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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की दुनियाः चुनौतियां अभी भी बरकरार



रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी एक कविता में कहा है, ‘शांति नहीं तब तक, जब तक सुख भाग नहीं नर का सम हो। नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो।’ पहले प्रथम और फिर द्वितीय विश्व युद्ध के लिए कहीं-न-कहीं उस वक्त पैदा हुईं ऐसी ही परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। बात यदि करें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की दुनिया की तो इसे एक नये युग की शुरुआत कहना गलत नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो संबंध बनाने की प्राचीन और पुरानी परंपराएं चली आ रही थीं, द्वितीय विश्व युद्ध ने इनका अंत कर दिया। एक तरह से यूरोप का प्रभुत्व था, अब वह कल की बात हो गई। यूं कहा जा सकता है कि जिस यूरोप को पूरी दुनिया को अनुशासित करने वाला माना जाता था, वह जर्मनी एवं इटली जैसे देशों के बर्बाद होने और ब्रिटेन व फ्रांस जैसे देशों की स्थिति के कमजोर होने की वजह से समस्या से भरा हुआ यूरोप बन गया।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पड़े तत्कालीन प्रभाव

प्रादुर्भाव दो महाशक्तियों का

शीतयुद्ध की शुरुआत

तृतीय विश्व यानी कि तीसरी दुनिया का प्रादुर्भाव

गुट निरपेक्षता

संयुक्त राष्ट्र संघ

सोवियत संध और चीन विवाद

सैनिक संगठनों का उद्भव

इजराइल और अरब के बीच तनाव

निष्कर्ष

कुल मिलाकर देखा जाये तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भले ही व्यापक पैमाने पर तृतीय विश्व युद्ध को होने से रोकने के लिए कदम उठाये गये, मगर जिस तरह से दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध देखने को मिला और अन्य कई देशों के बीच भी संघर्ष की स्थिति कई बार पैदा हुई, उसने सवाल खड़े कर दिये हैं कि परमाणु शक्ति की उपलब्धता के मद्देनजर आखिर कितने समय तक तृतीय विश्व युद्ध को टाला जा सकता है? एक और चीज यह भी है कि मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ जरूर अस्तित्व में आया, मगर जिस तरह से इस्लामिक आतंकवाद ने दुनिया को अपनी चपेट में लिया है, वह बेहद चिंतनीय है। बहरहाल, यह तो वक्त ही बतायेगा कि संचार क्रांति के इस युग में परमाणु ताकत वाली इस दुनिया में शांति कितने समय तक कायम रह पाती है?