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कौन थे हरित क्रान्ति के जनक?



द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1940-60 के मध्य पूरा विश्व अजीब से अवसाद व तनाव से गुज़र रहा था। इस समय सबसे अधिक नुकसान से गुजरने वाले जापान का जीर्णोद्धार करने की सबसे अधिक ज़रूरत थी। बिखरे जापान को पुनः खड़ा करने के लिए गई अमरीकी सेना में एक कृषि वैज्ञानिक एस सिसिल सेलमेन थे जिन्होनें विकास के लिए कृषि में विकास करने को आधार बनाया। उन्होनें विभिन्न शोधों और तकनीकों का प्रयोग करके एक विशेष प्रकार की गेंहू की किस्म तैयार की जिसका दाना काफी बड़ा था। उन्होनें इस गेंहू को आगे शोध के लिए अमरीका भेजा जहां नॉर्मन ब्लॉग ने मैक्सिको की किस्म के साथ संकरीत करके एक नयी किस्म की खोज की। इसके परिणामस्वरूप पूरे विश्व में कृषि के उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि दिखाई दी। इस प्रकार कृषि क्षेत्र में हुए अभूतपूर्व शोध विकास, तकनीकी परिवर्तन व संबन्धित चरणों को ‘हरित क्रान्ति’ का नाम दिया गया।

इस लेख में आप जानेंगे:

हरित क्रान्ति क्या थी?

हरित क्रान्ति के जनक कौन थे?

विश्व में नोरमेन बोरलेग  को हरित क्रान्ति का जनक माना जाता है। इसी प्रकार भारत में हरित क्रान्ति के जन्मदाता एम एस स्वामीनाथन को माना जाता है। आइये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं:

नोरमेन बोरलेग :

एम एस स्वामीनाथन:

इन परिणामों से उत्साहित होकर मेक्सिको से नवीनतम विकसित गेहूँ के बीजों का बड़ी मात्रा में सरकार द्वारा आयात किया गया। जिसके परिणामस्वरूप 1968 में गेहूँ की फसल का उत्पादन इतना अधिक हो गया था कि उसे सम्हालने और लाने-लेजाने के लिए बोरियाँ, बैलगाडियाँ, मजदूर और गोदाम कम पड़ने लगे। यह सफर यहीं नहीं खत्म हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि यदि 1961 से 2001 के बीच भारत में जनसंख्या में दोगुनी से अधिक वृद्धि हुई है तो अनाज उत्पादन में 4 गुने से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।

चलते-चलते

भारत में हरित क्रान्ति के फलस्वरूप न केवल फसल उत्पादन, संसाथ्न व तकनीक में विकास दिखाई दिया है बल्कि कृषि योग्य भूमि में भी निरंतर विकास हो रहा है।

स्वामीनाथन के प्रयासों के पुरस्कार के रूप में भारत सरकार ने उन्हें भारत में हरित क्रांति का जंक मानते हुए 1972 में पद्म भूषण के पदक से सम्मानित किया गया। उनकी दिखाई राह पर चलकर भारत 25 वर्षों के अंतराल में ही खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सका है।