वर्ष 2017 का अंतिम दिवस भारत के चिकित्सा जगत में एक हलचलल मचा कर गया है। यह हलचल लोकसभा में 15 दिसंबर 2017 को एक बिल के पेश करने से उत्पन्न हुई है जिसके माध्यम से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में परिवर्तन आने की संभावना है। संसद के विपक्षी सदस्यों और देश के डॉक्टरों द्वारा इस बिल का तीखा विरोध किया गया। आइये देखते हैं की यह नेशनल मेडिकल कमीशन बिल 2017 वास्तव में क्या है ?
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल क्या है :
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रिय चिकित्सा आयोग 2017 के अंतर्गत चार स्वायत्त बोर्ड बनाने का प्रावधान किया गया है। इन सभी बोर्ड का काम चिकित्सा क्षेत्र के ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षा की देखभाल के अतिरिक्त देश के चिकित्सा संस्थानों की मान्यता और सभी डॉक्टरों के पंजीकरण को देखना है। इस आयोग में चेयरमैन का चयन लोकसभा के नामांकन के द्वारा होगा। आयोग के शेष सदस्यों का चयन सर्च कमिटी के माध्यम से किया जाएगा। इस आयोग का गठन और प्रबंधन सरकार के सचिव की देख-रेख में किया जाएगा। वर्तमान परिस्थितियों में आयोग में 12 अंशकालिक पूर्व और 5 चयन किए गए सदस्य होंगे। इन सदस्यों का चयन देश के अग्रणी चिकित्सा संस्थान जैसे एम्स, आईसीएमआर के अध्यक्ष में से किया जाएगा।
उद्देश्य:
- देश में विश्व स्तर की चिकित्सा पद्धति का निर्माण और विकास करना ;
- चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर उच्च कोटी के चिकित्सक प्रोफेशनल उपलब्ध होनें को सुनिश्चित करना ;
- कार्यरण चिकित्सकीक प्रोफेशन्ल्स को नवीनतम खोजों को अपने कार्य पद्दती और प्रणाली में समावेशित करने का प्रोत्साहन देना।
- समयान्तराल पर देश के चिकत्सा संस्थानों का मूल्यांकन करना;
- देश को एक मेडिकल रजिस्टर के रूप में स्थायी रिकॉर्ड उपलब्ध करवाना जिसमें चिकत्सा सेवाओं के विभिन्न मानदंडों को रिकॉर्ड करने की सुविधा होगी।
कार्य:
- भारत की चिकित्सा शिक्षा के लिए अनिवार्य शिक्षा नीति का निर्माण करना;
- देश की चिकत्सा सेवा के लिए आधारभूत सारंचना का ठोस विकास करना;
- चिकत्सा आयोग और बोर्ड के सुचारु संचालन की व्यवस्था करना;
- सम्पूर्ण देश के निजी चिकत्सा संस्थानों में अधिकतम 40% सीटों के लिए उपयुक्त फीस या शुल्क के निर्धारन के लिए नीति निर्धारण करना;
- चिकित्सा अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा आयोग को सौपने गए विभिन्न अधिकारों और कर्तव्यों के व्यवस्थित पालन करना;
इसके अतिरिक्त इस आयोग द्वारा ग्रेजुएट चिकित्सकों को भी प्रेक्टिस करने के लिए लाइसेन्स लेने का प्रावधान इस बिल के माध्यम से किया गया है। संस्थानों को ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की संख्या में वृद्धि करने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। आयुर्वेद चिकिसक, ब्रिज कोर्स करने के बाद ही एलोपैथी की प्रैक्टिस कर पाएंगे।
सरकार इस बिल के माध्यम से चिकित्सा में फैले भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही है।