लेखन कला में सुधार करने के लिए क्या करें

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सभ्यता के विकास के साथ ही जब व्यक्ति ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए कलम उठाई तब सबसे पहले चित्र रूप में उसने अपने शब्दों को व्यक्त किया। लेकिन जल्द ही यह चित्र शब्दों में बदल गए और समाज में लेखन कला का विकास होने लगा। आज भी हर व्यक्ति अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने के लिए मौखिक या लिखने का माध्यम अपनाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि लेखन वास्तव में एक कला और कौशल होता है, जिसके विकास के द्वारा ही हमारे विचारों की अभिव्यक्ति संभव हो पाती है। कुछ लोग इस कला से जन्मजात ही प्रभावित होते हैं तो कुछ लोग अभ्यास के द्वारा इस कला में पारंगत हो जाते हैं। अगर आप भी अपनी लेखन कला में सिद्धहस्त होना चाहते हैं तब आपको इसके लिए एक विशेष तकनीक के अनुसार लेखन कार्य को करना होगा:

1. वर्तनी अशुद्धि:

लेखन कला में वर्तनी या स्पेलिंग अशुद्धि बहुत महत्व रखती है। भाषा कोई भी हो, उसके शब्दों को अगर गलत रूप में लिखा जाये तो कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है। हिन्दी भाषा में यह अशुद्धि मात्रा , विसर्ग आदि जैसे व्याकरण तत्वों के रूप में हो सकती है। यही रूप अँग्रेजी भाषा में भी दिखाई देता है। इसलिए किसी भी लेखन को शुरू करने से पहले संबंधी भाषा के शब्दों को लिखने का पूर्ण अभ्यास बहुत जरूरी है।

2.व्याकरण शुद्धता:

किसी भी लेखन में व्याकरण की गलतियाँ लेख को न केवल असपष्ट कर देती हैं बल्कि लेखक की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि आप जिस भी भाषा में लेखन कर रहे हों उस भाषा के आधारभूत व्याकरण का ज्ञान होना चाहिए। व्याकरण का अपूर्ण ज्ञान या ज्ञान का अभाव, लेखन की भाषा को नष्ट कर देता है।

3. सरल भाषा का प्रयोग:

किसी भी प्रकार के लेखन में हमेशा सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए। भाषा की क्लिष्टता उसे पढ़ने वाले के लिए समझने की परिधि से दूर ले जाती है। इस कारण लेखक के लेख का उद्देश्य विफल हो जाता है। सरल भाषा में लिखा गया कोई भी निबंध, पत्र, कहानी हो या भाषण हमेशा उसमें प्रवाह और बोधगम्यता के तत्व मौजूद रहते हैं। इसके लिए थोड़े अभ्यास की जरुरत होती है। आप निरंतर अपने अभ्यास से अपने लेख में सरल भाषा का प्रयोग करने में सफल हो सकते हैं।

4. सरल शब्दों का प्रयोग:

सौन्दर्य शरीर का हो या शब्दों का देखने और सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन किसी भी लेखन में केवल सरल शब्दों का ही प्रयोग अच्छा माना जाता है। अगर आप अपने लेख में भाषा के भारी और शुद्ध शब्दों का प्रयोग करते हैं तो वह पाठक को समझने में कठिनाई हो सकती है। इसलिए जहाँ  तक संभव हो अपने लेख के लिए सरल और समझ में आने वाले शब्दों का ही प्रयोग आपको करना चाहिए।

5. सरल वाक्य संरचना का प्रयोग:

हिन्दी व्याकरण में वाक्यों के तीन प्रकार बताए गए हैं। ये प्रकार हैं सरल, संयुक्त व मिश्रित वाक्य। संयुक्त व मिश्रित वाक्य लंबे और जटिल होते हैं और इन्हें जोड़े रखने के लिए विभिन्न प्रकार के विराम चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार इन वाक्यों की संरचना थोड़ी जटिल हो जाती है और पाठक की दृष्टि से इन वाक्यों में छिपे अर्थ को समझना कठिन भी हो जाता है। इसलिए आपको अपने लेख में अपनी बात कहने के लिए सरल वाक्य संरचना का ही इस्तेमाल करना चाहिए।

