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भारतीय शासक जिनकी अमिट छाप आज भी जीवित है



भारत के इतिहास के संबंध में अल्लामा इकबाल ने यह शेर बहुत सही कहा है कि कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।। यह बात है उन शासकों की जिन्होनें किसी न किसी रूप में अपने शासन के दौरान कुछ ऐसे काम किए जिनसे न केवल उनका विश्व मानचित्र पर भारत का नाम हमेशा स्वरनाक्षरों में लिखा गया है। आइये आपको ऐसे शासकों की लंबी कड़ी में से कुछ का परिचय यहाँ करवाते हैं:

1. राजेन्द्र चोल प्रथम  (1014-1044ई.):

चोल वंश का प्रतापी राजा जिन्होनें 1014 ईस्वी में राज्यगद्दी सम्हाली थी। राजेन्द्र चोल ने अपनी सैन्य कुशलता का परिचय देते हुए केवल हस्ती सेना के सहयोग से ही दक्षिण से लेकर उत्तर भारत पूर्वी राज्यों तक अपने शासन का विस्तार किया था। चीन, बर्मा और श्रीलंका आदि विदेशों में भी अपनी जीत का डंका बजाते हुए राजन्देरचोल ने अरब सागर के द्वीप पर भी अपना अधिकार किया था। जन सुविधाओं का ध्यान करते हुए सबसे पहला सिंचाई के लिए तालाब बनवाया था। इस प्रकार राजेन्द्र चोल वो महान शासक के रूप में जाने जाते हैं जिन्होनें सबसे पहले सेना और नागरिकों को एक समाज दर्जा दिया था।

2. चन्द्रगुप्त मौर्य (322 से 298 ई. पू):

अपने लगन और बुद्धिमत्ता के बल पर एक साधारण बालक भी कुशल शासक और अखंड देश के निर्माता के रूप में जाना जा सकता है, यह चन्द्रगुप्त मौर्य के इतिहास से सिद्ध हो जाता है। चाणक्य जैसे गुरु के निर्देशन में एक साधारण कबीले के युवक ने निरंकुश और अत्याचारी नन्द वंश के राजा घनानन्द को हटाकर मगध के शासक बन गए। उसके बाद प्रथम बार छोटे-छोटे-प्रान्तों में बिखरे भारत को एक सूत्र में बांधकर सम्राट चन्द्रगुप्त की उपाधि प्राप्त की। विदेशी देशों को आक्रमण से नहीं बल्कि मैत्री और विवाह सम्बन्ध स्थापित करके ही अपने अधीन कर लिया था। सबसे पहले भारत को सोने की चिड़िया का नाम भी चन्द्रगुप्त के शासन में ही मिला था, क्योंकि इस समय जन-जीवन, देशी और विदेशी व्यापार और प्रशासन व न्याय व्यवस्था संतुलित व पूर्ण विकसित अवस्था में थी।

3. समुद्रगुप्त (335-376)

चन्द्रगुप्त के बाद गुप्त राजवंश का चौथा शासक और भारत का नेपोलियन के नाम से मशहूर समुद्रगुप्त कुशल व उदार शासक, वीर योद्धा और कला-प्रेमी के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। अपने पूरे शासन काल में कभी पराजय का स्वाद न चखने वाले यह अनोखे शासक सिद्ध हुए हैं। धर्म के प्रति  रुचि होने के कारण समुद्र्ग्प्त ने अपने शासनकाल में अश्वमेघ यज्ञ भी किया था जो इतिहास में कहीं भी उनसे पहले किसी ने नहीं किया था।

4. अजातशत्रु (493 ई.पू. से 461 ई.पू.):

कहते हैं कि अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बूसार का वध करके राज्य प्राप्त किया था। लेकिन इसके बावजूद अजातशत्रु ने एक कुशल शासक के रूप में शक्तिशाली भारत के हाथ और पैर मजबूत करने का काम ही किया था। उत्तर और दक्षिण के राज्य तो आधीन थे ही इन्होनें उत्तर पूर्वी राज्यों को भी अपने शासन काल में मिलाकर राज्य का विस्तार ही किया था। इस प्रकार अपने शासन काल में 36 राज्यों को जीतने वाले ये अभूतपूर्व शासक सिद्ध हुए थे।

5. हर्षवर्धन (606ई.-647ई.)

मात्र 16 वर्ष की कच्ची उम्र में शासक बनने वाले हर्षवर्धन एक कुशल शासक सिद्ध हुए थे। राज्य के सुचारु संचालन के साथ ही हर्ष ने नागरिक प्रशासन और धर्म के प्रति भी अपनी पूर्ण निष्ठा दिखाई थी। कहा जाता है कि हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत की आर्थिक स्थिति पूर्व स्वावलंबी थी। चीन के राजा के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाते हुए हर्ष ने अपने शासन को वहाँ भी स्थापित कर लिया था।

6. पृथ्वीराज चौहान (जन्म- 1149 – मृत्यु- 1192 ई.)

