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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या है और क्या हैं इसके फायदे-नुकसान

कंप्यूटर, रोबोट, ऑटोमेटिक मशीनें दुनियाभर में अब ये चीज़ें आम बात हो गई हैं। आज हर कोई इन सभी चीज़ों से परिचित है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, कि आखिरकार ये रोबोट और ऑटोमेटिक मशीनों को बनाने में किस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। आखिर कैसे ये मशीने खुद से काम करती हैं। रोबोट को देखकर हम एक बार तो ये जरूर सोचते हैं कि आखिरकार कैसे ये बिल्कुल इंसानों की तरह बोलता, चलता और सभी काम करता है। तो आइये हम आपको बताते हैं कि इनमें किस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें इस्तेमाल होने वाली तकनीक को ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कि कृत्रिम बुद्धिमता कहते हैं। आज ये तकनीक हर रोज़ नया रुप ले रही है। वैज्ञानिक लगातार इस पर नई- नई खोज करने में लगे हैं। तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि आखिर ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है क्या?

क्या है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मतलब होता है बनावटी तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता। इसमें मशीनों को इंसानों के दिमाग की तरह इतना विकसित किया जाता है कि वो उनकी तरह सोच सकें, और काम कर सकें। यानि की इसके जरिए कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जो उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास करता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क चलते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत १९५० के दशक में हुई थी।

इस प्रक्रिया में मुख्य रुप से तीन चरण होते हैं।

१. Learning- इसमें मशीनों के दिमाग में जानकारियां डाली जाती है। उन्हें कुछ नियम भी सिखाए जाते हैं।

२. Reasoning- इसमें उन्हें ये आदेश दिया जाता है कि वो सिखाए गए नियमों का पालन करें।

३. Self- Correction- इसमें मशीनों में हुए भूल को सुधारा जाता है। साथ ही मशीनों को भी ये चीजें बताई जाती है।

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ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संस्थापक

ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता के बारे में सबसे पहले जॉन मैकार्थी ने दुनिया को बताया। वो एक अमेरिकन कंप्यूटर साइंटिस्ट थे। जॉन मैकार्थी ने अपने साथियों के साथ मिलकर साल १९५५ में इसकी खोज की थी। लेकिन मैकार्थी ने साल १९५६ में डार्टमाउथ कॉलेज में हुए सेमिनार में इसकी चर्चा की और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दुनिया के सामने आया।

ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रकार

वैसे तो ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बहुत से भागों में विभाजित किया गया है, लेकिन ये इनके सबसे प्रमुख प्रकार है।

  1. Weak AI- ये इस प्रकार से तैयार किया जाता है कि ये केवल एक टास्क ही करे। एप्पल का Siri और गूगल का वॉयस सिस्टम इसके उदाहरण हैं।
  2. Strong AI- इस प्रकार के सिस्टम में सामान्यीकृत मनुष्य की बुद्धिमता होती है। जिससे की समय आने पर वो कोई भी मुश्किल टास्क कर सके और उसका हल निकाल सके। इसे चार भागों में बांटा गया है।

ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के फायदे और नुकसान

फायदे

नुकसान

ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एप्लीकेशन्स

बिजेनस में एआई का प्रयोग लगातार बढ़ता ही जा रहा है। Robotic process automation की मदद से अब बार- बार किए जाने वाले कामों को मशीनों के जरिए किया जा रहा है।

अब एआई का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हेल्थकेयर इंडस्ट्री में ही किया जा रहा है। इसके लिए एक बहुत ही फेमस टेक्नोलॉजी है IBM Watson.

इस सेक्टर में डॉक्यूमेंटेशन की प्रक्रिया को एआई के जरिए बड़े ही आसानी से किया जा रहा है।

इस सेक्टर में जिस काम को पूरा करने के लिए सैकड़ों लोग लगते थे, अब उसे केवल कुछ मशीनों के जरिए किया जा रहा है।

पहले कंपनियों को डेटा एनालिसिस में बहुत पैसे देने होते थे, लेकिन अब ये काम मशीनों के जरिए आसानी से हो रहा है।

आजकल एआई की मदद से स्टूडेंट घर बैठे ही कई चीजों का हल आसानी से ढूंढ सकते हैं।

निष्कर्ष

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले सिस्टम के जरिए १९९७ में शतरंज के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में शुमार गैरी कास्पोरोव को भी हराया जा चुका है। वहीं साल २०१६ में सउदी अरब में तैयार की गई सोफिया नाम की रोबोट ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सबसे अच्छा उदाहरण है। इंसानों की तरह शक्ल वाली सोफिया रोबोट को सउदी अरब की नागरिकता भी प्राप्त है। आपको बता दें कि साल २०१७ को मुंबई में हुई टेक फेस्ट में सोफिया साड़ी पहने नजर आई थी और उन्होंने नमस्ते इंडिया कहकर अपना संबोधन शुरू किया था।