पिछले कुछ सालों में इस शब्द का प्रयोग कई बार पढ़ा होगा! लेकिन बहुत काम लोगों को इस के बारे में मालूम है। आइए जानते है कि गैर निष्पादित परिसंपत्ति क्या है।
अर्थशास्त्र में बैंक की “गैर निष्पादित परिसंपत्ति” वह है जिस पर कोई ब्याज या आय नहीं हो पाती। उदाहरण के तौर पर आप एक लोन के बारे में सोचिए जिसका ब्याज देने में या वह रकम वापिस देने में ग्राहक असमर्थ है। आर.बी.आई के अनुसार जिस टर्म लोन की मूल रकम या ब्याज या दोनों 3 महीनों तक अगर न चुकाए जाये तो वह “गैर निष्पादित परिसंपत्ति” कहलाती है। हालाँकि खेती या कृषि लोन के लिए यह व्याख्या कुछ अलग है।
- छोटी अवधि की फसल के लिए- अगर लोन की क़िस्त या ब्याज 2 फसल तक नहीं दी गयी तो उसे “गैर निष्पादित परिसंपत्ति” कहा जाएगा ।
- लंबी अवधि की फसल के लिए- अगर लोन की क़िस्त या ब्याज 1 फसल तक नहीं दी गयी तो उसे “गैर निष्पादित परिसंपत्ति” कहा जाएगा ।
गैर निष्पादित परिसंपत्ति का वर्गीकरण:
1. अवमानक परिसंपत्ति: वह संपत्ति जो 12 महीने या कम अवधि के लिए गैर निष्पादित परिसंपत्ति बनी रही हो ।
2. संदिग्ध परिसंपत्ति: वह संपत्ति जो 12 महीने या कम अवधि के लिए अवमानक आस्तियां बनी रही हो ।
3. घाटे की आस्तियां: ये वह संपत्तियां है जिनकी कीमत वसूल नहीं की जा सकती और उसे विश्वसनीय संपत्ति नहीं कहा जा सकता ।
गैर निष्पादित परिसंपत्ति का असर
गैर निष्पादित परिसंपत्ति बढ़ जाने से बैंक घाटे में चलती है। इसके परिणाम स्वरूप बैंक अपने अन्य ग्राहकों को उनके पैसे या तय किया गया ब्याज नहीं दे पाती। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है। बैंक बंद हो जाने से तथा अपने ग्राहकों को पैसे न दे पाने से कई व्यापार और रोजगार बंद हो जाते है। इससे देश में गरीबी और निरक्षरता बढती है।
गैर निष्पादित परिसंपत्ति का उपाय
सबसे असरकारक उपाय है गैर निष्पादित संपत्तियों की वसूली करना।
इसके लिए नीचे दिए गए कानून का प्रयोग कर सकते है।
1. The Recovery of Debts Due to Banks and Financial Institutions Act, 1993
2. The Securitization Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest (SARFAESI) Act, 2002