राय पिथौरा के नाम से प्रसिद्ध पृथ्वी राज, चौहान वंश का प्रसिद्ध राजा माने जाते हैं। दिल्ली में शासन करते हुए इन्होनें अपने राज्य की सीमाओं को अजमेर तक बढ़ा लिया था। वीर और कला प्रेमी राजा पृथ्वी को शब्दबेधी बाण में महारत हासिल थी। यह उनकी सैन्य कुशलता ही थी कि इनके शासनकाल में कोई भी विदेशी राजा भारत को जीत नहीं सका था। मोहम्म्द गोरी के 14 आक्रमण को विफल करने के बाद छल से हुए एक आक्रमण में यह हार गए। तब अपने कवि मित्र के सहयोग से पृथ्वी राज चौहान ने मोहम्मद गोरी के प्राणों का अंत कर दिया था।

7. अशोक महान (269 – 232 ई पू)

एक समय में अत्यंत क्रूर शासक के रूप में जाने गए अशोक ने अपने समय में अबतक के सबसे बड़े साम्राज्य पर राज्य किया था। लेकिन कलिंग के युद्ध में हुए हृदय परिवर्तन के कारण अपने राजपाट को तुरंत सौंप कर अपना जीवन बौद्ध धर्म के प्रति समर्पित कर दिया था। एक आततायी शासक किस प्रकार सहिष्णुता, प्रेम और सत्य के साथ अहिंसावादी व्यक्ति में परिवर्तित हो गए, अशोक इसकी जीवंत मिसाल हैं।

8. महाराणा प्रताप (1540-1597)

भारत के मध्यकालीन इतिहास में महारणा प्रताप का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। अपने जीवन में मुगल सम्राट के सामने न झुकने के प्रण को न केवल प्रताप ने स्वयं बल्कि उनकी संतान ने भी सच्चे मन से निभाया था। अकबर से लड़कर उन्होने चित्तौड़गढ़ वापस लिया और उनके इस कदम को राजपूती शान का प्रतीक माना जाता है। प्रताप की वीरता की भावना न केवल मनुष्यों में बल्कि समस्त प्राणी जगत में पूजी जाती थी। उनके इसी गुण को उनके घोड़े चेतक ने प्राण देकर भी निभाया था।

9. छत्रपती शिवाजी (1660-1680)

एक कुशल योद्धा और शासक के रूप में शिवाजी ने अपना जीवन मुगल शासन के विरोध में ही व्यतीत किया था। सबसे पहले छापामार युद्ध तकनीक और गुरिल्ला सेना का निर्माण प्रयोग शिवाजी ने ही किया था। देशभक्त और कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्ध शिवाजी मुगल सेना में पहाड़ी चूहा के नाम से जाने जाते थे।

10. टीपू सुल्तान (1750 – 1799 ई)

मैसूर के शेर के नाम से प्र्सिध टीपू सुल्तान एक सच्चे देशभक्त, कुशल शासक और आधुनिक तकनीक का जनता की भलाई में इस्तेमाल करने वाले पहले आधुनिक शासक थे। आजीवन अँग्रेजी सेना से जम कर लोहा लेते रहे और इसी समय उन्होनें सबसे पहले राकेट तकनीक का इस्तेमाल किया था। इसके अतिरिक्त टीपू ने एक नए कैलेंडर की शुरुआत करके नाप-तोल की एक नयी प्रणाली का भी विकास किया था। अपनी सेना के विकास में उन्होनें नौ सेना को भी बराबर का महत्व देते हुए 20 रणपोतों को अपने बेड़े में शामिल किया था। उनकी वीरता का अँग्रेजी सेना में इतना खौफ अब तक है कि लंदन म्यूजियम में आज तक टीपू सुल्तान को एक लड़ाकू लुटेरा के नाम से जाना जाता है।

11. अकबर: (1556 – 1605 ई.)

मुगल सम्राट अकबर ने विदेशी होते हुए भी स्वयं को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हुए हमेशा यहाँ के विकास और भलाई के लिए ही कार्य किया। अकबर वो सबसे पहले शासक थे जिन्होनें सबसे पहले सभी धर्मों को एक समान मान कर उन्हें सम्मान देने का कार्य किया था। स्वयं अधिक शिक्षित न होते हुए भी उन्होनें शिक्षित और समझदार लोगों को अपने राज्य में सम्मान देते हुए उनकी राय को हमेशा महत्व दिया और एक कुशलता पूर्वक शासन भी किया। अकबर ने राजपूती संस्कृति को बराबर का मान देते हुए वैवाहिक संबंध बनाए और उनका हमेशा मान रखा।

भारतीय इतिहास की माला में अनेक मोती जड़े हुए हैं और सबका विस्तृत वर्णन करना असंभव है। फिर भी हमने कुछ व्यक्तित्वों से आपका परिचय करवाया है।