जी हाँ, आपने सही सुना है, देवभाषा के नाम से भारत में प्रसिद्ध संस्कृत भाषा पूरे विश्व में अकेली ऐसी भाषा है जिसका इस्तेमाल हजारों साल पहले वेदों के लिखने के लिए किया गया था। अब यही भाषा भविष्य में नासा की ऐसी भाषा बनने जा रही है, ज्सिका प्रयोग वे अन्तरिक्ष में संदेश भेजने के लिए करने जा रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा है, कि संस्कृत में ऐसा क्या है जो इसे सनातन और विशेष बनाता है, आइये देखते हैं:
संस्कृत भाषा में औषधीय गुण:
संस्कृत भाषा के बोलने और उच्चारण से विभिन्न रोगों में सुधार होता है। दरअसल संस्कृत बोलने में सबसे ज्यादा विसर्ग और अनुस्वार तत्व का प्रयोग होता है। विसर्ग का उच्चारण करते समय शरीर में वही प्रक्रिया होती है जो कपालभाति योग करते समय होता है अथार्थ श्वास को बाहर फेंका जाता है। इसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण करते समय भ्रामरी योग का प्रभाव होता है। इस प्रकार संस्कृत के उच्चारण में विसर्ग और अनुस्वार के उच्चारण करते समय प्राणायाम के यह दो योग अपने आप ही हो जाते हैं। इस कारण शरीर में होने वाले विभिन्न रोग जैसे रक्तचाप, शुगर, हाई कोलेस्ट्रॉल आदि स्वयं ही ठीक हो सकते हैं।
इसके अलावा संस्कृत में संधि प्रयोग से उच्चारण करते समय जीभ के हिलने से एक्यूप्रेशर का प्रयोग अपने आप ही हो जाता है। इस प्रकार संस्कृत के नियमित रूप से बोलने से मन और बुद्धि स्वस्थ एवं निरोग हो जाती है।
संस्कृत का तकनीकी रूप:
संस्कृत भाषा में किसी वस्तु को नाम उसमें निहित गुण के आधार पर रखा गया है। इसलिए यदि हम अगर किसी वस्तु के संस्कृत प्रारूप को देखते हैं तो हमें उसके लक्षण और गुण भी दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए ‘हृदय’ शब्द का विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि संस्कृत में इसके लक्षण बृहदारण्यकोपनिषद 5.3.1 में बताए गए हैं।
यहाँ ‘हृदय’ शब्द ‘ह्र’+ ‘द’ + ‘य’ इन तीन धातुओं की संधि से बना है जहां ‘ह्र’ आया है ‘हरित’ से जिसका अर्थ है शरीर से अशुद्ध रक्त लेने वाला, ‘द’ वास्तव में ‘ददाती’ का प्रथम अक्षर है जिसका अर्थ होता है ‘देना’। यहाँ हृदय शुद्ध रक्त शरीर को देता है। इसी प्रकार ‘य’ को संस्कृत के शब्द ‘याती’ से लिया गया है जिसका हिन्दी अर्थ है गति प्रदान करना। इस प्रकार हृदय वह है जो शरीर में रक्तवाहिनियों के माध्यम से अशुद्ध रक्त लेकर, तीव्र गति से उसे शुद्ध रूप में पुनः शरीर में वापस भेज देता है। यह गुण विश्व की अन्य किसी भी भाषा में नहीं है।
संस्कृत का वैज्ञानिक रूप:
नासा के वैज्ञानिकों ने संस्कृत को उस भाषा के रूप में पाया कि इसमें लिखे हुए वाक्यों को अगर उल्टा भी कर दिया जाए तब भी उनका अर्थ नहीं बदलता है। जबकि यह गुण अन्य किसी भी भाषा में उपलब्ध नहीं है। यह परिणाम तब सामने आया जब नासा के द्वारा अन्तरिक्ष में यात्रियों को भेजे जाने वाले संदेशों के अर्थ वाक्यों के चिन्न-भिन्न होने पर बदल जाते थे। विभिन्न प्रकार के शोध करने के बाद संस्कृत भाषा में लिखे वाक्यों में जब अर्थ अपरिवर्तनीय रहे तब यह माना गया कि संस्कृत का प्रयोग अन्तरिक्ष सम्प्रेषण के लिए सर्वश्रेष्ठ हो सकता है।
संस्कृत और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग:
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कंप्यूटर का अस्तित्व पूरी तरह से कंप्युटेशन के सिद्धांत पर टिका हुआ है। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार आधुनिक विज्ञान इस सिद्धांत के विभिन्न सिद्धांतों और प्रारूपों में खोज कर रहा है उसपर संस्कृत भाषा के सबसे बड़े ज्ञानी महर्षि पाणिनी ने लगभग 500 वर्ष पूर्व एक सम्पूर्ण ग्रंथ रच दिया था। अपने व्य्यकरण में पाणिनी ने औक्सिलियर सिंबल्स के सहयोग का प्रयोग किया था जिसपर आधुनिक कंप्यूटर भाषाएँ रची गई हैं। इसी विशेषता के आधार पर इयोवा यूनिवर्सिटी में पाणिनी के नाम पर एक प्रोग्रामिंग भाषा की रचना की है जिसका नाम ही पाणिनी प्रोग्रामिंग लेंगवेज़ रखा गया है। इसी तर्क के आधार पर आधुनिक कंप्यूटर विशेषज्ञ संस्कृत को कंप्यूटर की हर प्रकार की समस्याओं के एकमात्र हल के रूप में देखते हैं। नासा के द्वारा बनने वाले छठी और सातवीं पीढ़ी के कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर ही आधारित हैं।
संस्कृत से शिक्षा में सरलता:
शिक्षा शास्त्रियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि संस्कृत भाषा के उच्चारण से शरीर का लासिका तंत्र एक्टिव रहता है। इसके कारण मस्तिष्क हमेशा जागृत रहता है। इससे जो बच्चे शुरू से संस्कृत का नियमित रूप से पठन-पाठन करते हैं उनके लिए गणित और विज्ञान जैसे जटिल विषय भी सरल हो जाते हैं। इसका कारण उनकी ग्रहण शक्ति और स्मरण शक्ति औसत से अधिक विकसित हो जाती है। इसके अतिरिक्त संस्कृत को विश्व की अधिकतम भाषाओं की जननी माना जाता है, इस कारण संस्कृत के छात्र किसी भी अन्य भाषा को सरलता से सीख और ग्रहण कर सकते हैं।
संस्कृत और सर्वांगीण विकास:
विश्व में संस्कृत एकमात्र भाषा मानी जाती है जिसके अध्ययन,पठन और वाचन से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव हो पता है। संस्कृत में लिखे शब्दों का उच्चारण करने से जीभ और उँगलियों में लचिलापन बना रहता है। इसके अलावा संस्कृत के शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क क्षमता में वृद्धि करती है जिसके कारण सीखने की, निर्णय लेने की और स्मरणशक्ति में असाधारण वृद्धि होती है। संस्कृत के मंत्र जाप करते समय शरीर की मोटर स्किल्स में भी सुधार होता है। इस प्रकार चिकित्सक संस्कृत भाषा को बच्चे के सर्वांगीण विकास में सहायक मानते हैं।
देवभाषा के रूप में प्रसिद्ध और विश्व के भाषा जगत में जननी के पद पर सुशोभित होने पर भी संस्कृत को विदेशों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त हो रहा है। लंदन के एक जूनियर स्कूल में संस्कृत एक अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में संस्कृत में पीएचडी की सुविधा उपलब्ध है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, नासा में संस्कृत का उपयोग अनिवार्य होता जा रहा है।