6. शब्द बहुलता से बचें:

कुछ विद्धवान लेखक अपनी बुद्धि व ज्ञान के प्रदर्शन के लिए कठिन और अधिक शब्दों के प्रयोग को उचित समझते है। जबकि वास्तविकता तो यह है कि लेख का सौन्दर्य उसमें लिखे कठिन शब्दों से नहीं बल्कि सरल शब्दों से ही निखरता है। इस प्रकार के शब्द कई बार पाठक को लेख की विषयवस्तु और उद्देशय से भी भटका सकते हैं। इसलिए लेख में जहाँ तक हो सके शब्द सरल और कम संख्या में होने चाहिए।

7. तकनीकी व कठिन शब्दों से बचें:

लेख लिखते समय उसके विषय और पढ़ने वालो के ज्ञान के स्तर का ध्यान रखते हुए ही तकनीकी शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। अधिकतर विज्ञान व तकनीकी विषय से संबन्धित लेख में संबन्धित विषयों की शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। कहीं -कहीं तो शब्दों के संक्षिप्ताक्षर जिन्हें अँग्रेजी में एब्रिवेशन भी कहा जाता है, का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इससे लेख के पढ़ने में कठिनाई बढ़ जाती है। इसलिए जरूरत पड़ने पर कठिन और तकनीकी शब्दों का प्रयोग जरूरी हो तब इन शब्दों की व्याख्या भी साथ में होनी चाहिए जिससे पाठक को लेख के पढ़ने में कठिनाई न हो।

8. विशेषणों का कम प्रयोग:

भाषा में हालाँकि विशेषण व क्रिया विशेषण साहित्यक लेख में शोभा बढ़ा देते हैं। लेकिन सामान्य लेख जैसे भाषण या निबंध आदि में यही विशेषण लेख के प्रवाह को रोक देते हैं। इसलिए व्याकरण के इन तत्वों का प्रयोग लेख की प्रकर्ति के अनुसार ही करें। इस प्रकार के शब्दों के स्थान पर संज्ञा व साधारण क्रिया आदि का प्रयोग आपके लेख को धाराप्रवाह बनने में मदद कर देता है।

9. लेख में प्रवाहशीलता:

कोई भी लेख तभी सफल माना जाता है जब उसमें शुरू से लेकर अंत तक एक समान प्रवाह बना रहे। इसके लिए बहुत जरूरी है कि विचारों की क्र्मबद्धता, सरलता और स्पष्टता भी लेख में शामिल हो। किसी भी प्रकार की लेखन प्रक्रिया में यह कार्य एकदम से और पहले प्रयास में नहीं आता है। इसके लिए आपको लेख लिखने के बाद उसका एक या दो बार रिविज़न करना जरूरी होता है।

10. वस्तुनिष्ठ होना:

लेख का वस्तुनिष्ठ होने से अर्थ है कि लेख में रोचकता का तत्व होना बहुत जरूरी है। इसके लिए आपको सरल भाषा, सरल शब्द और संक्षिप्त वाक्यों का ही प्रयोग करना चाहिए। इससे न केवल आपके लेखन में सरलता बनी रहेगी बल्कि पाठक की दृष्टि से उसमें रोचकता का गुण भी हो सकेगा।

वर्तमान समय में हर व्यवसाय व क्षेत्र में सफलता को निर्धारित करने वाले तत्वों में लेखन कला का भी बहुत महत्व सिद्ध हो चुका है। इसलिए आप किसी भी भाषा में किसी भी प्रकार के लेख को लिखने से पहले यहाँ बताई गई तकनीक की सहायता से लेखन कौशल में सुधार कर सकते हैं।

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