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मुमकिन है सार्वजनिक क्षेत्र से लैंगिक असामनता को दूर करना, पढ़ें कैसे?



भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने विदाई भाषण में कहा था, ‘हमें अच्छी महिलाएं दो, हमारे पास एक महान सभ्यता होगी। हमें अच्छी माताएं दो, हमारे पास एक महान देश होग।’ करीब पांच दशक पहले डाॅ राधाकृष्णन द्वारा की गई ये टिप्पणी कल जितनी प्रासंगिक थी, उतनी ही प्रासंगिकता इसकी आज भी है। अंतर बस इतना है कि जिस दौर में उन्होंने ये बात कही थी, तब महिलाओं के लिए सार्वजनिक क्षेत्रों में अवसर कम थे, मगर आज इन अवसरों की प्रचुरता है। फिर भी यह एक कड़वा सच है कि अब भी सार्वजनिक क्षेत्रों में काम कर रही महिलाओं की अनुपात पुरुषों की तुलना में केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई विकासशील देशा में कम है, जो इस बहस को जन्म देता है कि आखिर सार्वजनिक क्षेत्रो में कब इस अनुपात को यदि बराबर नहीं तो कम-से-कम बेहद नजदीक लाया जा सकेगा?

पिछले दो दशकों में


सिंगापुर और कनाडा से प्रेरणा लेने की जरूरत

भारत यहां है

सार्वजनिक क्षेत्र में लैंगिक असामनता पर एक नजर

निष्कर्ष

नीलसन के एक सर्वे में पता चला था कि दुनिया में सबसे अधिक 87 फीसदी महिलाएं भारत में तनाव की गिरफ्त में हैं। जरूरत इस बात की है कि महिलाएं जो घर से लेकर बाहर तक के काम को संभालने में पूरी तरह से दक्ष हैं, उनकी क्षमता पर भरोसा जताया जाए और दकियानूसी एवं रुढ़ीवादी मानसिकता को दूर रखकर उन्हें भी हर क्षेत्र में समान अवसर मुहैया कराया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र में यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की है। हर किसी को याद रखना चाहिए कि दुनिया में ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है, जिन्होंने गुमनामी के अंधेरे से निकलकर अपनी एक अलग पहचान बनाई है और उनमें से कई आज हमारे लिए आदर्श भी हैं। इसलिए जरूरत है उन्हें भी साथ लेकर चलने की और उन्हें अवसरों में समानता दिलाने की।