15 अगस्त 1947 के रात 12 बजे , एक देश ने 100 वर्ष की दासता से मुक्ति प्राप्त करी थी। लेकिन इसके साथ यह दुख था एक देश के दो टुकड़े हो गए और उसी समय हिंदुस्तान और पाकिस्तान नाम के दो देश विश्व के मानचित्र पर उभर कर आ गए। इस बँटवारे के कारणों का अध्ययन करने से यह विचार और दृढ़ हो जाता है की यह बंटवारा रोका जा सकता था। आइये देखते हैं की वो क्या कारण थे जो इतने बड़े बँटवारे के कारण बने :
- ब्रिटिश शासकों का कपट :
ब्रिटिश शासकों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की कपट पूर्ण नीति का पालन करते हुए हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोगों को अलग होने के फायदे और साथ रहने के नुकसान बताए थे।
- गांधी और नेहरू के बीच क्या था :
1945 के बाद राजनीति के पर्दे पर गांधी का युग समाप्ति की ओर बढ़ रहा था और नेहरू जी का शुरू हो रहा था। दोनों के विचार और नीतियाँ विरोधी होनी शुरू हो गईं थीं। गांधी जी, नेहरू को युवा नेता मानते हुए अपना उत्तराधिकारी मानते थे लेकिन नेहरू, गांधी जी की नीतियों को प्रासंगिक न मानते हुए अपने विचारों का समर्थन चाहते थे। नतीजा तीसरा पक्ष जीत गया ।
- नेहरू और पटेल की नीति :
1934 में कांग्रेस को चुनावों में जीत मिली लेकिन अधिकतम सीटें हिन्दू पक्ष से थीं और वो मुस्लिम लोगों के मत नहीं प्राप्त कर पाये। इस जीत से नेहरू ने एकाधिकार की प्रवृति को जन्म दिया जिसका टकराव पटेल की नीति से हो रहा था।
- जिन्ना का शौक :
दूसरा विश्व युद्ध आरंभ हो जाने के कारण कांग्रेस ने वायसराय की सलाह लिए बिना सभी प्रांतीय सरकारों से इस्तीफा दिलवा दिया। राजनैतिक खालीपन का फायदा जिन्ना ने उठाया और खुद को ब्रिटिश शासकों का खैरख़्वाह बताने और सिद्ध करने का शौक पूरा किया ।
- मुस्लिम लीग की सफलता :
राजनैतिक खालीपन का फाड़ा उठाकर जिन्ना ने थकी और कमजोर मुस्लिम लीग को उन जगहों पर भी मजबूत कर दिया जहां वो सबसे ज्यादा कमजोर थी। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से हिस्से से निकली मुस्लिम लीग मुस्लिम बहुत क्षेत्रों में जिन्ना की जिद और मेहनत से सफल हो गयी ।
- जिन्ना की ज़िद और कांग्रेस की कमजोरी :
कमजोर होती कांग्रेस का फायदा जिन्ना ने मुस्लिम लीग को मजबूत करके पाकिस्तान के बनने का रास्ता खोल दिया । 1940 में लाहौर में उन्होने पाकिस्तान के बनने की घोषणा कर दी थी।
- कांग्रेस और मुस्लिम लीग का विरोधी व्यवहार :
1935 में गायब मुस्लिम लीग , जिन्ना की मेहनत के चलते 1945-46 में भारी जीत हासिल कर चुकी थी। प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस हिंदुओं और मुस्लिम लीग मुस्लिम लोगों का प्रतिनिधित्व करती नजर आ रही थी।
- हिन्दू कट्टरवाद :
कांग्रेस का एक हिस्सा मुस्लिम जनता को प्रसन्न करने के लिए हिन्दू धर्म का समर्थन करने से कतराता था। जबकि एक हिस्सा कट्टरवाद का समर्थक था। जबकि वास्तविकता यह थी की ये वो लोग थे जो अखंड भारत का समर्थन करते थे।
- हिन्दू-मुस्लिम विरोध :
कांग्रेस, हिन्दू -मुस्लिम विरोध को खत्म करने में असफल रही थी जिसे ब्रिटिश शासकों ने अपने हितों के लिए बहुत भयंकर रूप दे दिया था।
- धर्म और इतिहास का गलत प्रारूप :
भारत में हिन्दू और मुस्लिम शासकों का दौर रहा है । लेकिन मैकाले की शिक्षा ने दोनों धर्म के मानने वालों को दूसरे धर्म के शासक को गलत बता कर इतिहास और धर्म दोनों का ही गलत इस्तेमाल किया ।
कारण चाहे कोई भी हो, लेकिन विभाजन कभी भी सुखदायी नहीं होता है ।