निष्क्रिय इच्छा मृत्यु पर भारत में कानून

[simplicity-save-for-later]
5104

महाभारत महाकाव्य में यह कथा प्रचलित है की भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था और इसका उपयोग उन्होने अपनी मृत्यु का समय स्वयम चुनकर किया था। लेकिन आधुनिक काल में इच्छा मृत्यु को अधिकार न मानते हुए इसे एक अपराध की श्रेणी में रख दिया गया। इसके कारण इच्छा मृत्यु को आत्महत्या का नाम देकर, जघन्य अपराध मान लिया गया। लेकिन काफी समय से इच्छा मृत्यु को वैधानिक अधिकार के रूप में स्वीकार करने की मांग चली आ रही है। इस संबंध में कुछ लोगों का मत है की जो लोग असाध्य बीमारी से ग्रस्त हैं और उनके जीवन में असहनीय दर्द के सिवा कुछ नहीं है, उनके लिए इच्छा मृत्यु वरदान है, अपराध नहीं।

भारत में इच्छा मृत्यु पर कानून:

भारत में 2006 में विधि आयोग ने अत्यंत गंभीर रोगियों का चिकित्सा उपचार विधेयक पर एक रिपोर्ट बनाई थी, जिसमें इच्छा मृत्यु को कानूनी जमा पहनाने पर विचार करने की प्रार्थना करी गई थी। इसके बाद 2010 में उच्चतम न्यायलया ने इचका मृत्यु प्रक्रिया के संबंध में एक दिशा निर्देश की विस्तृत सूची जारी की गई थी। इस संबंध में न्ययालय ने भारत सरकार द्वारा कानून बनाए जाने पर ही इन दिशा निर्देशों के लागू करने का निर्णय लिया। इसपर आगे स्पष्ट करते हुए उच्चतम न्ययालय ने कहा की अगर कोई गंभीर और असाध्य बीमारी से ग्रस्त मरीज स्वयं या उसका कोई रिश्तेदार इच्छा मृत्यु की आज्ञा चाहता है तो इसके बाद संबन्धित व्यक्ति के नजदीकी रिशतेदारो और चिकित्सकीय विशेषज्ञों से सलाह ली जाएगी।

इच्छा मृत्यु की अपील करने वाले व्यक्तियों में अधितर वो व्यक्ति होते हैं जो युवा होते हैं लेकिन हर प्रकार से अक्षम होने के कारण स्वयं को परिवार और समाज पर बोझ मानते हैं। इस प्रकार का एक केस मुंबई के अस्पताल में नर्स के रूप में काम करने वाली अरुणा शानबाग का मामला बहुत महत्व रखता है। अरुणा एक दरिंदगी का शिकार होकर लगभग 43 साल तक मृतप्राय स्थिति में रही। उसकी हालत देखकर एक पत्रकार ने उसकी ओर से इच्छा मृत्यु का आवेदन किया था। लेकिन कोर्ट ने अरुणा के मस्तिष्क को सही अवस्था में मानकर, इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया था।

भारत में इच्छा मृत्यु पर बने कानून के ड्राफ्ट पर मिश्रित मत और टिप्पणी  देखने को मिले। इनके आधार पर 2006 में इस संबंध में कानून बनाने पर विचार किया गया था। लेकिन विशज्ञाओं की राय के बाद इस विचार को त्याग दिया गया। 2011 में पुनः उच्चतम न्ययालय ने विस्तृत दिशा निर्देश जारी करके इस दिशा में एक नयी पहल शुरू करी।

2012 में कानून मंत्रालय ने फिर निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के संबंध में कानून का प्रस्ताव बनाया। अभी तक इस स्मबंध में कोई फैसला नहीं लिया जा सका है। अक्तूबर 2017 में भी सरकार ने इच्छा मृत्यु के संबंध में फैसला सुरक्षति किया है।

अंतरारीष्ट्रीय पटल पर इच्छा मृत्यु कानून:

बहुत लंबे विचार-विमर्श और बहस के बाद नीदरलैंड, बेल्जियम, संयुक्त राज्य अमेरिका और स्विट्ज़रलैंड में इच्छा मृत्यु को वैध बनाया जा चुका है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.