Open Naukri

सभी को शिक्षा के लक्ष्य से अभी भी बहुत दूर है भारत



शिक्षा ही जीवन का आधार है। शिक्षा से ही विकास का मार्ग भी प्रशस्त होता है। विकसित और विकासशील देशों के बीच जब अंतर को देखा जाता है, तो उसमें शिक्षा के स्तर में बड़ा अंतर नजर आता है। हमारे भारत जैसा विकासशील देश, जो यह दावा करता है कि यह विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होने से महज कुछ ही कदम दूर है, यहां भी शिक्षा की स्थिति चिंताजनक है। सबसे बड़ी बात ये है कि हमेशा से ही शिक्षा के क्षेत्र को यहां गंभीरता से नहीं लिया गया है। हमेशा ही इस क्षेत्र की अनदेखी की गई है। भारत की वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट भी दिखाती है कि करीब 8 करोड़ बच्चे देश में ऐसे हैं, जो स्कूल नहीं जाते हैं। शिक्षा की वजह से किसी भी इंसान में सोचने-समझने की क्षमता विकसित होती है। जब शिक्षा को ही गंभीरता से न लिया जाए, तो भला क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।

शिक्षा की स्थिति चिंतनीय

ऐसे स्कूलों में भला कोई क्यों पढ़ने जायेगा?

हालत जब ऐसी हो तो चिंता कैसे न हो?

यहां तो ऐसा भी हुआ है

इन देशों से क्यों सीखें?

नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा था

जरूरत इसकी है

चलते-चलते

यह बात सही है कि शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे शायद आज तक भारत में उतनी अहमियत नहीं दी गई, जिसकी यह हकदार थी, मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया सकता कि समय-समय पर सरकार और स्वयंसेवी संगठनों की ओर से देश में शिक्षा की स्थिति को सुधारने के प्रयास होते रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान व शिक्षा का अधिकार जैसे कदम इसी का हिस्सा हैं। हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि यदि इन अभियानों को उतनी ही गंभीरता से आगे बढ़ाया गया होता, जितनी गंभीरता के साथ इन्हें शुरू किया गया था, तो शायद कुछ और ही तस्वीर हमारे देश में हमारी शिक्षा व्यवस्था की उभर कर सामने आती। विशेषकर प्राथमिक शिक्षा की स्थिति देश में सुधारने की जरूरत है, क्योंकि यदि नींव मजबूत हो गयी तो यह आगे बहुत काम आती है।