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बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन ने तय कर दी देश की आज़ादी

भारत में अपनी हुकूमत कायम रखने के लिए अंग्रेजों की तो नीति ही ‘फूट डालो और राज करो’ की रही थी। साथ ही राष्ट्रवादी आंदोलनों के दमन के लिए भी उन्होंने विभाजन वाली नीति का सहारा लिया। वर्ष 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल विभाजन का कदम उठाना इसी दिशा में उठाया गया एक कदम था कि बंगाल जो भारतीय राष्ट्रवाद का तब प्रमुख केंद्र बनकर उभर चुका था, विभाजन करके उसे तितर-बितर कर दिया जाए।

ऐसे हुआ बंगाल का विभाजन

ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम 3 दिसंबर, 1903 को बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव यह तर्क देकर लाया कि यहां कि विशाल आबादी के कारण प्रशासनिक व्यवस्था सुचारु तरीके से नहीं चल पा रही है और इसके कुशल संचालन के लिए बंगाल का विभाजन करना जरूरी है। हालांकि, सभी जानते थे कि इसका उद्देश्य तो दरअसल बंगाल में सिर उठा चुके राष्ट्रवादी आंदोलनों का दमन था, क्योंकि इसका प्रभाव देशव्यापी हो रहा था।

भाषा के आधार पर विभाजन

धर्म के आधार पर विभाजन

ऐसे हुआ विरोध

प्रभावी हुआ बंगाल विभाजन

स्वदेशी आंदोलन का आगाज

स्वदेशी आंदोलन के दौरान गतिविधियां

स्वदेशी आंदोलन के आर्थिक प्रभाव

स्वदेशी आंदोलन के राजनीतिक प्रभाव

उम्र विद्रोह एवं स्वतंत्रता आंदोलन

निष्कर्ष

बंगाल के विभाजन के परिणामस्वरुप जो स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ, उसके बारे में यदि यह कहा जाए कि इसने भारत की आज़ादी की घड़ी को और नजदीक ला दिया, तो यह अतिशयोक्ति बिल्कुल भी नहीं होगी, क्योंकि यह आंदोलन उस वक्त हर भारतीय यह एहसास दिलाने में सफल रहा कि देश को आजाद कराने में वे किस तरह से अपना योगदान दे सकते हैं। इससे लोगों ने स्वदेशी के महत्व को समझा और आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनकर गुलामी की दासता से मुक्त होकर आजाद भारत में सांस लेने का सपना भी देखने लगे। स्वदेशी आंदोलन में जनता की बढ़ती भागीदारी को देखकर स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे नेताओं में भी नई जान आ गई और अपना सर्वस्व न्योछावर करने की भावना के साथ वे और तन-मन से देश को आजाद कराने की लड़ाई में जुट गये। क्या आपको नहीं लगता कि स्वदेशी आंदोलन की जरूरत आज भी है, ताकि स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर हम अपने देश को आर्थिक रूप से और मजबूत एवं आत्मनिर्भर बना सकें?