि पहले बिल में भी रिश्वत लेने के लिए उकसाना अपराध माना जाता था और ऐसे अपराधी को 6 महीने से 5 साल तक की सजा होती थी। लेकिन अब इसमें भी सज़ा को बढ़ाकर 3 से 7 साल कर दिया गया है। साथ ही ऐसे अपराधी को जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
  • पहले अवैध तरीके से प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा करने वाले को क्रिमिनल ऑफेंडर माना जाता था, लेकिन संशोधित कानून के मुताबिक अब उसे भी 3 से 10 साल तक की सज़ा दी जाएगी।
  • 1988 के बिल के अनुसार पहले केंद्र और राज्य सरकार की इजाजत के बगैर सरकारी कर्मचारी पर केस नहीं चलाया जा सकता था। लेकिन अब संशोधित कानून के तहत उन सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को भी इस प्रावधान में लाया गया है, जिनके सेवाकाल के दौरान ऐसी घटना घटी हो.
  • नए कानून के तहत भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए कर्मचारियों की संपत्ति की कुर्की और प्रक्रियाओं में भी बदलाव किए गए हैं।
  • अब कोर्ट में हर दिन जब तक संभव हो भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई की जाएगी। इसे लेकर 2 साल में मामले के निपटारे का प्रावधान किया गया है।

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