सूरज पृथ्वी पर जीवन देता है, यह सभी ने अपने बचपन में सुना होगा। लेकिन यही सूरज, पृथ्वी को नुकसान भी पहुंचा सकता है, शायद यह बात बहुत कम लोग जानते हैं। अगर सूरज की किरणें सीधे ही पृथ्वी पर पड़ें तो उसके प्रभाव से दुनिया के लोगों को कैंसर हो सकता है, फसलों को नुकसान हो सकता है और समुद्र में रहने वाले प्राणियों की जान को भी खतरा हो सकता है। पर्यावरण को होने वाले इस नुकसान को बचाने के लिए प्रकृति ने एक परत का निर्माण किया है । यह परत ब्रह्मांड में पृथ्वी और सूर्य के बीच में आती है और इसे ओज़ोन परत कहते हैं।
क्या है आज़ोन परत?
सूर्य और पृथ्वी के बीच के झीनी परत है जो औक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनी गैस के रूप में होती है। वातावरण में इस गैस या परत का अंश 0.02 प्रतिशत होता है। यह गैस पृथ्वी के निकट के वायुमंडल में जन-जीवन के लिए हानिकारक होती है लेकिन समताप मण्डल में इससे कोई नुकसान नहीं होता है। पृथ्वी पर मानव श्वसन तंत्र को भी इस गैस से नुकसान होता है।
पृथ्वी से कितनी ऊपर है ओज़ोन?
ओजोन परत वास्तव में पृथ्वी के धरातल से लगभग 15 से 40 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होती है। इस प्रकार यह परत पृथ्वी को एक सुरक्शित आवरण प्रदान करती है। इसमें स्थित गैस से सूर्य से निकालने वाली हानिकारक परा बैंगनी किरणें सीधे धरती पर नहीं आती हैं। इस प्रकार इन किरणों के दुष्प्रभाव से पृथ्वी को बचाने में सफल होती हैं।
ओज़ोन की खोज
पृथ्वी की इस सुरक्षा परत की खोज फ्रांस के भौतिकशास्त्री फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने 1913 में की थी। इस खोज पर विस्तार से अध्ययन ब्रिटिश मौसम वैज्ञानिक जी एक बी डोब्सन ने किया था। डोब्सन ने एक स्पेक्ट्रोफोटोमीटर का निर्माण किया था जो स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन को पृथ्वी की सतह से मापने में समर्थ था। इनहोनें पूरे विश्व में ओज़ोन परत की निगरानी करने के लिए एक नेटवर्क स्थापित किया था जो वर्तमान समय में भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। आज भी ओज़ोन की मात्रा को नापने की इकाई को डोब्सन इकाई के नाम से जाना जाता है।
ओज़ोन परत का क्षय
पर्यावरण में बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण ओज़ोन परत में क्षय हो रहा है। सीमाहीन औद्योगीकरण के कारण विनाशकारी गैसों और रसायनों का प्रयोग ओज़ोन के क्षय का प्रमुख कारण है। क्लोरों फ्लोरो कार्बन’ (सी.एफ.सी), क्लोरीन और नाइट्रस ऑक्साइड गैसें इन गैसों में पहले नंबर पर आती हैं जो इस क्षय का मूल कारण मानी जातीं हैं। इसके कारण इसके होने का उद्देश्य समाप्त हो रहा है और पृथ्वी को नुकसान हो रहा है। औस्ट्रेलिया में ओज़ोन परत में छेद होने के कारण वहाँ कैंसर के मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इसके अतिरिक्त, ओज़ोन क्षय ने पृथ्वी के ध्रुवों पर गरमी भी बहुत बढ़ गई है। इस कारण बड़े-बड़े हिमखंड पिघल रहे हैं। अगर हिमखंडों के पिघलने का सिलसिला जारी रहेगा तो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
ओज़ोन को कैसे बचाएं?
ओज़ोन परत की सुरक्षा की रक्षा करना एक वैश्विक समस्या है। इस संबंध में दुनिया भर में विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। इनमें से प्रमुख है फ्लुओरो कार्बन के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध का लगाया जाना। यह वर्ष 2000 तक लागू था।