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सर्वपल्ली राधाकृष्णन: एक गुरु की जीवनी

हमारे देश में मां को प्रथम और पिता को द्वितीय तो गुरु को भी तृतीय देवता की संज्ञा दी गई है। कबीर ने भी अपने दोहे में लिखा है- ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।‘ इसका मतलब यह है कि यदि मेरे समक्ष गुरु और भगवान दोनों ही खड़े हों तो सबसे पहले मैं गुरु के ही चरण स्पर्श करुंगा, क्योंकि भगवान के बारे में बताया तो गुरु ने ही है। हमारे जीवन में गुरु की महत्ता को सम्मान देते हुए ही हम शिक्षक दिवस (Teachers’ Day) भारत के द्वितीय राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस (birthday of Dr Sarvepalli Radhakrishnan) के दिन 5 सितंबर को मनाते हैं, क्योंकि एक शिक्षक के रूप में डॉ राधाकृष्णन का इस देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में योगदान बेहद अहम रहा।

अपने लेख एवं भाषणों के जरिये पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन का बोध कराने वाले डॉ राधाकृष्णन (Dr Sarvepalli Radhakrishnan) को वर्ष 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्रधानाचार्य के पद पर सेवा देने का गौरव प्राप्त हुआ। वेदों और उपनिषदों के अध्ययन के साथ डॉ राधाकृष्णन ने हिंदी और संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया था। इनका विवाह सिवाकामू के साथ हुआ था, जिनकी खुद तेलुगू और अंग्रेजी भाषाओं पर खासी पकड़ थी।

श्री राधकृष्णन के जीवन चरित्र के बारे में महत्वपूर्ण पड़ावों के बारे में जानते हैं।

कौन थे Dr Sarvepalli Radhakrishnan?

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को महान शिक्षक, दार्शनिक, आस्थावान हिंदू विचारक और भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1954 में भारत सरकार की ओर से देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित डॉ एस राधाकृष्णन वर्ष 1952 से 1962 तक भारत के पहले उपराष्ट्रपति और वर्ष 1962 से 1967 तक भारत के द्वितीय राष्ट्रपति भी रहे। शिक्षा पर हमेशा ध्यान केंद्रित करने वाले डॉ राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति के पद से अपने विदाई भाषण में स्त्री शिक्षा की वकालत करते हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही थी, जो कल भी प्रासंगिक थी, आज भी प्रासंगिक है और कल भी प्रासंगिक रहेगी। उन्होंने कहा था, ‘Give us good women, we will have a great civilization, Give us good mother, we will have a great nation.’, जिसका अर्थ है ‘हमें अच्छी महिलाएं दो, हमारे पास एक महान सभ्यता होगी। हमें अच्छी माताएं दो, हमारे पास एक महान देश होगा।‘ शिक्षक दिवस (Teachers’ Day) के अवसर पर उनकी ये बात याद आ ही जाती है।

Dr Sarvepalli Radhakrishnan Life History

पूरी दुनिया को एक विद्यालय मानने वाले डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षा का प्रबंधन पूरी दुनिया को एक इकाई मानकर ही किया जाना चाहिए। दुनियाभर में शांति स्थापित करने के पक्षधर भारत के इस महान शिक्षाविद ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान के दौरान एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही थी कि मानव का एक होना जरूरी है। जब दुनियाभर में नीतियों के आधार पर शांति की स्थापना हो जायेगी, तो मानव जाति को मुक्ति स्वतः मिल जायेगी। डॉ राधाकृष्णन की शिक्षक के तौर पर लोकप्रियता इसलिए भी बढ़ती चली गई कि वे जिस विषय को भी पढ़ाते थे, उसके बारे में पहले ही वे गहन अध्ययन कर लेते थे और पढ़ाते वक्त अपनी लाजवाब शैली से वे इसे बेहद रोचक बना देते थे, जिससे सुनने वाले एकदम मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे। डॉ राधाकृष्णन के दर्शन की एक महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि उन्होंने भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों के आदर की तो बात कही ही, साथ ही सभी धर्मों के लिए समानता के भाव को उन्होंने हिंदू संस्कृति की विशेष पहचान भी बताया।

बाल्यकाल में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तिरुतनी गांव में सर्वपल्ली वीरास्वामी और सीताम्मा के घर में 5 सितंबर, 1888 को इस महापुरुष का जन्म हुआ था। भले ही इनका जन्म तिरुतनी गांव में हुआ, मगर उनके पूर्वज यहां सर्वपल्ली गांव से आकर बसे थे। ऐसे में उन्होंने गांव की स्मृति को हमेशा बनाये रखने के लिए अपने नाम से पहले ‘सर्वपल्ली’ जोड़ना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से डॉ राधाकृष्णन के नाम से पहले भी सर्वपल्ली जुड़ा हुआ है। तिरुपति और वेल्लूर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले डॉ राधाकृष्णन ने उच्चतर शिक्षा चेन्नई स्थित मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से हासिल की। बचपन से ही बेहद मेधावी डॉ राधाकृष्णन ने न केवल वीर सावरकर एवं स्वामी विवेकानंद के जीवन का गहन अध्ययन किया, बल्कि बाइबिल के महत्वपूर्ण अंशों को याद करते हुए विशिष्ट योग्यता भी सम्मान भी प्राप्त कर लिया।

