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India-China Dispute: तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत तो नहीं?



जिंदगी की उदास राहों में बारहां दोस्त ऐसे मिलते हैं। जो दम तो भरते हैं दोस्ती का, मगर आस्तिनों में सांप पालते हैं। हमारे जिस पड़ोसी चीन ने कभी ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया था, उस चीन पर किसी शायर द्वारा कही गई ये लाइनें बिल्कुल सटीक बैठती हैं। जिस तरह से चीन ने 45 वर्षों के बाद भारत-चीन के बीच लद्दाख की गलवान घाटी में स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर खून बहाया है, उससे एक बार फिर से चीन की कुटिलता पूरी दुनिया के सामने आ गई है और India-China Dispute भी एक बार फिर से सतह पर आ गया है।

इस लेख में आप जानेंगे:

जहां बातचीत के मेज पर भारत चीन के साथ आगे बढ़ने जा रहा था, ताकि सदियों से दुनिया को शांति और अहिंसा का पावन संदेश दे रहा ये देश अपने पड़ोसी के साथ भी सौहार्द्रपूर्ण माहौल का कायम रख सके, वहीं चीन के इरादे कितने नापाक थे, यह चीन ने मंगलवार को दिखा दिया। भारतीय सेना के आधिकारिक बयान के मुताबिक 20 जवानों को एलएसी पर अपनी शहादत देनी पड़ी है।

क्या कह रहा विदेशी मीडिया?

मतलब साफ है कि सीमा पर शांति बहाली के पक्ष में चीन नहीं है। भारत और चीन के बीच का संबंध जो बीते कुछ वर्षों से चीन की महात्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ता दिख रहा था, अब उसे लेकर तस्वीर एकदम साफ होती दिख रही है। दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच टकराव को देखते हुए अब तो विदेशी मीडिया को तीसरे विश्वयुद्ध की आहट भी मिलने लगी है। ब्रिटिश अखबार की वेबसाइट express.co.uk ने इसे तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत भी करार दे दिया है। इसके मुताबिक दशकों में दो परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसियों के बीच पहली बार ऐसी दुर्घटना घटी है। इससे पहले वर्ष 1975 में चीन ने घात लगाकर LAC पर धावा बोला था, जिसमें भारत के चार जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे।

इतना चिढ़ा हुआ आखिर क्यों है चीन?

सवाल यह उठता है कि आखिर चीन को चिढ़ किस बात से मची है? ऐसा क्या हो गया कि चीन बार-बार भारत से भिड़ने के मौके तलाश रहा है?

नया नहीं है India-China Dispute

India-China Dispute आज की बात नहीं है, बल्कि 1962 से ही यह कहानी चलती आ रही है। हमेशा से सड़कें ही भारत और चीन के दरम्यान फैली 3500 किमी के LAC पर तनाव की वजह रही हैं।

इस वक्त क्या हैं हालात?

चलते-चलते

जिस तरह से चीन की ओर से India-China Dispute को और धधकाने की कोशिश की गई है, उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि चीन की विस्तारवादी सोच और भारत के प्रति उसके नापाक मंसूबे बातचीत के जरिये इस विवाद को हल नहीं निकलने देना चाहते। ऐसे में चीन को जवाब रामधारी सिंह दिनकर की इन पंक्तियों से दिया जा सकता है- तुम हमारी चोटियों की बर्फ को यूं मत कुरेदो, दहकता लावा हृदय में है कि जलाकर खाक कर देंगे।