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क्यों पड़ी Climate Emergency की जरूरत?



दुनियाभर में जलवायु पर मंडरा रहे संकट के मद्देनजर यूरोपीय संघ की ओर से हाल ही में जलवायु आपातकाल यानी कि Climate Emergency की घोषणा की गई है। इस तरह से यह कदम उठाने वाला दुनिया का यह पहला बहुपक्षीय गुट भी बन गया है। कार्बन उत्सर्जन की वजह से दुनियाभर में इस वक्त जलवायु खतरे में है। ऐसे में जलवायु आपातकाल किस तरह से स्थिति में सुधार लाने में मददगार हो सकता है, इसके बारे में यहां हम आपको बता रहे हैं।

Climate Emergency के प्रमुख बिंदु

Paris Agreement & European Union

UNEP के बारे में

European Union के कदम का प्रभाव

Oxford Dictionary में Climate Emergency

Climate Emergency को तो ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी वर्ष 2019 का वर्ड ऑफ ईयर चुन लिया है। पत्रिका Bio Science में 69 भारतीयों सहित 11 हजार 258 वैज्ञानिकों ने वैश्विक जलवायु आपातकाल को लेकर हस्ताक्षर किये हैं। ‘World Scientists’ के नाम से यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। वैज्ञानिकों ने जो पिछले 40 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है, रिपोर्ट उसी पर आधारित है। सबसे पहले UK ने अपने यहां जलवायु आपातकाल को पारित किया। 16 साल की स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने पूरी दुनिया का ध्यान पर्यावरण संरक्षण के लिए कानून बनाने के प्रति आकृष्ट किया है।

UN Climate Change Conference COP 25 की रिपोर्ट

UN Climate Change Conference COP-25 के दौरान पेश किये गये प्रकृति के संरक्षण के लिए बने अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से महासागर के गर्म होने से पानी में ऑक्सीजन का स्तर घटता जा रहा है, जिस वजह से ट्यूना, मार्लिन और शार्क जैसी मछलियों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। ऑक्सीजन की कमी से प्रभावित समुद्री स्थानों की संख्या दुनियाभर में 1960 के दशक के 45 के मुकाबले अब 700 तक पहुंच गई है। महासागरों में ऑक्सीजन के घटने से वातावरण में ऑक्सीजन में 3 से 4 प्रतिशत तक की कमी आएगी।

निष्कर्ष

आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों की जद में आ चुकी है तो ऐसे में कार्बन उत्सर्जन को कम करके वैश्विक तापन को घटाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रयास किये जाने बहुत ही जरूरी बन गये हैं और इसलिए Climate Emergency भी वक्त की मांग ही है।