प्रारम्भिक जीवन

5 सितंबर 1888 को तमिलनाडू के एक छोटे से गाँव तिरुमनी के ब्राह्मण परिवार में दूसरी संतान के रूप में एक संतान का जन्म हुआ। पिता श्री सर्वपल्ली वी. रामास्वामी  और माता श्रीमति सीता झा ने इस संतान का नाम राधाकृष्णन रखा। रामास्वामी जी गाँव के जमींदार के यहाँ एक साधारण कर्मचारी थे। सीमित आय में भी राधाकृष्णन ने आरंभिक शिक्षा गाँव में ही पूरी करी। 8 वर्ष की अवस्था में उन्हें तिरुपति के मिशनरी स्कूल में पढ़ाई के लिए भेज दिया गया जहां से वो अगले 4 वर्ष बाद वेल्लुर चले गए और अपनी आगे की शिक्षा पूरी करी। 1902 में मैट्रिक की परीक्षा में इन्होनें छात्रवृति प्राप्त करी और 1904 में कला संकाय प्रथम श्रेणी और मनोविज्ञान, इतिहास और गणित में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण करी। इसके बाद दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर प्रथम श्रेणी में पास कर ली थी। पढ़ाई के अतिरिक्त राधाकृष्णन ने बाइबल के भी महत्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर रखे थे।

व्यावसायिक जीवन

राधाकृष्णन जी का व्यावसायिक जीवन 28 वर्ष में अथार्थ 1916 में प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक के पद के साथ शुरू हुआ था। दो वर्ष बाद ही उन्हें मैसूर यूनिवर्सिटी में इसी विषय के प्रोफेसर के रूप में चुन लिया गया। इसके बाद वो इसी कॉलेज के उपकुलपति बने और एक वर्ष बाद ही बनारस यूनिवर्सिटी का कुलपति नियुक्त कर दिया गया। इसी बीच में 1940 में ब्रिटिश एकेडमी ने उन्हें प्रथम भारतीय के रूप में एक सदस्य चुन लिया। 1948 में युनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भी काम किया । इसके बाद 1953 से 1962 तक दिल्ली यूनिवर्सिटी के चांसलर का पद सम्हाला। अपने शिक्षण काल में ही उन्होनें दर्शन शास्त्र पर अनेकों पुस्तकें लिखीं और प्रसिद्धि पाई।

राजनैतिक जीवन

राधाकृष्णन जी, विवेकानन्द और वीर सावरकर के विचारों से प्रभावित थे और इनके जीवन को राधाकृष्णन जी ने आत्मसात करने का प्रयास किया। अपनी ज्ञान प्रतिभा के बल पर ही 1947 से 1949 तक वो संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात सोवियत संघ में विशिष्ट राजदूत के रूप में रहे। इसके बाद 13 मई 1952 से 13 मई 1962 तक उपराष्ट्रपति और 13 मई 1962 को राष्ट्रपति नियुक्त हो गए।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) का राजनीति में योगदान

डॉ एस राधाकृष्णन वर्ष 1947 से 1949 तक भारत की संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य रहे थे। 14 से 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को संविधान सभा के ऐतिहासिक सत्र के आयोजन के वक्त पंडित जवाहर लाल नेहरू उनका संभाषण चाहते थे और उनसे ठीक 12 बजे रात्रि में अपना संबोधन समाप्त करने का अनुरोध किया था, ताकि नेहरू के नेतृत्व में संवैधानिक संसद ले सके। डॉ राधाकृष्णन ने ऐसा ही किया था। डॉ राधाकृष्णन को सोवियत संघ में भारत के विशिष्ट राजदूत के तौर पर भी भेजा गया था। सोवियत संघ से लौटने के उपरांत वर्ष 1952 में उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गई, लेकिन वर्ष 1957 में दोबारा किसी राजनीतिज्ञ को न चुनकर उन्हें ही कांग्रेस द्वारा उपराष्ट्रपति चुने जाने से बहुत से लोग हैरान भी रह गये थे।

डॉ राधाकृष्णन के जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धियां

मानव मस्तिष्क के सदुपयोग के लिए शिक्षा को आवश्यक बताने वाले और यह कहने वाले कि शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे, डॉ राधाकृष्णन ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की।

पुरस्कार और सम्मान

जीवन के अंतिम वर्ष:

अपने लेख एवं भाषणों के जरिये पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन का बोध कराने वाले डॉ राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) को वर्ष 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्रधानाचार्य के पद पर सेवा देने का गौरव प्राप्त हुआ। वेदों और उपनिषदों के अध्ययन के साथ डॉ राधाकृष्णन ने हिंदी और संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया था। इनका विवाह सिवाकामू के साथ हुआ था, जिनकी खुद तेलुगू और अंग्रेजी भाषाओं पर खासी पकड़ थी। 17 अप्रैल 1975 को डॉ राधाकृष्णन जी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।

निष्कर्ष

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान ही इतना अधिक है कि उनके जन्म दिवस के अवसर पर शिक्षक दिवस (Teachers’ Day) मनाने की सार्थकता पूरी तरह से साबित होती है। इस दिन भारत सरकार श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार देकर सम्मानित भी करती है। डॉ राधाकृष्णन ने ज्ञान से शक्ति और प्रेम से परिपूर्णता मिलने का अतुलनीय संदेश दिया था। बताएं, शिक्षक दिवस पर आपने अपने किन-किन शिक्षकों को शिक्षक दिवस की बधाई दी है?